इलाहाबाद : उप्र लोकसेवा आयोग से भर्तियों की जांच में सीबीआइ जैसे-जैसे
तह तक जा रही है उसी गति से बड़े मामले उजागर हो रहे हैं। सीबीआइ को अब कई
चयनितों के आरक्षण प्रमाण पत्रों पर संदेह हुआ है।
महिला आरक्षण नियमावली
और दिव्यांग आरक्षण प्रमाण पत्र का अनुचित लाभ लेने का शक गहराने पर जांच
शुरू हुई है। सीबीआइ ने आयोग से भी प्रमाण पत्र के रिकार्ड मांगे हैं। शक
पुख्ता होने पर तत्कालीन सीएमओ के फंसने की भी संभावना है।1आयोग से एक
अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 तक जितनी भी भर्तियां हुईं उनमें प्रतियोगी
परीक्षाओं में स्केलिंग और मॉडरेशन के नाम पर ही ‘खेल’ नहीं हुआ, बल्कि
अभ्यर्थियों के अंतिम चयन की प्रक्रिया में सहायक प्रमाण पत्रों में भी
मनमानी के आरोप खूब लगे थे। इनमें आरक्षण के दावे संबंधी प्रमाण पत्र को
लेकर प्रतियोगियों ने खूब हो हल्ला किया था। सपा के शीर्ष नेता की बहू के
महिला आरक्षण प्रमाणपत्र में नियम का उल्लंघन होने के सबूत तो हाईकोर्ट में
भी प्रस्तुत किए जा चुके हैं। इसमें आरोप है कि उप्र आरक्षण नियमावली 1994
के विपरीत जाकर अभ्यर्थिनी को अनुचित लाभ दिया था। कई मामले भी
प्रतियोगियों के आंदोलन में जोर-शोर से उठे थे जिनमें दिव्यांग होने का
प्रमाण पत्र तत्कालीन सीएमओ से मनमाने तरीके से बनवाकर आयोग में लगाने की
शिकायतें हैं। सीबीआइ को भी अभ्यर्थियों की ओर से ऐसी शिकायतें मिली हैं,
जिन पर सीबीआइ ने पिछले दिनों से जांच शुरू की है। पीसीएस 2015 ही नहीं,
लोअर सबऑर्डिनेट 2013, आरओ-एआरओ 2013 समेत अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में भी
आरक्षण के दावे संबंधित प्रमाण पत्र सीबीआइ ने आयोग से मांगे हैं।
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