सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश राज्य में 69,000 सहायक अध्यापकों की भर्ती से जुड़े एक मामले में उत्तर प्रदेश शिक्षा मित्र एसोसिएशन द्वारा दायर अपीलों को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति यू यू ललित की
अध्यक्षता वालीपीठ ने इस फैसले में आगे दर्ज किया कि राज्य द्वारा शिक्षा
मित्रों को अगली भर्ती परीक्षा में भाग लेने के लिए एक आखिरी मौका दिया
जाएगा और उसके तौर-तरीकों को राज्य द्वारा तैयार किया जाएगा।
इसके
अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार को मई, 2020 में घोषित परिणाम के अनुसार सहायक
अध्यापकों (शिक्षा मित्रों) के शेष 37,339 पदों को भरने के लिए शीर्ष
न्यायालय द्वारा निर्देश दिया गया है। इन पदों को 9 जून के आदेश के तहत
रिक्त रखा गया जिसमें राज्य में चयन प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी।
24 जुलाई को, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका के फैसले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मुख्य
मामला उत्तर प्रदेश शिक्षा मित्र द्वारा दायर किया गया था जिसमें इलाहाबाद
उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें भर्ती के लिए उच्च
कट-ऑफ अंक रखने के राज्य के फैसले को शामिल किया गया और प्राथमिक
विद्यालयों में 69,000 शिक्षकों की भर्ती शुरू की गई।
यूपी सरकार
ने 7 जनवरी, 2019 को अधिसूचना जारी करते हुए आरक्षित और अनारक्षित
श्रेणियों के लिए कट-ऑफ अंक बढ़ाकर क्रमश: 65 और 60 कर दिया था, जिससे
32,629 शिक्षा मित्र अभ्यर्थी बाहर हो गए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में 69,000 शिक्षकों की भर्ती के लिए उच्चतर कट-ऑफ अंक रखने के राज्य सरकार के फैसले की पुष्टि की थी।
3
जून को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में 69,000 सहायक बेसिक
शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक लगा दी थी। ये तब हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने
उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश
सरकार से जवाब मांगा था, जिसमें इन नियुक्तियों के लिए कट-ऑफ अंक बढ़ाने के
राज्य के फैसले को बरकरार रखा था।
6 मई के अपने फैसले में, उच्च
न्यायालय ने राज्य सरकार को अगले तीन महीनों के भीतर उत्तर प्रदेश में
69,000 सहायक बेसिक शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी करने का
निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई को राज्य सरकार से कहा था कि वह नियुक्तियों के लिए अपनाई गई प्रक्रिया को एक चार्ट के माध्यम से बताए।
न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति एम एम शांतनगौदर और न्यायमूर्ति विनीत सरन की एक पीठ ने शुरू में उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था। हालांकि, बाद में इसने अपने आदेश को संशोधित कर दिया और राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए मामले को 6 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
उत्तर प्रदेश सरकार को यह समझाने के लिए निर्देशित किया गया
था कि उसने सामान्य श्रेणी के लिए 45 प्रतिशत कट-ऑफ अंक और आरक्षित वर्ग
के लिए 40 प्रतिशत के पहले मानदंड क्यों बदल दिए थे।
शीर्ष अदालत
ने 9 जून को उत्तर प्रदेश सरकार को सहायक अध्यापकों (शिक्षा मित्र) के
37,339 पद खाली रखने के निर्देश दिए थे, जिससे राज्य में शिक्षकों की चयन
प्रक्रिया जारी रही।
यह उक्त आदेश पारित करने के बाद याचिकाएं 4 जुलाई के लिए सूचीबद्ध की गई थीं। हालांकि, राज्य सरकार ने भ्रम की स्थिति के कारण भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी थी, जो कि शेष पदों को भरने के लिए नहीं थी।
न्यायालय ने कहा कि यह रिकॉर्ड से पता चला था कि यूपी की राज्य सरकार 21 मई के आदेश के बावजूद सभी पदों को भरने के लिए चयन के साथ आगे बढ़ रही थी, जिसमें शीर्ष अदालत ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए निर्देश दिया था कि, "सभी शिक्षा मित्र जो वर्तमान में सहायक शिक्षक के रूप में अपने पद धारण कर रहे हैं, उन्हें परेशान नहीं किया जाएगा।"