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आरटीई-09 लागू होने के पांच साल बाद भी शिक्षक भर्ती के नियम नहीं

इलाहाबाद वरिष्ठ संवाददाता बेसिक शिक्षा विभाग की गलती का खामियाजा हजारों बेरोजगार युवाओं को भुगतना पड़ रहा है।
यूपी में 26 जुलाई 2011 को नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई-09) लागू होने के पांच साल बाद भी शिक्षक भर्ती के नियम नहीं बन सके हैं। इसके चलते बेरोजगारों को हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।

केन्द्र सरकार ने अप्रैल 2010 में आरटीई-09 लागू जिसके एक साल बाद यूपी ने 6 से 14 साल तक के बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा उपलब्ध कराने का कानून लागू किया। इसके लिए सबसे पहली आवश्यकता स्कूलों में शिक्षकों की महसूस हुई। लिहाजा नवम्बर 2011 में 72,825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती शुरू की गई। लेकिन सरकार ने राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की गाइडलाइन के अनुसार अध्यापक सेवा नियमावली 1981 में आवश्यक संशोधन नहीं किए। जिसका नतीजा यह है कि पिछले पांच सालों से प्राइमरी और जूनियर हाईस्कूल में शिक्षक भर्ती के लिए आवश्यक योग्यता को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई है।

जूनियर हाईस्कूल में विज्ञान-गणित विषय के 29,334 सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए प्रोफेशनल डिग्री का विवाद आज तक चला आ रहा है। तो वहीं प्राइमरी स्कूलों में सहायक अध्यापक की भर्ती में बीएलएड, बीएड स्पेशल एजुकेशन जैसे कोर्स करने वाले बेरोजगारों को सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। ताजा विवाद दो वर्षीय दूरस्थ माध्यम से बीटीसी करने वाले असमायोजित शिक्षामित्रों को लेकर है। 16,448 सहायक अध्यापक भर्ती में इन शिक्षामित्रों ने आवेदन किया है। हाईकोर्ट ने भी शिक्षामित्रों को आवेदन करने से नहीं रोका है। लेकिन काउंसिलिंग के दौरान बीटीसी प्रशिक्षु इनका विरोध कर रहे हैं।

नियमावली में संशोधन को मंजूरी नहीं
इलाहाबाद। अध्यापक सेवा नियमावली 1981 में संशोधन का प्रस्ताव बेसिक शिक्षा परिषद की तरफ से बेसिक शिक्षा निदेशक को महीनों पहले भेजा जा चुका है। लेकिन आज तक वह फाइनल नहीं हो सका।
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