जागरण
संवाददाता, गोरखपुर : जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में सहायक
अध्यापक पद पर समायोजन के लिए चल रही शिक्षामित्रों की काउंसिलिंग में एक
फर्जीवाड़ा प्रकाश में आया है। शिक्षामित्र के नाम पर गड़बड़झाला करते हुए
वीरेंद्र ने तैनाती का आवेदन निरस्त होने के बाद भी प्रशिक्षण प्राप्त कर
लिया। यही नहीं प्रशिक्षण के आधार पर
काउंसिलिंग कराने बीएसए कार्यालय भी पहुंच गया।
विभाग के लोगों ने अभिलेखों की पड़ताल की तो मामला खुला। फिलहाल, बीएसए ने जांच बैठा दी है। उनका कहना है कि मामला गंभीर है, तथ्यों को छिपाने के आरोप में विधिक कार्रवाई की जाएगी। मुकदमा भी दर्ज होगा।
शुक्रवार को द्वितीय चरण की काउंसिलिंग के दौरान शिक्षामित्र बने वीरेंद्र के अभिलेखों की जांच हुई तो पता चला कि उसकी तैनाती तो किसी विद्यालय पर हुई ही नहीं है। उसने कैसे प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया है। इसके बाद तो विभाग की सांसें टंग गईं। आनन-फानन में अभिलेखों की जांच और पूछताछ शुरू हो गई। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कमलाकर पांडेय ने बताया कि वर्ष 2006 में ही शिक्षामित्र के लिए वीरेंद्र का चयन कैंपियरगंज स्थित प्राथमिक विद्यालय पौआ में हुआ था। लेकिन, उसके चयन पर आपत्ति जताते हुए कुछ लोग कोर्ट पहुंच गए। कोर्ट ने मामले की जांच जिलाधिकारी को सौंपी। जिलाधिकारी ने वीरेंद्र का आवेदन निरस्त कर दिया। फिर, वीरेंद्र कोर्ट चला गया। यह मामला लगातार चलता रहा। अंतत: हाईकोर्ट, जिलाधिकारी और डायट प्राचार्य ने उसके आवेदन को निरस्त कर दिया था। इसके बाद भी वीरेंद्र ने तथ्यों को छिपाते हुए सहायक पद पर समायोजन से पहले जंगल कौड़िया ब्लाक संसाधन पर बतौर शिक्षामित्र प्रशिक्षण प्राप्त कर उसका प्रमाण पत्र भी प्राप्त कर लिया है। अब तक फर्जीवाड़ा के आरोप में चार शिक्षामित्रों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जा चुकी है।
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विभाग के लोगों ने अभिलेखों की पड़ताल की तो मामला खुला। फिलहाल, बीएसए ने जांच बैठा दी है। उनका कहना है कि मामला गंभीर है, तथ्यों को छिपाने के आरोप में विधिक कार्रवाई की जाएगी। मुकदमा भी दर्ज होगा।
शुक्रवार को द्वितीय चरण की काउंसिलिंग के दौरान शिक्षामित्र बने वीरेंद्र के अभिलेखों की जांच हुई तो पता चला कि उसकी तैनाती तो किसी विद्यालय पर हुई ही नहीं है। उसने कैसे प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया है। इसके बाद तो विभाग की सांसें टंग गईं। आनन-फानन में अभिलेखों की जांच और पूछताछ शुरू हो गई। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कमलाकर पांडेय ने बताया कि वर्ष 2006 में ही शिक्षामित्र के लिए वीरेंद्र का चयन कैंपियरगंज स्थित प्राथमिक विद्यालय पौआ में हुआ था। लेकिन, उसके चयन पर आपत्ति जताते हुए कुछ लोग कोर्ट पहुंच गए। कोर्ट ने मामले की जांच जिलाधिकारी को सौंपी। जिलाधिकारी ने वीरेंद्र का आवेदन निरस्त कर दिया। फिर, वीरेंद्र कोर्ट चला गया। यह मामला लगातार चलता रहा। अंतत: हाईकोर्ट, जिलाधिकारी और डायट प्राचार्य ने उसके आवेदन को निरस्त कर दिया था। इसके बाद भी वीरेंद्र ने तथ्यों को छिपाते हुए सहायक पद पर समायोजन से पहले जंगल कौड़िया ब्लाक संसाधन पर बतौर शिक्षामित्र प्रशिक्षण प्राप्त कर उसका प्रमाण पत्र भी प्राप्त कर लिया है। अब तक फर्जीवाड़ा के आरोप में चार शिक्षामित्रों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जा चुकी है।
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