*2017 से 2021 तक सिस्टम और सरकारों ने जो गम दिया उस पर एक नजर*
*हम टेट पास और 15 से 20 वर्षों का शिक्षण अनुभव प्राप्त शिक्षामित्रों की व्यथा को सिस्टम और सरकार ने अनसुना किया*
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वर्ष 2001 से प्राथमिक शिक्षा को बेहद अल्प मानदेय में अपने खून पसीने से सींचने और कड़े संघर्षों के बाद वर्ष 2014-15 में तत्कालीन प्रदेश सरकार की कृपा से यूपी के 137000 शिक्षामित्रों का समायोजन सहायक अध्यापक पद पर हो गया और उन्हें सम्मानजनक वेतन मिलने लगा। मगर प्राथमिक में अपनी नियुक्ति की आस लगाए कुछ बीटीसीयन और प्राइमरी में घुसपैठ करने को ललायित बी.एड के लोगों ने इस समायोजन को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चैलेन्ज कर दिया।
12/09/2015 को कोर्ट से समायोजन रद्द होने का जज्मेन्ट हो गया। इसके पीछे तत्कालीन अखिलेश सरकार और HC के चीफ जस्टिस के बीच लोकायुक्त की नियुक्ति के तनाव को माना गया।
शिक्षामित्र मामला पहुँचा सुप्रीम कोर्ट, 25 जुलाई 2017 को वहाँ से भी समायोजन निरस्त होने का आदेश बहाल हुआ। लोग इसे भी राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं। खैर 25 जुलाई के फैसले में कोर्ट ने एक लाइन जोड़ कर टेट पास शिक्षामित्रों को थोड़ी राहत देने की कोशिश की। इसके तहत टेट पास कर चुके शिक्षामित्रों को उनके अनुभव के आधार पर अगली दो भर्तियों में वेटेज दिये जाने और आयु सीमा में कुछ छूट दिए जाने का प्रावधान था।
NCTE की गाइडलाइन के अनुसार अब तक टेट पास बीटीसी अभ्यर्थियों के एकेडमिक रिकार्ड के अंकों के आधार पर मेरिट बनाकर भर्ती होती थी।
25 जुलाई 2017 के आदेश के क्रम में वेटेज मिल जाने से शिक्षामित्रों का पलड़ा भारी देख प्रदेश सरकार ने पैंतरा बदला और देश के इतिहास में पहली बार प्राथमिक की भर्ती के लिए शिक्षक भर्ती परीक्षा (सुपर टेट) करवाने का आदेश कर दिया। आनन फानन में भारी भरकम सेलेबस जैसे-तैसे तैयार करके थोप दिया गया।
25 जुलाई के आदेश के क्रम में पहली भर्ती के लिए 137000 का 50% मतलब 68500 सीटों के लिए विज्ञप्ति निकली जिसमें पासिंग मार्क रखा गया 40% (आरक्षित श्रेणी) और 45% (अनारक्षित)।
कुछ ही दिनों बाद सरकार को यह पासिंग मार्क ज्यादा भारी लगने लगा तो उसने इसे घटा कर 30 और 33%, कर दिया। इससे नाराज कुछ अभ्यर्थियों ने मामला कोर्ट में पहुँचा दिया और कोर्ट ने *खेल शुरू होने के बाद बीच में खेल के नियम नहीं बदल सकते* के आधार पर सरकार के 30-33% वाले आदेश को रद्द कर दिया।
इस बीच शिक्षामित्रों के आन्दोलनों के चलते सरकार की निगाहें इनके लिए और टेढ़ी होती गईं।
137000 का पार्ट-1 यानी 68500 पदों पर निकली भर्ती तमाम विवादों के बीच जैसे तैसे शुरू कर दी गई और सितम्बर 2018 में लगभग 41500 अभ्यर्थियों को नियुक्ति मिल सकी।
