नई दिल्ली। सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि सरकारी प्राथमिक स्कूलों में 18 प्रतिशत और सरकारी माध्यमिक स्कूलों में 15 प्रतिशत शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हैं। यानी सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के लिए स्वीकृत पदों का छठा भाग रिक्त है। आंकड़ो के लिहाज ये संख्या दस लाख है।
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कुछ राज्यों में 50 फीसद से भी ज्यादा पद रिक्त तो कुछ राज्य ऐसे भी है जहाँ कोई भी पद खाली नहीं है। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि जिन राज्यों साक्षरता की दरें कम हैं, वहां शिक्षकों की कमी ज्यादा है। महाराष्ट्र में सर्वाधिक साक्षरता दर 82.3 प्रतिशत है तो वहां के सरकारी स्कूलों में केवल 2.07 प्रतिशत शिक्षकों का अभाव है। गुजरात में साक्षरता दर 78 प्रतिशत है और वहां 33.57 प्रतिशत शिक्षकों के पद रिक्त हैं जबकि बिहार में 36.09 प्रतिशत शिक्षकों का अभाव है।
55 प्रतिशत बच्चे पढ़ते है सरकारी स्कूलों में
भारत में करीब 26 करोड़ बच्चों में से 55 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। सरकारी स्कूलों में अध्यनरत छात्रों का आंकड़ा कुल संख्या का आधे से भी ज्यादा है लेकिन सरकारी स्कूलों की हालात देखकर लगता है कि इन विद्यार्थियों का भविष्य अँधेरे में है। भारत विकासशील देश है और किसी देश के विकसित होने में शिक्षा की अहम भूमिका होती है।
भारत में करीब 26 करोड़ बच्चों में से 55 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। सरकारी स्कूलों में अध्यनरत छात्रों का आंकड़ा कुल संख्या का आधे से भी ज्यादा है लेकिन सरकारी स्कूलों की हालात देखकर लगता है कि इन विद्यार्थियों का भविष्य अँधेरे में है। भारत विकासशील देश है और किसी देश के विकसित होने में शिक्षा की अहम भूमिका होती है।
झारखंड के हालात सबसे ख़राब
भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में झारखंड के सरकारी माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की कमी सबसे ज्यादा है। वहां के माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की 70 प्रतिशत सीटें खाली पड़ी हैं, जबकि प्राथमिक स्कूलों में यह आंकड़ा 38 प्रतिशत है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की आधी सीटें खाली पड़ी हैं, जबकि बिहार और गुजरात में माध्यमिक शिक्षकों के एक तिहाई पद खाली हैं।
भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में झारखंड के सरकारी माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की कमी सबसे ज्यादा है। वहां के माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की 70 प्रतिशत सीटें खाली पड़ी हैं, जबकि प्राथमिक स्कूलों में यह आंकड़ा 38 प्रतिशत है। इसी तरह उत्तर प्रदेश के माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की आधी सीटें खाली पड़ी हैं, जबकि बिहार और गुजरात में माध्यमिक शिक्षकों के एक तिहाई पद खाली हैं।
ये है कारण
शिक्षकों की नियमित भर्ती नहीं होना, पदों की स्वीकृति नहीं मिलना, शिक्षकों की तैनाती में हेराफेरी, कुछ विषयों के लिए विशेषज्ञ शिक्षकों की कमी और छोटे स्कूल शिक्षकों की कमी के कारण हैं। देशभर में 60 लाख शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं, जिनमें 9 लाख प्राथमिक स्कूलों में और 1 लाख माध्यमिक स्कूलों में खाली पड़े हैं। अगर दोनों तरह के स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पदों को जोड़ दिया जाए तो 10 लाख होते हैं।
शिक्षकों की नियमित भर्ती नहीं होना, पदों की स्वीकृति नहीं मिलना, शिक्षकों की तैनाती में हेराफेरी, कुछ विषयों के लिए विशेषज्ञ शिक्षकों की कमी और छोटे स्कूल शिक्षकों की कमी के कारण हैं। देशभर में 60 लाख शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं, जिनमें 9 लाख प्राथमिक स्कूलों में और 1 लाख माध्यमिक स्कूलों में खाली पड़े हैं। अगर दोनों तरह के स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पदों को जोड़ दिया जाए तो 10 लाख होते हैं।
हिंदी भाषी क्षेत्रों में शिक्षकों की भारी कमी
असम, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के माध्यमिक स्कूलों में सापेक्षिक रूप से 3.9 प्रतिशत, 3.9 प्रतिशत और 2 प्रतिशत शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। सामान्य तौर पर हिंदी भाषी क्षेत्रों में शिक्षकों की भारी कमी है। भारत में सिक्किम एकमात्र राज्य है, जहां प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में शिक्षक का कोई पद रिक्त नहीं है।
असम, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के माध्यमिक स्कूलों में सापेक्षिक रूप से 3.9 प्रतिशत, 3.9 प्रतिशत और 2 प्रतिशत शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। सामान्य तौर पर हिंदी भाषी क्षेत्रों में शिक्षकों की भारी कमी है। भारत में सिक्किम एकमात्र राज्य है, जहां प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में शिक्षक का कोई पद रिक्त नहीं है।
गोवा, ओडिशा और सिक्किम से राहत की खबर
बड़े हिंदी भाषी राज्यों- उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में 33.3 करोड़ लोग रहते हैं, जहां प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की औसतन एक तिहाई सीटें खाली पड़ी हैं। गोवा, ओडिशा और सिक्किम के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों का कोई पद खाली नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और चंडीगढ़ में सरकारी प्राथमिक स्कूलों में 25 प्रतिशत शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं।
बड़े हिंदी भाषी राज्यों- उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में 33.3 करोड़ लोग रहते हैं, जहां प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की औसतन एक तिहाई सीटें खाली पड़ी हैं। गोवा, ओडिशा और सिक्किम के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों का कोई पद खाली नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और चंडीगढ़ में सरकारी प्राथमिक स्कूलों में 25 प्रतिशत शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं।
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