प्रयागराजः इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राजकीय सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेजों समेत प्रदेश के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती पर लगी रोक की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केन्द्र सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से जानकारी मांगी है।
न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने गोरखपुर के अखिल मिश्र की याचिका पर यह आदेश दिया है।
याचिका पर केन्द्र सरकार के अधिवक्ता राजेश तिवारी ने पक्ष रखा। याची के वरिष्ठ अधिवक्ता आर.के.ओझा का कहना है कि वर्ष 2017 में दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने विभिन्न विभागों में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की थी। 18 जुलाई 2018 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने परिपत्र जारी कर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को निर्देश दिया कि वह भर्तियों पर रोक लगाये। यूजीसी ने भी 19 जुलाई 2018 को सभी विश्वविद्यालयों एवं राजकीय वित्त पोषित शिक्षण संस्थानों को शिक्षक भर्ती न करने तथा चालू भर्ती को स्थगित रखने का आदेश दिया है जिसके चलते गोरखपुर विश्वविद्यालय की भर्ती रोक दी गयी है। केन्द्र सरकार का कहना है कि भर्ती में आरक्षण मुद्दे को लेकर विवेकानंद तिवारी की एसएलपी उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है।
इस पर फैसला आने तक भर्तियां रोकी जाए। मंत्रालय के पत्र के बाद यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालय के कुलसचिवों को शिक्षकों की जारी भर्ती सहित नयी भर्ती प्रक्रिया रोकने का निर्देश दिया है। याची का कहना है कि छात्रों को शिक्षा पाने का मूल अधिकार है। किसी तकनीकी वजह से भर्तियां रोक कर शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। न्यायालय याचिका पर सुनवाई 30 नवंबर को करेगी।