सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यूपी सरकार के हलफनामे को रिकॉर्ड पर लिया जिसमें कहा गया था कि नए कट ऑफ की वजह से नौकरी से वंचित रह गए शिक्षामित्रों को अगले साल एक और मौका दिया जाएगा. दरअसल, छात्रों के एक गुट का कहना था कि सरकार का परीक्षा के बाद कट ऑफ निर्धारित करना गलत है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 6 मार्च को यूपी सरकार के फैसले को सही मानते हुए भर्ती प्रक्रिया को तीन महीने के अंदर पूरा करने का आदेश दिया था. लेकिन कट ऑफ मार्क्स को लेकर  शिक्षामित्रों ने विरोध किया और इलाहाबाद HC के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

शिक्षामित्रों का कहना है कि लिखित परीक्षा में टोटल 45357 शिक्षामित्रों ने फॉर्म डाला था, जिसमें से 8018 शिक्षामित्र 60-65% के साथ पास हुए. लेकिन इसका कोई डेटा नहीं है कि कितने शिक्षामित्र 40-45 के कटऑफ पर पास हुए. इसीलिए 69000 पदों में से 37,339 पद रिजर्व करके सहायक शिक्षक भर्ती की जाए या फिर पूरी भर्ती प्रक्रिया पर स्टे किया जाए. उनकी दलील है कि असिस्टेंट टीचर की भर्ती परीक्षा में सामान्य वर्ग के लिए कटऑफ 45 फीसदी और रिजर्व कैटगरी के लिए 40 फीसदी रखा गया था. लेकिन पेपर के बीच में उसे बढ़ा दिया गया और उसे 65-60 फीसदी कर दिया गया. ये गैर कानूनी कदम है क्योंकि पेपर के बीच में कटऑफ नहीं बढ़ाया जा सकता है.

शिक्षामित्रों ने यह भी कहा कि बीएड स्टूडेंट इस असिस्टेंट टीचर की परीक्षा के लिए पात्रता नहीं रखते क्योंकि उन्होंने ब्रिज कोर्स नहीं किया है. असिस्टेंट टीचरों के लिए ये जरूरी है कि आवेदक छह महीने का ब्रिज कोर्स करें. सुनवाई के दौरान जस्टिस ललित ने पूछा कि क्या 40/45 कटऑफ को पार करने वाले सभी 40 हजार शिक्षामित्र और बाकी बचे 29 हजार पदों पर दूसरे कैंडिडेट सलेक्ट होंगे. इस पर ASG ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि योग्यता के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता है. हमारे पास 50 हजार पद हैं और प्रति वर्ष 10,000 लोग रिटायर हो रहे हैं. हम अलग से भर्ती में मौका देने को तैयार हैं लेकिन योग्यता के साथ.