परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की घटती संख्या के जिम्मेदार कौन ?
आज के समय में जिस प्रकार से परिषदीय विद्यालयों में दिन प्रतिदिन लगातार बच्चों की संख्या घट रही है, वह निःसन्देह प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता की ओर इंगित कर रही है। यदि समय रहते इस पर आवश्यक कदम नहीं उठाये गये तो परिषदीय शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाएगी और अनियंत्रित हो जाएगी।
इसके लिए शासन के साथ साथ शिक्षक/शिक्षामित्र भाइयों एवं बहनों को युद्ध स्तर पर मेहनत करना होगा तभी परिषदीय शिक्षा और परिषदीय शिक्षकों की शाख बच पायेगी। इसके लिए हम सभी को सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है ताकि बच्चों के अभिभावकों के मन में परिषदीय शिक्षा और परिषदीय शिक्षकों के प्रति विश्वास और आदर भाव की बहाली हो सके। वैसे तो आमतौर पर आज शिक्षा के गिरते स्तर के लिए हम शिक्षकों को ही जिम्मेदार मान लिया जाता है जबकि हमारे देखने में ऐसा नहीं है। यदि व्यवस्था में सुधार लायी जाय तो परिषदीय शिक्षा व्यवस्था पुनः पटरी पर आ सकती है और समाज की नजरों में परिषदीय शिक्षा एक बार फिर अपना खोया हुआ सम्मान वापस पा सकता है। इसके लिए कुछ बिन्दुओं पर शासन को मजबूती से कुछ कदम उठाना होगा जैसे -
(1) आज अक्सर देखने को मिल रहा है कि हर गाँव, मुहल्लों और वार्डों में बिना मान्यता के विद्यालयों का संचालन बड़ी संख्या में किया जा रहा है। प्रदेश में लाखों नर्सरी और कान्वेन्ट विद्यालय बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं जो शिक्षा प्रांगण न होकर दुकानों के रुप में चल रहे हैं। ऐसे दुकान अंग्रेजी माध्यम व उच्च गुणवत्ता की शिक्षा देने का प्रलोभन देकर करोडों अभिभावकों को ठगने का धन्धा चला रहे हैं, जो नामांकन तो अपने विद्यालय रुपी दुकानों में करते हैं और अंक पत्र और प्रमाण पत्र दूसरे विद्यालयों का देते हैं। जिससे करोड़ों अभिभावक इनकी ठगी के शिकार हो रहे हैं। ऐसे विद्यालयों की रोकथाम के लिए शासन स्तर पर पूर्व में आदेश भी जारी किये जा चुके हैं किन्तु आश्चर्यजनक रुप से बावजूद इसके भी इनकी संख्या घटने की बजाय दिन दूनी रात चौगुनी रुप से बढ़ती जा रही है। अब चूक कहाँ है, ये शासन को गंभीरता से तलाशना होगा व कड़ाई से अपने आदेश को प्रदेश स्तर पर लागू करना होगा।
(2) आज प्रदेश में बच्चों के नामांकन को लेकर परिषदीय विद्यालयों और नर्सरी विद्यालयों में होड़ मचा हुआ है। हमारे अच्छे अध्यापक बहुत परिश्रम करने के बाद भी असफल हो जा रहे हैं जिसका प्रयोग हम स्वयं कर चुके हैं। जिसका मुख्य कारण ये है कि नर्सरी विद्यालय मात्र 3 वर्ष की उम्र में ही तमाम तरह के झूठे प्रलोभन देकर प्रेरित करके प्लेवे में नामांकन कर ले रहे हैं, 4 वर्ष की उम्र में बच्चा लोवर केजी में प्रोन्नत कर दिया जाता है, 5 वर्ष में अपर केजी में प्रोन्नत हो जाता है, 6 वर्ष का होता है तब कक्षा 1 में प्रोन्नत हो जाता है, इस प्रकार से प्रतिवर्ष प्रोन्नत करके 6 वर्ष की उम्र में बच्चों को कक्षा 1 तक ले आते हैं। कक्षा 1 में आने से पूर्व के तीन वर्षों में बच्चा कुछ पारंगत हो जाता है। अब हम गाँव/वार्डों में 6 वर्ष के बच्चे नामांकन हेतु ढूँढने जाते हैं जिसका प्रवेश हमें कक्षा 1 में करना होता है और साथ ही साथ उसकी शिक्षा का प्रारम्भ भी। अब यहाँ मामला हास्यास्पद हो जाता है और अध्यापक हँसी के पात्र बनकर स्वयं को ठगा हुआ महसूस करता है, क्योंकि परिषदीय विद्यालयों में तो 6 वर्ष की उम्र के बाद ही नामांकन की व्यवस्था है और 6 वर्ष के बच्चे तो 3 वर्ष पूर्व से ही नर्सरी विद्यालयों में नामांकित हैं। परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की घटती संख्या का यही मुख्य कारण है।
