हरदोई, जागरण संवाददाता: बेसिक शिक्षा निदेशक के बेसिक शिक्षा सचिव की अनुमति पर हुए स्थानांतरणों का हिसाब मांगने के बाद से खलबली मची है। जुगाड़ से तबादला करने वाले ही बचने को जुगाड़ तलाश रहे हैं।
परिषदीय विद्यालयों में स्थानांतरण का खेल हमेशा चलता है। चाहने वाले भटकते रहते हैं और जुगाड़ वाले स्थानांतरण करवा लेते हैं। गत शैक्षिक सत्र में विशेष कारणों को छोड़कर कोई भी तबादला न करने का आदेश दिया गया था। बीएसए को किसी खास स्थिति में ही बेसिक शिक्षा परिषद इलाहाबाद के सचिव की अनुमति पर ही तबादले की बात कही गई थी। यही खास स्थिति आम बन गई और इसी को रास्ता बनाते हुए जुगाड़ से खूब स्थानांतरण हुए। बीएसए कार्यालय में प्रस्ताव तैयार कर सचिव को भेजा गया और फिर सचिव से हरी झंडी मिलने के बाद मनचाहे विद्यालय में तबादला कर दिया गया। जो परेशान थे वह आज भी परेशान हैं। स्थानांतरण का मुद्दा शासन तक पहुंचा और अब शासन स्तर से जांच शुरू की गई है। विशेष सचिव देव प्रताप ¨सह के फरमान पर बेसिक शिक्षा निदेशक ने बीएसए से एक अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2016 व एक अप्रैल 2016 से अब तक भेजे गए प्रस्तावों का ब्योरा मांगा गया है। जिसमें अध्यापक का नाम, पद, कार्यरत विद्यालय, विकास खंड, अध्यापकों की संख्या, प्रस्तावित विद्यालय, अध्यापकों की संख्या और बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव द्वारा दी गई अनुमति का दिनांक पूछा गया है। माना जा रहा है अगर गहराई से जांच हो गई तो पोल भी खुल जाएगी।
स्थानांतरण का होता रहा ठेका
विद्यालयों में स्थानांतरण के आड़ में हमेशा से खेल खेला गया। बीएसए के पास अधिकार रहा तो भी खुलेआम खेल हुए और बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव की अनुमति के बाद स्थानांतरण का आदेश दिया गया तो भी खेल हुए। जानकारों की मानें तो सचिव की अनुमति के बाद स्थानांतरण का तो पूरा ठेका होता रहा। ठेके पर बीएसए से प्रस्ताव तैयार कराने से लेकर सचिव की अनुमति और फिर बीएसए के आदेश की बोली लगती रही।
Big Breaking :
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परिषदीय विद्यालयों में स्थानांतरण का खेल हमेशा चलता है। चाहने वाले भटकते रहते हैं और जुगाड़ वाले स्थानांतरण करवा लेते हैं। गत शैक्षिक सत्र में विशेष कारणों को छोड़कर कोई भी तबादला न करने का आदेश दिया गया था। बीएसए को किसी खास स्थिति में ही बेसिक शिक्षा परिषद इलाहाबाद के सचिव की अनुमति पर ही तबादले की बात कही गई थी। यही खास स्थिति आम बन गई और इसी को रास्ता बनाते हुए जुगाड़ से खूब स्थानांतरण हुए। बीएसए कार्यालय में प्रस्ताव तैयार कर सचिव को भेजा गया और फिर सचिव से हरी झंडी मिलने के बाद मनचाहे विद्यालय में तबादला कर दिया गया। जो परेशान थे वह आज भी परेशान हैं। स्थानांतरण का मुद्दा शासन तक पहुंचा और अब शासन स्तर से जांच शुरू की गई है। विशेष सचिव देव प्रताप ¨सह के फरमान पर बेसिक शिक्षा निदेशक ने बीएसए से एक अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2016 व एक अप्रैल 2016 से अब तक भेजे गए प्रस्तावों का ब्योरा मांगा गया है। जिसमें अध्यापक का नाम, पद, कार्यरत विद्यालय, विकास खंड, अध्यापकों की संख्या, प्रस्तावित विद्यालय, अध्यापकों की संख्या और बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव द्वारा दी गई अनुमति का दिनांक पूछा गया है। माना जा रहा है अगर गहराई से जांच हो गई तो पोल भी खुल जाएगी।
स्थानांतरण का होता रहा ठेका
विद्यालयों में स्थानांतरण के आड़ में हमेशा से खेल खेला गया। बीएसए के पास अधिकार रहा तो भी खुलेआम खेल हुए और बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव की अनुमति के बाद स्थानांतरण का आदेश दिया गया तो भी खेल हुए। जानकारों की मानें तो सचिव की अनुमति के बाद स्थानांतरण का तो पूरा ठेका होता रहा। ठेके पर बीएसए से प्रस्ताव तैयार कराने से लेकर सचिव की अनुमति और फिर बीएसए के आदेश की बोली लगती रही।
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