भर्ती की जांच के दौरान शक के दायरे में आए जिला मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी किए दिव्यांग प्रमाण पत्रों को जब सत्यापन के लिए केजीएमयू लखनऊ भेजा गया तो वहां पता चला कि जो सत्यापन रिपोर्ट जारी हुई है वह यूनिवर्सिटी के नाम से फर्जी बनाई गई है। इस प्रकार के कई प्रमाण पत्र सामने आए हैं। इस पर शिक्षा निदेशक बेसिक ने यूनिवर्सिटी से उच्च स्तरीय जांच की सिफारिश की है।
दरअसल विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण के आधार पर प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापकों की नियुक्तियां हुई हैं। इसमें 2007 से 2010 तक फर्जी दिव्यांगता पर दिव्यांग कोटे में नियुक्तियां होने की शिकायत हुई। उच्चतम न्यायालय ने दिव्यांग कोटे में नियुक्त शिक्षकों की दिव्यांगता की जांच मेडिकल बोर्ड से कराने के आदेश दिया। इस पर राज्य सरकार ने लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में दिव्यांग शिक्षकों की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड गठित किया। मथुरा में 15 से अधिक दिव्यांग शिक्षकों में से अनेक नोटिस के बाद भी बोर्ड के समक्ष हाजिर नहीं हुए।
अडूकी प्राथमिक विद्यालय प्रथम में तैनात उपेंद्र सिंघल ने बेहद दबाव के बाद मेडिकल बोर्ड (केजीएमयू) का सत्यापन प्रमाण पत्र डायट को दिया। लेकिन इसी दौरान केजीएमयू का एक और पत्र डायट प्राचार्य को मिला, जिसमें उपेंद्र सहित अन्य शिक्षकों के बोर्ड के समक्ष न पहुंचने की जानकारी दी गई। इन दोनों पत्रों का पत्रवाहक के माध्यम से केजीएमयू में सत्यापन कराया गया तो फर्जीवाड़ा सामने आ गया। उपेंद्र सिंघल का दिव्यांगता प्रमाण पत्र का सत्यापन फर्जी पाया गया।
दिव्यांगता के बगैर जारी हुए प्रमाण पत्र
सीएमओ आफिस में गठित जिला मेडिकल बोर्ड ने बगैर दिव्यांगता के भी दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी किए हैं। ऐसे प्रमाण पत्रों का उपयोग शिक्षकों के साथ अन्य विभागों
की भर्ती में किया गया है।
निदेशक बेसिक शिक्षा ने अब केजीएमयू को फर्जी सत्यापन प्रमाण पत्र के मामले की उच्च स्तरीय जांच की सिफारिश की है। इससे पहले भी जनपद में दो शिक्षकों की
भी दिव्यांगता फर्जी पाई गई है।
- डॉ. मुकेश अग्रवाल, डायट प्राचार्य