यह एक अत्यन्त ही गम्भीर विषय है, जल्द ही इस विषय पर शासन का ध्यान आकृष्ट कराया जाएगा। केवल शिक्षक ही दोषी नहीं हैं कुछ व्यवस्थाओं में सुधार लाने से ही बहुत सी समस्याओं का निदान हो सकता है। फिलहाल परिषदीय शिक्षा व्यवस्था में आधुनिक वातावरण का होना भी अति आवश्यक है जैसे - विद्यालयों की कक्षाओं में बच्चों के बैठने हेतु पटरी-मेज की समुचित व्यवस्था, बच्चों के गणवेश का रंग परिवर्तित करना, बच्चों की पुस्तकें नर्सरी पद्धति के पुस्तकों की तुलना में बेहतर, चमकीले मोटे कागज व बेहतर रंगों में प्रकाशित किया जाना, बिजली व पंखों का निश्चित रुप से सभी कक्षाओं में लगाया जाना, पीने योग्य स्वच्छ जल की व्यवस्था किया जाना इत्यादि व्यस्थाएँ प्रदेश के समस्त वद्यालयों में सुनिश्चित किया जाय एवं कड़ाई से पालन कराया जाय। इस प्रकार की छोटी मोटी समस्याओं की वजह से आज अभिभावकों का परिषदीय शिक्षा से मोह भंग हो रहा है, अभी आज भी प्राथमिक शिक्षा में अंग्रेजी का पूर्णतः अभाव है इससे भी अभिभावक नर्सरी विद्यालयों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
इन सभी सुझावों को शासन स्तर पर रखने की तैयारी है, जिसे जल्द ही प्रदेश के मा० मुख्यमंत्री जी व मा० बेसिक शिक्षा मंत्री से मिलकर लागू कराने का प्रयास किया जाएगा।
वर्तमान प्रदेश सरकार ने मुख्य रुप से प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को गंभीरता से लेते हुए बड़े पैमाने पर कदम उठाये हैं, शासन द्वारा प्राथमिक शिक्षा के सुदृढ़ीकरण हेतु मोटे बजट की व्यवस्था भी की गयी है तथा हर सम्भव प्रयास किये जा रहे हैं जिसका हम सभी शिक्षक वर्ग के लोग तहेदिल से स्वागत करते हैं तथा इसके लिए सरकार को आभार प्रगट करते हैं। तथा यह भी उम्मीद करते हैं कि प्रदेश के नौनिहालों के बेहतर भविष्य के लिए हमारे इन सुझावों पर भी वर्तमान प्रदेश सरकार कार्य करेगी।
आज नये सत्र की शुरुआत 1 अप्रैल से हो चुका है, यह सरकार द्वारा उठाया गया एक सराहनीय कदम है। इसी प्रकार शेष कमियों को भी दूर किये जाने की आवश्यकता है।
हम अपने सभी शिक्षक/शिक्षामित्र भाइयों एवं बहनों से भी अपील और उम्मीद करते हैं कि परिषदीय शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए अपने कर्तव्यों का निष्ठा से पालन करें व अपनी गिरती हुई छवि को बचाने के लिए पूरा प्रयास करें। प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता, नामांकन, उपस्थिति, ठहराव व सम्प्राप्ति पर विशेष ध्यान दें। अभिभावकों की मासिक बैठक भौतिक रुप में सुनिश्चित करें, घंटी के अनुसार समय विभाजन कर पाठ्यक्रम संचालित करें। जिससे समाज में परिषदीय शिक्षकों की गरिमा पुनः स्थापित हो सके और हम शिक्षक समाज में सर उठाकर चल सकें। अधिक से अधिक नामांकन करने की पुनः अपील के साथ आप सबको धन्यवाद।
गाजी इमाम आला
प्रदेश अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ
उत्तर प्रदेश
