लखनऊ : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने प्रदेश में 69 हजार सहायक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पर एकल पीठ द्वारा अंतरिम रोक लगाए जाने के खिलाफ राज्य सरकार की विशेष अपील पर फैसला सुरक्षित कर लिया है।
न्यायमूर्ति पंकज कुमार जायसवाल एवं न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की डिवीजन बंेच ने सोमवार को परीक्षा नियामक प्राधिकारी की ओर से दायर विशेष अपील सुनवाई की। अपील पांच जून को दाखिल की गई थी और नौ जून को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी। किन्तु सरकार की ओर से प्रकरण को अति आवश्यक बताते हुए सोमवार को ही सुनने की गुजारिश की गई। बेंच की अनुमति मिलने पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई हुई।
सरकार की ओर से तीन जून के आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया गया कि एकल पीठ का आदेश मनमाना व गलत है। एकल पीठ ने प्राधिकारी की दलीलों पर गौर नहीं किया और अंतरिम आदेश जारी कर दिया जबकि याचिका ही पोषणीय नहीं थी। आठ मई 2020 को जारी परीक्षा परिणाम के सभी सफल अभ्यíथयों को याचिका में पक्षकार नहीं बनाया गया था। सरकार की ओर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने साथ ही यह भी दलील दी कि परीक्षा परिणाम आने के बाद तीन जून से काउंसिलिंग प्रारंभ होनी थी। ऐसे में एकल पीठ को दखल देने का कोई औचित्य नहीं था।
सरकार की ओर से कुल तीन याचियों को पक्षकार बनाकर विशेष अपील दाखिल की गई थी। इनमें से एक अपील पर नौ जून को सुनवाई नियत थी। जबकि दो अपीलें सोमवार को ही दाखिल की गईं थीं। कोर्ट ने सारी अपीेलें सोमवार को ही मंगाकर सुन ली और अंतरिम आदेश सुरक्षित कर लिया । सुनवाई के समय एक अभ्यर्थी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एलपी मिश्र ने अपील के खिलाफ अपना जवाब दाखिल कर दिया जबकि बेंच ने अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं एचजीएस परिहार, असित चतुर्वेदी, जेएम माथुर एवं सुदीप सेठ को मंगलवार प्रात: 10 बजे तक अपना लिखित जवाब दाखिल करने का समय दिया है।
गौरतलब है कि तीन जून को एकल पीठ के जस्टिस आलोक माथुर ने सैकड़ों अभ्यíथयों की ओर से अलग-अलग दाखिल ढाई दर्जन ने अधिक याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए चयन प्रकिया पर रोक लगा दी थी। एकल पीठ ने यह आदेश प्रश्न पत्र में दिए गए विकल्पों की गड़बड़ी एवं फाइनल आंसर की में प्रथमदृष्टया मतभेद दिखने के बाद पारित किया था। सही विकल्पों की स्पष्टता के लिए कोर्ट ने फाइनल आंसर की से सम्बंधित अभ्यíथयों की आपत्तियों को दस दिनों में यूनिवर्सटिी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) को भेजने का आदेश दिया था। यूजीसी के सचिव को एक विशेषज्ञ पैनल का गठन कर आपत्तियों पर दो सप्ताह में रिपोर्ट परीक्षा नियामक प्राधिकारी को भेजने का आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति पंकज कुमार जायसवाल एवं न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की डिवीजन बंेच ने सोमवार को परीक्षा नियामक प्राधिकारी की ओर से दायर विशेष अपील सुनवाई की। अपील पांच जून को दाखिल की गई थी और नौ जून को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी। किन्तु सरकार की ओर से प्रकरण को अति आवश्यक बताते हुए सोमवार को ही सुनने की गुजारिश की गई। बेंच की अनुमति मिलने पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई हुई।
सरकार की ओर से तीन जून के आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया गया कि एकल पीठ का आदेश मनमाना व गलत है। एकल पीठ ने प्राधिकारी की दलीलों पर गौर नहीं किया और अंतरिम आदेश जारी कर दिया जबकि याचिका ही पोषणीय नहीं थी। आठ मई 2020 को जारी परीक्षा परिणाम के सभी सफल अभ्यíथयों को याचिका में पक्षकार नहीं बनाया गया था। सरकार की ओर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने साथ ही यह भी दलील दी कि परीक्षा परिणाम आने के बाद तीन जून से काउंसिलिंग प्रारंभ होनी थी। ऐसे में एकल पीठ को दखल देने का कोई औचित्य नहीं था।
सरकार की ओर से कुल तीन याचियों को पक्षकार बनाकर विशेष अपील दाखिल की गई थी। इनमें से एक अपील पर नौ जून को सुनवाई नियत थी। जबकि दो अपीलें सोमवार को ही दाखिल की गईं थीं। कोर्ट ने सारी अपीेलें सोमवार को ही मंगाकर सुन ली और अंतरिम आदेश सुरक्षित कर लिया । सुनवाई के समय एक अभ्यर्थी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एलपी मिश्र ने अपील के खिलाफ अपना जवाब दाखिल कर दिया जबकि बेंच ने अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं एचजीएस परिहार, असित चतुर्वेदी, जेएम माथुर एवं सुदीप सेठ को मंगलवार प्रात: 10 बजे तक अपना लिखित जवाब दाखिल करने का समय दिया है।
गौरतलब है कि तीन जून को एकल पीठ के जस्टिस आलोक माथुर ने सैकड़ों अभ्यíथयों की ओर से अलग-अलग दाखिल ढाई दर्जन ने अधिक याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए चयन प्रकिया पर रोक लगा दी थी। एकल पीठ ने यह आदेश प्रश्न पत्र में दिए गए विकल्पों की गड़बड़ी एवं फाइनल आंसर की में प्रथमदृष्टया मतभेद दिखने के बाद पारित किया था। सही विकल्पों की स्पष्टता के लिए कोर्ट ने फाइनल आंसर की से सम्बंधित अभ्यíथयों की आपत्तियों को दस दिनों में यूनिवर्सटिी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) को भेजने का आदेश दिया था। यूजीसी के सचिव को एक विशेषज्ञ पैनल का गठन कर आपत्तियों पर दो सप्ताह में रिपोर्ट परीक्षा नियामक प्राधिकारी को भेजने का आदेश दिया था।