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पढ़ें शिक्षामित्रों ने हाईकोर्ट से सुप्रीमकोर्ट तक का सफर: क्या खोया? क्या पाया?

हाई कोर्ट से सुप्रीम का सफर : क्या खोया , क्या पाया
साथियो हाई कोर्ट में हमारी हार के बाद हमारे हमारे दोनों संघो के नेताओ ने हाई कोर्ट में ही एक होने का निर्णय लिया था। इन दोनों नेताओ के एक होने से सभी आम शिक्षा मित्रो ने ऐसी दुखद परिस्थिति में राहत की सांस ली थी की चलो अब सभी एक होकर लड़ेंगे तो हमारी सुप्रीम कोर्ट में जीत पक्की होगी।
सभी आम शिक्षा मित्रो ने अच्छा ख़ासा सहयोग भी दोनों संघो को दिया। परन्तु अपने स्वभाव के अनुरूप ही दोनों चुपके से अलग अलग हो गए । न कोई लड़ाई हुई न कोई पैसो का विवाद हुआ।
फिर अलग क्यों हुए?

अगर एक होकर लड़ते तो पारदर्शिता के साथ काम करना पड़ता क्योकि एक दूसरे के समर्थक एक दूसरे के कारनामो पर नजर रखते इसीलिए पैसा डकारने की उम्मीद न के बराबर थी। इसीलिए आपसी सहमति से दोनों अलग हो गए । शिक्षा मित्र हित से ज्यादा अच्छा अपना नेतृत्व हित लगा।

हाई कोर्ट में सोशल मिडिया पर बड़े बड़े वकीलो के नाम बताये जाते थे। कोर्ट में बहस के लिए झोला छाप वकील जाते थे।

सुप्रीम कोर्ट की किसी भी सुनवाई से पहले के स्टेटमेंट देखे उसमे बड़े वकीलो के नाम होते है। कोर्ट में उनमे से कोई नही होता है।
22 फ़रवरी के लिए पुनीत चौधरी जी ने अपने स्टेटमेंट में कहा की सरकार की तरफ से दुष्यंत दवे व् बेसिक की तरफ से राजू रामचन्द्रन रहेगे।
दोनों में से कोई नही रहा।
अभिषेक मनु सिंघवी पर शाही जी व् टेट टीम के देवीलाल दोनों अपना बता रहे है।
टीम देवीलाल ने भुगतान की रसीद भी ग्रुप पर सार्वजनिक कर दी गयी है।
मेरा मकसद किसी की बुराई करना या कमी निकालना नही वरन समय रहते अपने नेतृत्व को सही काम करने के लिए सचेत करना मात्र है।
मेरी सभी जागरूक साथियो से अपील है जो भी अच्छा कार्य करे उसे स्पोर्ट करो। झूठे सब्जबाग दिखाने वाले नेताओ का विरोध करे। गलत काम का विरोध करे। चाहे वो अपना नेता हो या दूसरे संघ का। जो नेता सुनवाई से पहले बड़े बड़े वकीलो के नाम ग्रुप पर डालते है तथा कोर्ट में कोई अन्य वकील रहता है उससे जरूर पूछ ताछ होनी चाहिए। क्योकि 172000 परिवारो की जिंदगी का सवाल है। ये हमारे संगठनो के पदों से भी बहुत बड़ा सवाल है।
ये हमारे अंतिम अवसर है इसे हमे गंवाना नही है। हमे जीत चाहिए कीमत चाहे कुछ भी चुकानी पड़े।

संजीव धारीवाल
सहारनपुर
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