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आज के समय में जिस प्रकार से परिषदीय विद्यालयों में दिन प्रतिदिन लगातार बच्चों की संख्या घट रही है, वह निःसन्देह प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता की ओर इंगित कर रही है। यदि समय रहते इस पर आवश्यक कदम नहीं उठाये गये तो परिषदीय शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाएगी और अनियंत्रित हो जाएगी।
इसके लिए शासन के साथ साथ शिक्षक/शिक्षामित्र भाइयों एवं बहनों को युद्ध स्तर पर मेहनत करना होगा तभी परिषदीय शिक्षा और परिषदीय शिक्षकों की शाख बच पायेगी। इसके लिए हम सभी को सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है ताकि बच्चों के अभिभावकों के मन में परिषदीय शिक्षा और परिषदीय शिक्षकों के प्रति विश्वास और आदर भाव की बहाली हो सके। वैसे तो आमतौर पर आज शिक्षा के गिरते स्तर के लिए हम शिक्षकों को ही जिम्मेदार मान लिया जाता है जबकि हमारे देखने में ऐसा नहीं है। यदि व्यवस्था में सुधार लायी जाय तो परिषदीय शिक्षा व्यवस्था पुनः पटरी पर आ सकती है और समाज की नजरों में परिषदीय शिक्षा एक बार फिर अपना खोया हुआ सम्मान वापस पा सकता है। इसके लिए कुछ बिन्दुओं पर शासन को मजबूती से कुछ कदम उठाना होगा जैसे -
(1) आज अक्सर देखने को मिल रहा है कि हर गाँव, मुहल्लों और वार्डों में बिना मान्यता के विद्यालयों का संचालन बड़ी संख्या में किया जा रहा है। प्रदेश में लाखों नर्सरी और कान्वेन्ट विद्यालय बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं जो शिक्षा प्रांगण न होकर दुकानों के रुप में चल रहे हैं। ऐसे दुकान अंग्रेजी माध्यम व उच्च गुणवत्ता की शिक्षा देने का प्रलोभन देकर करोडों अभिभावकों को ठगने का धन्धा चला रहे हैं, जो नामांकन तो अपने विद्यालय रुपी दुकानों में करते हैं और अंक पत्र और प्रमाण पत्र दूसरे विद्यालयों का देते हैं। जिससे करोड़ों अभिभावक इनकी ठगी के शिकार हो रहे हैं। ऐसे विद्यालयों की रोकथाम के लिए शासन स्तर पर पूर्व में आदेश भी जारी किये जा चुके हैं किन्तु आश्चर्यजनक रुप से बावजूद इसके भी इनकी संख्या घटने की बजाय दिन दूनी रात चौगुनी रुप से बढ़ती जा रही है। अब चूक कहाँ है, ये शासन को गंभीरता से तलाशना होगा व कड़ाई से अपने आदेश को प्रदेश स्तर पर लागू करना होगा।
(2) आज प्रदेश में बच्चों के नामांकन को लेकर परिषदीय विद्यालयों और नर्सरी विद्यालयों में होड़ मचा हुआ है। हमारे अच्छे अध्यापक बहुत परिश्रम करने के बाद भी असफल हो जा रहे हैं जिसका प्रयोग हम स्वयं कर चुके हैं। जिसका मुख्य कारण ये है कि नर्सरी विद्यालय मात्र 3 वर्ष की उम्र में ही तमाम तरह के झूठे प्रलोभन देकर प्रेरित करके प्लेवे में नामांकन कर ले रहे हैं, 4 वर्ष की उम्र में बच्चा लोवर केजी में प्रोन्नत कर दिया जाता है, 5 वर्ष में अपर केजी में प्रोन्नत हो जाता है, 6 वर्ष का होता है तब कक्षा 1 में प्रोन्नत हो जाता है, इस प्रकार से प्रतिवर्ष प्रोन्नत करके 6 वर्ष की उम्र में बच्चों को कक्षा 1 तक ले आते हैं। कक्षा 1 में आने से पूर्व के तीन वर्षों में बच्चा कुछ पारंगत हो जाता है। अब हम गाँव/वार्डों में 6 वर्ष के बच्चे नामांकन हेतु ढूँढने जाते हैं जिसका प्रवेश हमें कक्षा 1 में करना होता है और साथ ही साथ उसकी शिक्षा का प्रारम्भ भी। अब यहाँ मामला हास्यास्पद हो जाता है और अध्यापक हँसी के पात्र बनकर स्वयं को ठगा हुआ महसूस करता है, क्योंकि परिषदीय विद्यालयों में तो 6 वर्ष की उम्र के बाद ही नामांकन की व्यवस्था है और 6 वर्ष के बच्चे तो 3 वर्ष पूर्व से ही नर्सरी विद्यालयों में नामांकित हैं। परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की घटती संख्या का यही मुख्य कारण है।