अब सरकार ने 137000 के पार्ट-2 की तैयारी शुरू कर दी और 05/12/2018 को इसकी विज्ञप्ति जारी हो गई। विज्ञप्ति में पासिंग मार्क का जिक्र न करके अभ्यर्थियों को अन्धेरे में रखा गया। सबने समझा इस बार पासिंग मार्क शून्य रहेगा, और ऊपर की मेरिट से 69000 सीटें भरी जाएंगी। 06/01/2019 को परीक्षा हो गई। सबने राहत की साँस ली, मगर अगले ही दिन 07/01/2019 को आदेश जारी करके सरकार ने पासिंग मार्क लगाने का फरमान दे दिया, वह भी भारी भरकम और सम्भवत: दुनिया का सबसे हाईएस्ट पासिंग मार्क 60 और 65% ।
सबके होश उड़े, मामला हाईकोर्ट पहुँचा लखनऊ की सिंगल बेंच ने अपने लम्बे चौड़े आदेश में सुप्रीम कोर्ट के 25 जुलाई 2017 के आदेश के आलोक में 69000 शिक्षक भर्ती को 68500 का पार्ट-2 बताते हुए इसमें भी पुराना पासिंग मार्क 40-45% बहाल कर दिया।
अब सरकार ने इस मामले को डबल बेन्च में चैलेन्ज कर दिया। जस्टिस इरशाद अली की अगुवाई वाली बेन्च ने सुनवाई लगभग पूरी कर ली, इस दौरान 40-45% के प्रति केस बढ़ता दिखा। केस उनकी बेन्च से हटा कर पंकज जायसवाल की बेन्च को सौंपा गया। इससे लोगों की धड़कने बढ़ीं और अनहोनी की आशंका ने परेशान किया।
जनवरी-फरवरी में फैसला रिजर्ब हो गया और अब लाकडाउन के दौरान 6 मई 2020 को 60-65% के बहाली का आदेश हो गया। सरकार इस भर्ती को जैसे तैसे निपटाने चक्कर में थी और एक हफ्ते में ही नियुक्ति पत्र बाँटने की कोशिश में थी कि मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया, तमाम कोशिश और सुनवाई के बाद वहाँ से भी निराशा हाथ लगी।
*इस भर्ती ने कई अनसुलझे सवाल खड़े कर दिए*
▶68500 में खेल के बीच में नियम न बदलने वाली दलील यहाॅ क्यों नहीं लागू हुई?
▶ 65% जैसा हाई पासिंग मार्क क्या उचित था?
▶ जब पूरे देश में NCTE के रूल के मुताबिक टेट पास बीटासी अभ्यर्थियों के एकेडमिक मेरिट के आधार पर भर्ती हो रही है और अब तक यूपी में भी होती आई है तो इन भर्तियों (68500 व 69000) में सुपर टेट जैसी परीक्षा थोप कर क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट के 25 जुलाई 2017 के आदेश में शिक्षामित्रों को मिलने वाले वेटेज को निष्प्रभावी करने की कोशिश नहीं कर रही थी?
▶ क्या ऐसा करना न्यायालय की अवमानना का विषय नहीं बनता?
▶ यह भर्ती परीक्षा सहायक अध्यापक पद के लिए थी न कि प्रशिक्षु शिक्षक के लिए फिर सहायक अध्यापक पद के लिए अहर्ता पूरी न रखने वाले बीएड अभ्यर्थियों को इस परीक्षा में सम्मिलित कैसे कर लिया गया?
▶बीएड अभ्यर्थियों को प्राइमरी में घुसेड़ने की जल्दबाजी में उनके लिए जरूरी छ: माह का ब्रिज कोर्स करवाए बिना उन्हें सहायक अध्यापक कैसे बना दिया जा सकता है?
✍🏻मोहममद अहमद खान
(सिस्टम, मीडिया संस्थानों और कुछ जिम्मेदारान को 2020 में मेरे द्वारा लिखे पत्र का सम्पादित अंश)