primary and junior school Integration: अब प्रमोशन हो जाएगा सपना, प्राथमिक व उच्च विद्यालयों के एकीकरण या संविलयन पर एक चर्चा

38 हजार प्रधानाध्यापक की पोस्ट पूरे प्रदेश में एक ही झटके में समाप्त कर दी गयी सरकार के द्वारा ठीक उसी तरह जिस तरह पुरानी पेंसन समाप्त की गई थी ।आज फिर वही गलती पुराने लोग कर रहे है कि मेरा क्या नुकसान है ,लेकिन नए अध्यापकों का सम्पूर्ण नुकसान हो रहा है प्रमोशन उनके लिए सपना हो जाएगा।

👉1- RTE का सीधा उलंघन है।
👉2- इस आदेश में एक तरफ तो लिखा है। कि  दोनों विद्यालय का एक ही प्रधानाध्यापक रहेगा। और दूसरी तरफ लिखा है। दोनो  प्रधानाध्यापकों को हटाया नही जायेगा।
👉3- अंग्रेजी मीडियम विद्यालयो का प्रकरण। काउंसलिंग द्वारा चयन हुआ और एक ही परिसर में है।
👉यहाँ तो मान सम्मान को भी ठेस पहुँच रही है।।
👉प्रमोशन तो इस एकीकरण से खत्म ही समझिए।।
इतिहास आज फिर आपके चौखट पर अपने आपको दोहरा रहा है ।
क्या इसको भी चार पांच साल के बाद मुद्दा बनाकर राजनीति की रोटियां सेकी जाएंगी ? प्रदेश के सारे संगठन के शूरमा क्यों मौन साध गए क्या एक ही तीर में सारे शूरमा चित हो गए किसी की भी इस मुद्दे पर आवाज नहीं निकल रही है । मित्रों समय रहते विरोध नहीं हुआ तो आने वाला इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।
शिक्षक साथियों आप सभी जानते है कि उत्तर प्रदेश शासन द्वारा एक ही कैम्पस मै चलने वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों का एकीकरण किये जाने का आदेश जारी किया गया है।
हमारे बहुत से साथी इस आदेश से प्रभावित हो रहे है उनके वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार शिथिल हो जाएँगे ।
आदेश कहता है कि प्रधान अध्यापक का पद बना रहेगा ।
👉लेकिन विचारणीय बिंदु ये है कि जब प्रधान अध्यापक के अधिकारों पर रोक लग जायेगी तो प्रधान अध्यापक पद का क्या फायदा केवल नाम के प्रधान अध्यापक रह जायेगें।
दूसरे इससे भी दुःखद बिंदु ये है कि बेसिक शिक्षा विभाग से ये पद आने वाले समय में समाप्त ही हो जाएंगे इस आदेश से ये प्रतीत होता है। जो कि बहुत बड़ी त्रासदी है। इस शासनादेश के विरुद्ध प्रयास करना चाहिए कि कोर्ट से राहत मिलें और इसी के साथ साथ प्राथमिक शिक्षक संघ को कुम्भकर्णी नींद से जगाने का भी प्रयास करना चाहिए।
उनसे सवाल करें कि संगठन इस मुद्दे पर क्या कर रहा है। प्राथिमक शिक्षक संगठन के पदाधिकारी इस मुद्दे को सरकार के सामने उठाये और राहत दिलवाए।
कोर्ट के मामले में अक्सर साथी ये सोचते है कि कोई दूसरा चला जाये ,कोई दूसरा समय,पैसा खर्च करें जो कि संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है।
आप सभी इस मुद्दे को हल्के में ना लें एक साथ मजबूती के साथ मिलकर लड़ें तभी कामयाबी मिल सकती है। कोर्ट में साथ दें अपना नाम दें कि आप साथ देंगे। अन्यथा ये समझा जाएगा कि आप केवल तमाशा देख रहे है।  जागो नींद से जागो अगर नही जागे तो कुछ भी नही होगा ।
कुँए में दूध वाली कहावत मत बनाओ साथ दो।
कोर्ट की सभी बातें खुली किताब रहेगी।
अब हम सब को ये सोचना हैं कि ये आदेश कैसे  निष्प्रभावी किया जाये। जिससे हम सबका मान सम्मान और अधिकार बच सकें। इस आदेश में जो कमियां हैं वो सब नोट करनी हैं। जिससे हाईकोर्ट में राहत मिल सके। स्टे हो सके।
आलेख - अशोक द्विवेदी कोरांव प्रयागराज