लोक सेवा आयोग के मामले में एसटीएफ बैकफुट पर, धीमी जांच पर प्रतियोगियों ने उठाए सवाल
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पीसीएस-प्री परीक्षा का पेपर आउट होने के मामले में लीपापोती की आशंकाएं बढ़ गई हैं। एसटीएफ इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कर जांच कर रही है लेकिन एक माह बाद भी इस मामले में प्रगति शून्य है। यहां तक कि आयोग के जिम्मेदार लोगों से इस संबंध में पूछताछ तक नहीं की गई है। यह तथ्य भी अभी सामने नहीं आया है कि पेपर आउट होने के बाद किन-किन अभ्यर्थियों को भेजा गया है। पीसीएस-प्री-2015 की परीक्षा 29 मार्च को प्रदेश के विभिन्न केंद्रों पर हुई थी। इसमें पहली पाली की परीक्षा में लखनऊ के एक केंद्र पर प्रश्नपत्र आउट हुआ था। एसटीएफ ने इस मामले में जो प्राथमिकी दर्ज कराई है, उसमें विशाल मेहता, जय सिंह और ज्ञानेंद्र नामक तीन लोगों को आरोपी बनाया गया है। उस समय अधिकारियों ने कहा था जांच के बाद अन्य नाम सामने आएंगे लेकिन एक माह बाद भी यह नाम उजागर न हो सके। आयोग के नियमानुसार प्रश्नपत्र के पैकेट परीक्षा शुरू होने के पहले तीस मिनट पहले खोले जाते हैं और उस समय आयोग के प्रतिनिधि और कम से कम दो अंतरीक्षक वहां मौजूद रहते हैं। क्या उस दिन इस नियम का पालन नहीं किया गया। समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय ने कहा कि एसटीएफ ने पहला अभियुक्त दोपहर दो बजे पकड़ लिया था। इसके बावजूद दूसरा अभियुक्त पकड़ने के लिए चार बजे तक का इंतजार किया गया। पुलिस ने अभियुक्तों के मोबाइल फोन दूसरी पाली की परीक्षा संपन्न होने के बाद जब्त किए। इसकी जांच में क्या सामने आया, इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। समिति के अध्यक्ष अयोध्या प्रसाद सिंह का कहना है कि इस बात की जांच जरूरी है कि किसके इशारे पर आठ बजे पेपर खोले गए जबकि नियम यह है कि परीक्षा शुरू होने के आधे घंटे पहले बंडल खोले जाने चाहिए थे। समिति का आरोप है कि एसटीएफ ने जिस तरीके से इस मामले में जांच के नाम पर चुप्पी साध ली है, उससे इस बात के संकेत मिलते हैं कि कहीं न कहीं वह भी दबाव में है। समिति से जुड़े संदीप यादव के अनुसार इस मामले में अभ्यर्थी एक बार फिर अदालत जाने की तैयारी कर रहे हैं। चूंकि मामला लाखों छात्रों से जुड़ा है, इसलिए इसकी सीबीआइ से जांच कराई जानी चाहिए।
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पीसीएस-प्री परीक्षा का पेपर आउट होने के मामले में लीपापोती की आशंकाएं बढ़ गई हैं। एसटीएफ इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कर जांच कर रही है लेकिन एक माह बाद भी इस मामले में प्रगति शून्य है। यहां तक कि आयोग के जिम्मेदार लोगों से इस संबंध में पूछताछ तक नहीं की गई है। यह तथ्य भी अभी सामने नहीं आया है कि पेपर आउट होने के बाद किन-किन अभ्यर्थियों को भेजा गया है। पीसीएस-प्री-2015 की परीक्षा 29 मार्च को प्रदेश के विभिन्न केंद्रों पर हुई थी। इसमें पहली पाली की परीक्षा में लखनऊ के एक केंद्र पर प्रश्नपत्र आउट हुआ था। एसटीएफ ने इस मामले में जो प्राथमिकी दर्ज कराई है, उसमें विशाल मेहता, जय सिंह और ज्ञानेंद्र नामक तीन लोगों को आरोपी बनाया गया है। उस समय अधिकारियों ने कहा था जांच के बाद अन्य नाम सामने आएंगे लेकिन एक माह बाद भी यह नाम उजागर न हो सके। आयोग के नियमानुसार प्रश्नपत्र के पैकेट परीक्षा शुरू होने के पहले तीस मिनट पहले खोले जाते हैं और उस समय आयोग के प्रतिनिधि और कम से कम दो अंतरीक्षक वहां मौजूद रहते हैं। क्या उस दिन इस नियम का पालन नहीं किया गया। समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय ने कहा कि एसटीएफ ने पहला अभियुक्त दोपहर दो बजे पकड़ लिया था। इसके बावजूद दूसरा अभियुक्त पकड़ने के लिए चार बजे तक का इंतजार किया गया। पुलिस ने अभियुक्तों के मोबाइल फोन दूसरी पाली की परीक्षा संपन्न होने के बाद जब्त किए। इसकी जांच में क्या सामने आया, इसे सार्वजनिक नहीं किया गया। समिति के अध्यक्ष अयोध्या प्रसाद सिंह का कहना है कि इस बात की जांच जरूरी है कि किसके इशारे पर आठ बजे पेपर खोले गए जबकि नियम यह है कि परीक्षा शुरू होने के आधे घंटे पहले बंडल खोले जाने चाहिए थे। समिति का आरोप है कि एसटीएफ ने जिस तरीके से इस मामले में जांच के नाम पर चुप्पी साध ली है, उससे इस बात के संकेत मिलते हैं कि कहीं न कहीं वह भी दबाव में है। समिति से जुड़े संदीप यादव के अनुसार इस मामले में अभ्यर्थी एक बार फिर अदालत जाने की तैयारी कर रहे हैं। चूंकि मामला लाखों छात्रों से जुड़ा है, इसलिए इसकी सीबीआइ से जांच कराई जानी चाहिए।
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