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उमादेवी केस के नियम शिक्षामित्रों पर लागू नहीं होते

आज सुप्रीमकोर्ट में लिखित बहस करने का आखरी दिन है। "मिशन सुप्रीम कोर्ट" के वर्किंग ग्रुप मेंबर्स रबी बहार, केसी सोनकर और माधव गंगवार अपना सबमिशन 26 जुलाई को ही मेंशन करवा चुके हैं, क्योंकि इसकी अंतिम तिथि 27 जुलाई थी।
वो तो खुशकिस्मती से 27 जुलाई को जज महोदय ने 17 अगस्त तक लिखित सबमिशन जमा करने की छूट दे दी वर्ना शिक्षामित्र संघ और टीमों की लिखित बहस जमा भी न हो पाती। खैर जो हुआ अच्छा हुआ आज हम समायोजन की वैधता को चुनौती देने वाले उमा देवी केस पर जिज्ञासुओं की समस्या का समाधान करते हैं:-

शिक्षामित्र केस में उमादेवी केस घुसाने के लिए विपक्षी द्वारा काउंटर दाखिल किया गया था ताकि इसपर बहस कराइ जा सके।
हाई कोर्ट के पार्ट बी में लिखा गया-
The absorption of Shiksha Mitras is in violation of the principles which have been laid down by the Hon'ble Supreme Court in Secretary, State of Karnataka Vs Umadevi.
अर्थात शिक्षामित्र समायोजन में उमादेवी केस में दी गई व्यवस्था का उल्लंघन हुआ है।

मज़े की बात ये कि कोर्ट ने बिना किसी बहस के हमें संविदा कर्मी मान लिया। हमें लगता है हमारे पैरवीकार लोगो की चूक के कारण ही ऐसे भयानक हालात बने। सिर्फ इतना ही नहीं हाईकोर्ट के फैसले में शिक्षामित्र समायोजन की पूरी की पूरी वैधता ही उमादेवी केस पर निर्धारित की गई और समायोजन रद्द कर दिया गया।
आइये! कुछ तथ्यों से अवगत कराते हैं। उमादेवी केस द्वारा निर्धारित नियमों को सुप्रीम कोर्ट के अलग अलग फैसलों में रिव्यु किया गया है और हाइकोर्ट के फैसलों को रद्द करते हुए प्रभावित संविदा शिक्षकों और संविदाकर्मियों के पक्ष में फैसला दिया गया है। कुछ उदाहरण निम्नवत हैं:-
Gadilingappa & Ors केस 11 January, 2010
इस केस में संविदा शिक्षकों के नियमितीकरण केे पक्ष में फैसला देते हुये सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने कहा-
Here, we also wish to point out that it is a well settled principle of law that even if a wrong committed in an earlier case,
the same cannot be allowed to be perpetuated.
अर्थात हम उमादेवी केस के तै शुदा क़ानूनी सिध्दांतों को उसी तरह बनाये रखने की इज़ाज़त नहीं दे सकते।
प्रसंगवश हम हिमाचल हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस के फैसले का भी उल्लेख करते चलें जिस में शिक्षामित्रों को नियमित करने के आदेश देते हुए कहा गया कि उमादेवी केस के नियमों की परिस्थितयां अलग थी और ये लोग 14 साल से कार्यरत हैं।
★अभी हाल ही में 15 दिन पहले सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया-
SACHIVALAYA DAINIK VETAN BHOGI KARAMCHARI UNION केस अगस्त 2016
जिसमे कोर्ट ने व्यवस्था दी कि:-
Uma Devi (supra) only dealt with in relation to the execution and regularisation of temporary and adhoc service without any reference to any law.
Uma Devi never dealt with a validity of
the judicial order which had attained finality.
अर्थात उमादेवी केस द्वारा निर्धारित नियम अंतिम नहीं हैं। और कहते हुए चतुर्थ श्रेणी संविदा कर्मचारियों के पक्ष में फैसला देते हुए हाइकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और सरकार को इनके लिए नियम निर्धारित करने का आदेश दिया।
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