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सरकारी स्कूलों के शिक्षक और शिक्षामित्र अब घर बैठे नहीं लगवा पाएंगे हाजिरी, सरकार ऐसे कसेगी नकेल

लखनऊ। प्राथमिक सरकारी स्कूलों से आए दिन गायब रहने वाले अध्यापकों पर नकेल कसने की पूरी तैयारी है, अब ऐसा साफ्टवेयर तैयार करवा रहा है कि अध्यापकों की उपस्थिति सिर्फ स्कूल में ही लग पाएगी। स्कूल से गायब रहने वाले अध्यापक हमेशा ही बेसिक शिक्षा विभाग के लिए सिर दर्द बने रहते हैं।
इसका तोड़ निकालते हुए विभाग ने निरीक्षण के साथ-साथ तकनीक का भी उपयोग करने जा रहा है।
गाँव कनेक्शन से विशेष बातचीत में बेसिक शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश के निदेशक सर्वेन्द्र विक्रम सिंह ने बताया, "प्रदेश के हर स्कूल की जियो टैगिंग है, मतलब उस स्कूल का अक्षांश और देशांतर फिक्स है, हम हर स्कूल को टैबलेट या स्मार्ट फोन देने जा रहे हैं, इसमें ऐसा साफ्टवेयर होगा जो स्कूल के अक्षांश और देशांतर से जुड़ा होगा। मतलब कही दूसरी जगह से किसी स्कूल का अध्यापक अपनी उपस्थिति नहीं लगा पाएंगे। साफ्टवेयर इसे स्वीकार नहीं करेगा।"

हर स्कूल को टैबलेट या स्मार्ट फोन दिए जाएंगे जिसमें अन्य साफटवेयर के साथ यह विशेष साफ्टवेयर भी होगा। इस साफ्टवेयर से मिड-डे मील, बच्चों की उपस्थिति व अन्य जानकारियां सीधे तुरंत ही मिल पाएंगी।"स्कूल के अक्षांश या देशांतर के दायरे में ही अध्यापकों की उपस्थिति इसमें लग सकेगी। अगर नेट की समस्या है तो डेटा दर्ज हो जाएगा और इंटरनेट के दायरे में आने पर स्वत: डिटेल डिटेल ट्रांसफर हो जाएंगी। साथ ही, अध्यापक स्कूल से संबंधित अन्य जानकारियां और फोटो अपलोड कर सकेंगे," निदेशक सर्वेन्द्र विक्रम सिंह ने बताया, "योजना मंजूर हो गई है, बहुत जल्द ही स्कूलों में इसे शुरू किया जाएगा।" उत्तर प्रदेश में कुल 1,13,114 प्राथमिक विद्यालय और 45, 624 पूर्व माध्यमिक विद्यालय हैं। प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में करीब 2.5 लाख छात्र/छात्राएं पढ़ते हैं। देश भर में सबसे अधिक प्राथमिक स्तर पर अध्यापक और टीचर का अनुपात 39 उत्तर प्रदेश में है।

स्कूल में योग से शुरू होती है बच्चों की सुबह

प्राथमिक सकूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए सीखने-सिखाने की चर्चा कैसे हो इस पर ज्यादा जोर देने की जरूरत बताते हुए निदेशक बेसिक शिक्षा ने बताया, "इसके लिए ग्राम शिक्षा समितियों के न्याय पंचायत स्तर पर होने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम में इस बात पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है कि कक्षा-एक और दो के छात्रों की जो माताएं हैं उनको बताया जाए कि बच्चे को क्या सिखाया जा रहा है। ताकि वह बच्चों की सीखने की क्षमता पर नजर रख सकें।"


इसी के साथ अब यह भी देखा जाएगा कि बच्चे कितना सीख रहे हैं, इसके लिए स्कूलों की जिम्मेदारी भी निर्धारित की जाएगी। यह भी देखा जाएगा कौन से स्कूल अच्छा काम कर रहे हैं कहां विभाग को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। "इस बार सभी प्राइमरी स्कूलों में एक कार्यक्रम शुरू कर रहे हैं, जहां बच्चों की दक्षता के आधार पर समूह बनाए जाएंगे, कक्षा एक से पांच तक के बच्चों का टेस्ट ले लेंगे, जो बच्चा जिस स्तर का है उसे उस स्तर का पढ़ाने के लिए समूह बनाएंगे, उसके बाद विशेष शिक्षण कार्यक्रम चलाया जाएगा। इस दौरान जो कक्षा में पढ़ाया जाता है उसे नहीं रोका जाएगा," सर्वेन्द्र विक्रम सिंह ने बताया।

प्रधानाध्यापक व जन सहयोग से आदिवासियों के बच्चों को मिल रही बेहतर शिक्षा

उत्तर प्रदेश में कुल 10.09 लाख टीचर सभी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं।बच्चों के छमाही और सालाना प्रदर्शन के अधार पर स्कूलों की ग्रेडिंग की जाएगी, जिससे पता चल सकेगा कि किस स्कूल में अधिक ध्यान देने की जरूरत है।

शिक्षा का गुणवत्ता के लिए तकनीक के साथ-साथ अभिभावकों के भी आगे आने की जरूरत बताते हुए सर्वेन्द्र सिंह ने बताया, "स्कूल की किताबों में क्यूआर कोड छापा गया है, अगर स्मार्ट फोन से क्यूआर कोड को स्कैन करें तो उससे जुड़ी आडियो-वीडियो की जानकारी भी अध्यापक और शिक्षक डाउनलोड कर सकते हैं, और बच्चों को मनोरंजक तरीके से पढ़ाया जा सकता है।"

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