सरकार की दोहरी नीति , प्रदेश के बेरोजगार बन गए एक दूसरे के शत्रु : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

मित्रों, आज बीटीसी 2011 वालों को प्रशिक्षण पूरा किये हुए लगभग 1.5 वर्ष होने जा रहा है तथा बीटीसी 2012 (डायट) को प्रशिक्षण पूर्ण किये हुए 10 महीने होने आ रहे हैं। 90% बीटीसी प्रशिक्षित टीईटी (यूपीटीईटी/ सीटीईटी) पास हैं।
एनसीटीई के अनुसार सहायक अध्यापक (प्राइमरी) बनने के लिए बीटीसी तथा टीईटी उत्तीर्ण करना अनिवार्य है। आरटीई एक्ट 2009 के नियमों के अनुसार उत्तर प्रदेश में लाखों की संख्या में प्राइमरी अध्यापकों के पद खाली हैं। सरकार फिर भी बीटीसी प्रशिक्षितों को नौकरी न देकर शिक्षा मित्रों को नौकरी देना चाहती है जो कि किसी भी नजरिये से उचित नहीं है। नीति, कानून तथा नैतिकता कहती है कि जब आपके पास निर्धारित योग्यता रखने वाले लोग मौजूद हैं तब आप निर्धारित योग्यता न रखने वाले लोगों को पहले रोजगार नहीं दे सकते और न ही देना चाहिए।
सरकार की इसी कुनीति की वजह से आज प्रदेश के बेरोजगार एक दूसरे के शत्रु बन गए हैं। यदि समाजवादी सरकार चाहती तो पहले बीटीसी 2011 को नौकरी देती उसके बाद 58000 प्रथम बैच के शिक्षा मित्रों को नियुक्ति दे देती। तदोपरान्त बीटीसी 2012 को नौकरी देती तथा फिर 92000 द्वितीय बैच के शिक्षा मित्रों को नियुक्ति दे देती। इससे हममें आपस में बैर न होता। सभी को नौकरी मिलती और सभी खुश रहते। परन्तु सरकार ने सौतेला व्यवहार करते हुए केवल शिक्षा मित्रों को नौकरी दी जो कि निर्धारित कानूनी योग्यता भी पूर्ण नहीं करते हैं तथा समस्त योग्यता रखने वाले बीटीसी प्रशिक्षितों को बेरोजगार बिठाए रखा।
इसका प्रभाव यह पड़ा कि आज बीटीसी प्रशिक्षित तथा शिक्षा मित्रों में शत्रुता हो गई। इस शत्रुता की जिम्मेदार केवल और केवल समाजवादी पार्टी है। एकतरफ सरकार कहती है कि हमारे पास लाखों की संख्या में पद खाली हैं और दूसरी तरफ सरकार बीटीसी व टीईटी पास को नियुक्ति नहीं देना चाहती है। यह कहाँ का न्याय है? यदि सरकार ने अब भी इस दोहरी नीति का त्याग नहीं किया तो सरकार को सुप्रीम कोर्ट में यह बात बहुत भारी पड़ने वाली है।
शिक्षा मित्रों के समायोजन के सम्बन्ध में सरकार सुप्रीम कोर्ट में तर्क दे सकती है कि बीएड 31 मार्च 2014 के बाद प्राथमिक विद्यालयों हेतु मान्य नहीं है तथा एनसीटीई के 11/02/2011 के नोटिफिकेशन का हवाला दे सकती है। चलो मान लिया एक बार को। लेकिन संस्थागत बीटीसी व टीईटी पास अभ्यर्थी तो हर लिहाज से मान्य हैं। उन्हें नौकरी क्यों नहीं दी गई जबकि जो शिक्षा मित्र टीईटी पास नहीं हैं उन्हें इतनी तत्परता से नौकरी दी गई। इस सवाल पर राज्य सरकार फस जाएगी तथा अपनी किरकिरी करा लेगी। अतः सरकार को चाहिए कि वह अपनी नीतियों पर मन्थन करे तथा समय रहते उचित फैसला ले क्योंकि यह तो अटल सत्य है कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार की किरकिरी होनी ही होनी है।
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जो व्यक्ति समस्त योग्यता रखता है उसे बेरोजगार बिठा के बाकी सभी के बारे में सोचा जा रहा है। यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बीटीसी अपना हक़ लेकर रहेंगे।

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