यह एक अत्यन्त ही गम्भीर विषय है, जल्द ही इस विषय पर शासन का ध्यान आकृष्ट कराया जाएगा। केवल शिक्षक ही दोषी नहीं हैं कुछ व्यवस्थाओं में सुधार लाने से ही बहुत सी समस्याओं का निदान हो सकता है। फिलहाल परिषदीय शिक्षा व्यवस्था में आधुनिक वातावरण का होना भी अति आवश्यक है जैसे - विद्यालयों की कक्षाओं में बच्चों के बैठने हेतु पटरी-मेज की समुचित व्यवस्था, बच्चों के गणवेश का रंग परिवर्तित करना, बच्चों की पुस्तकें नर्सरी पद्धति के पुस्तकों की तुलना में बेहतर, चमकीले मोटे कागज व बेहतर रंगों में प्रकाशित किया जाना, बिजली व पंखों का निश्चित रुप से सभी कक्षाओं में लगाया जाना, पीने योग्य स्वच्छ जल की व्यवस्था किया जाना इत्यादि व्यस्थाएँ प्रदेश के समस्त वद्यालयों में सुनिश्चित किया जाय एवं कड़ाई से पालन कराया जाय। इस प्रकार की छोटी मोटी समस्याओं की वजह से आज अभिभावकों का परिषदीय शिक्षा से मोह भंग हो रहा है, अभी आज भी प्राथमिक शिक्षा में अंग्रेजी का पूर्णतः अभाव है इससे भी अभिभावक नर्सरी विद्यालयों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
इन सभी सुझावों को शासन स्तर पर रखने की तैयारी है, जिसे जल्द ही प्रदेश के मा० मुख्यमंत्री जी व मा० बेसिक शिक्षा मंत्री से मिलकर लागू कराने का प्रयास किया जाएगा।
वर्तमान प्रदेश सरकार ने मुख्य रुप से प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को गंभीरता से लेते हुए बड़े पैमाने पर कदम उठाये हैं, शासन द्वारा प्राथमिक शिक्षा के सुदृढ़ीकरण हेतु मोटे बजट की व्यवस्था भी की गयी है तथा हर सम्भव प्रयास किये जा रहे हैं जिसका हम सभी शिक्षक वर्ग के लोग तहेदिल से स्वागत करते हैं तथा इसके लिए सरकार को आभार प्रगट करते हैं। तथा यह भी उम्मीद करते हैं कि प्रदेश के नौनिहालों के बेहतर भविष्य के लिए हमारे इन सुझावों पर भी वर्तमान प्रदेश सरकार कार्य करेगी।
आज नये सत्र की शुरुआत 1 अप्रैल से हो चुका है, यह सरकार द्वारा उठाया गया एक सराहनीय कदम है। इसी प्रकार शेष कमियों को भी दूर किये जाने की आवश्यकता है।
हम अपने सभी शिक्षक/शिक्षामित्र भाइयों एवं बहनों से भी अपील और उम्मीद करते हैं कि परिषदीय शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए अपने कर्तव्यों का निष्ठा से पालन करें व अपनी गिरती हुई छवि को बचाने के लिए पूरा प्रयास करें। प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता, नामांकन, उपस्थिति, ठहराव व सम्प्राप्ति पर विशेष ध्यान दें। अभिभावकों की मासिक बैठक भौतिक रुप में सुनिश्चित करें, घंटी के अनुसार समय विभाजन कर पाठ्यक्रम संचालित करें। जिससे समाज में परिषदीय शिक्षकों की गरिमा पुनः स्थापित हो सके और हम शिक्षक समाज में सर उठाकर चल सकें। अधिक से अधिक नामांकन करने की पुनः अपील के साथ आप सबको धन्यवाद।
गाजी इमाम आला
प्रदेश अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ
उत्तर प्रदेश
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