नई दिल्ली: दिल्ली से सटे नौएडा और ग्रेटर नौएडा के सरकारी स्कूलों
में पढाई के स्तर को लेकर ABP न्यूज़ ने पड़ताल की तो नजारा चौंकाने वाला
था. वहां पढ़ाने वाले टीचरों का ज्ञान इतना खोखला निकला की उन्हें ये भी
नहीं पता की उनके देश का राष्ट्रपति कौन है?
जिस राज्य में वो पढ़ा रही है यानि उत्तर प्रदेश का गवर्नर कौन है ये पता ही नहीं है. चलिए ये तो ज्ञान की बात हो गई लेकिन सबसे शर्मशार करने वाली बात ये थी की कुछ टीचरों को तो NINETY की स्पेलिंग तक नहीं आती. आप खुद समझ सकते है की ऐसे टीचर बच्चों को क्या शिक्षा देंगे.
शायद यही वजह है की आज कोई भी सरकारी स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ना नहीं चाहता है. क्योंकि निजी स्कूलों के कक्षा एक का बच्चा भी इस स्पेलिंग को बता देगा. कुछ समय पहले ही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्राथमिक शिक्षा में हो रही गिरावट पर अपनी चिंता जाहिर की थी और इसमें सुधार के लिए सभी सरकारी कर्मचारियों, विधायकों और सांसदों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाने का निर्देश भी जारी किया है.
नौएडा और ग्रेटर नौएडा के आधा दर्जन स्कूलों की स्थिति ऐसी ही है. जिन प्राथमिक स्कूलों में आप अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेज रहे हैं उनके टीचरों को भारत के प्रधानमंत्री तक का नाम पता नही है तो किसी को अपने जिले के डीएम का नाम पता नही है. कोई चेन्नई की राजधानी चंडीगढ़ बता रहे हैं तो किसी को नाईन्टी की स्पेलिंग तक नही आती है.
प्राथमिक शिक्षा में अचानक कोई गिरावट नहीं आई है, बल्कि पहली कक्षा से ही नींव का कमजोर होना ही इसका कारण है. लगभग 70 प्रतिशत सरकारी पाठशालाएं एक या दो अध्यापकों की देखरेख में चल रही हैं. इस व्यवस्था से छात्रों को बेहतर शिक्षा नहीं मिल पा रही है.
दोपहर भोजन, मुफ्त किताबें, वर्दी आदि के साथ एक-दो अध्यापक नियुक्त करके सरकारें अपनी जिम्मेदारी निभातीं आ रही हैं. करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी भी शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर निम्न रहे तो प्रदेश के बच्चों का भविष्य कैसे उज्ज्वल बनेगा. आज ये सबसे बड़ा सवाल है की इसका जिम्मेदार कौन है.
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
जिस राज्य में वो पढ़ा रही है यानि उत्तर प्रदेश का गवर्नर कौन है ये पता ही नहीं है. चलिए ये तो ज्ञान की बात हो गई लेकिन सबसे शर्मशार करने वाली बात ये थी की कुछ टीचरों को तो NINETY की स्पेलिंग तक नहीं आती. आप खुद समझ सकते है की ऐसे टीचर बच्चों को क्या शिक्षा देंगे.
शायद यही वजह है की आज कोई भी सरकारी स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ना नहीं चाहता है. क्योंकि निजी स्कूलों के कक्षा एक का बच्चा भी इस स्पेलिंग को बता देगा. कुछ समय पहले ही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्राथमिक शिक्षा में हो रही गिरावट पर अपनी चिंता जाहिर की थी और इसमें सुधार के लिए सभी सरकारी कर्मचारियों, विधायकों और सांसदों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाने का निर्देश भी जारी किया है.
नौएडा और ग्रेटर नौएडा के आधा दर्जन स्कूलों की स्थिति ऐसी ही है. जिन प्राथमिक स्कूलों में आप अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेज रहे हैं उनके टीचरों को भारत के प्रधानमंत्री तक का नाम पता नही है तो किसी को अपने जिले के डीएम का नाम पता नही है. कोई चेन्नई की राजधानी चंडीगढ़ बता रहे हैं तो किसी को नाईन्टी की स्पेलिंग तक नही आती है.
प्राथमिक शिक्षा में अचानक कोई गिरावट नहीं आई है, बल्कि पहली कक्षा से ही नींव का कमजोर होना ही इसका कारण है. लगभग 70 प्रतिशत सरकारी पाठशालाएं एक या दो अध्यापकों की देखरेख में चल रही हैं. इस व्यवस्था से छात्रों को बेहतर शिक्षा नहीं मिल पा रही है.
दोपहर भोजन, मुफ्त किताबें, वर्दी आदि के साथ एक-दो अध्यापक नियुक्त करके सरकारें अपनी जिम्मेदारी निभातीं आ रही हैं. करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी भी शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर निम्न रहे तो प्रदेश के बच्चों का भविष्य कैसे उज्ज्वल बनेगा. आज ये सबसे बड़ा सवाल है की इसका जिम्मेदार कौन है.
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