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EXclusive : 33 रुपये देकर महिलाओं से पांच घंटे काम लेती है सरकार

उन्नाव. प्राइमरी और जूनियर स्कूलों में तैनात अध्यापकों को करीब 30-50 हजार रुपये प्रतिमाह सैलरी मिलती है। शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाकर 10 हजार रुपये कर दिया गया है, लेकिन प्राइमरी स्कूल में बच्चों का खाना बनाने के लिये लगी महिला रसोइयों को 11 महीनों तक एक हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय ही मिलता है।
ये महिलायें भी स्कूल खुलने के समय पर आती हैं और स्कूल बंद होने के बाद ही घर जाती हैं। कई विद्यालयों में रसोइयों से ही झाड़ू भी लगवाई जाती है। पत्रिका संवाददाता से बाचतीच में कई महिला रसोइयों ने अपना दर्द बयां किया, लेकिन नौकरी जाने के डर वो कैमरे के सामने बोलने को तैयार नहीं हैं। अब तो नये लोग रसोइये का काम करने के तैयार ही नहीं हैं।
रसोइयों का कहना है कि अनाज साफ करने से लेकर खाना बनाने और बर्तन में धुलने में ही उनका पूरा सयम निकल जाता है। इसके बावजूद उन्हें एक हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय ही मिलता है। आज की तारीख में एक हजार रुपयों में एक आदमी महीने भर का खर्च नहीं चला सकता है। रसोइयों ने कहा कि तमाम शिक्षक विद्यालय में झाड़ू भी उन्हीं से लगवाते हैं। बच्चों के बर्तन भी धुलने पड़ते हैं। रसोइयों ने सरकार से मानदेय बढ़ाने की मांग की है।
जूनियर शिक्षक संघ के महामंत्री अनुपम मिश्र ने बताया कि रसोइयों को मिलने वाला मानदेय बहुत ही कम है। इससे कई गुना ज्यादा पैसे घरों में बर्तन साफ करने वाली महिलाओं को मिल जाता है। मिश्र ने बताया कि आर के डी इंटर कॉलेज भुंभवार में एक समय लगभग 600 छात्रों के बीच अधिकतम 5 रसोइया रखी गई हैं। अब तो नए रसोइया इस मानदेय पर काम करने के लिए तैयार ही नहीं हैं। जो पुराने हैं वही काम कर रही हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार भी बढ़ती बेरोजगारी का लाभ बेरोजगारों का आर्थिक, शारीरिक और मानसिक शोषण कर रही है? अगर नहीं तो फिर इन्हें 5-6 घंटों के काम के बदले 33 रुपये ही क्यों दे रही है? बेसिक शिक्षा अधिकारी वीके शर्मा ने बताया कि तत्कालीन जिलाधिकारी रवि कुमार एन जी के सामने रसोइयों के कम मानदेय का मुद्दा उठा था। शिक्षकों की सिफारिश के आधार पर ही तत्कालीन जिलाधिकारी ने शासन को पत्र लिखकर रसोइयों के मानदेय में वृद्धि करने की सिफारिश की थी, लेकिन उनके ट्रांसफर होते ही मामला फाइलों में ही दब गया। वर्तमान जिलाधिकारी देवेंद्र कुमार पांडेय ने कहा कि मामला मेरे संज्ञान में नहीं है।

रसोइये को रखने का ये है नियम
उन्नाव के मिड डे मील प्रभारी रामजी ने बताया कि जनपद 3200 विद्यालयों में लगभग 2 लाख 50 हजार छात्र पढ़ते हैं। जिले में लगभग 6 हजार रसोइये काम कर रही हैं। इन्हें प्रतिमाह 1000 रुपये ही मानदेय दिया जाता है। मिड डे मील बनाने वाली रसोइयों को रखने के नियम पर चर्चा की जाये तो 25 बच्चों पर एक रसोइया, 100 बच्चों पर दो और सौ से अधिक बच्चों पर तीन रसोइया रखी जाती हैं। इनकी अधिकतम सीमा पांच है। इन रसोइयों को शासन द्वारा दी गई मीनू के अनुसार भोजन तैयार करना होता है। रसोइये का काम करने वाली महिलाओं की उम्र में कोई प्रतिबंध नहीं है।

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