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शिक्षक प्रदेश सरकार का स्वच्छ और अच्छा चेहरा है, इसपर मुस्कान रहनी चाहिए। प्रोमोशन और ट्रांसफर जैसे मुद्दों को खींचना समझ से परे है

उत्तर प्रदेश सरकार का एकमात्र कर्मचारी जो रोज प्रदेश की जनता के बीच होता है, उससे संपर्क करता है, वार्तालाप करता है, कुलमिलाकर सरकार की नुमाइंदगी करता है, सरकार का चेहरा होता है। 
पर अफसोस है की वो असंतुष्ट है। 


उससे हर वो काम लिया जाता है जिसके लिए वो योग्य नहीं। 
हर सरकारी योजना बिना उसके सहयोग अधूरी ही है 
इसके बावजूद उसे ना समय से कोई प्रोमोशन ना ही की अन्य सुविधाएं! 
काम करें सब शिक्षक ,मलाई और शाबाशी अधिकारी की।
किसी नेता मंत्री से शिक्षक प्रोत्साहन के नाम पर दो शब्द नहीं पर चेकिंग के नाम पर शिक्षकों पर कार्यवाही सरकारी धर्म बना है। 
लेखपाल, पंचायत सचिव,चपरासी सब शिक्षक की जाँच करेंगे तब देश का भविष्य कितना उज्ज्वल होगा? खुद समझिये। 
शिक्षक पर विश्वास नहीं पर भृष्ट कर्मचारी को जाँच अधिकारी? 
अरे कभी शिक्षक को भी auditer बना के देखो! 
शिक्षक प्रदेश सरकार का स्वच्छ और अच्छा चेहरा है, इसपर मुस्कान रहनी चाहिए। 
प्रोमोशन और ट्रांसफर जैसे मुद्दों को खींचना समझ से परे है! 
कठिन से कठिन मुद्दों पर त्वरित निर्णय लेने वाली यशश्वी मुख्यमन्त्री जी की कलम शिक्षक हित के निर्णय में क्यों ठिठक जाती है? ? 
क्या उन्हें गुमराह किया जा रहा है?
आज छोटी छोटी फैक्टरी के वर्कर भी मेडीक्लैम् पाते हैं पर बेसिक के मास्टर को कुछ नहीं! 
सुरक्षा और सम्मान इतना है की आये दिन ग्राम प्रधान या रास्ते चलते शिक्षकों की कुटाई-पिटाई की खबरें समाचारों में आम लगने लगी हैं। 
जब देश प्रदेश की सत्ता स्वयम शिक्षक सम्मान नहीं देगी तबतक उसके मातहत कैसे करेंगे? 
बिना शिक्षक सम्मान के देश, प्रदेश ,समाज , जाति, धर्म का उन्नयन असंभव है! 
बेसिक में  भेदभाव इतना है की एक बार जो शहरी क्षेत्र पा गया वो अव्वल दर्जे के pcs अधिकारी से कम नही। जिंदगीभर घर के पास, शहर के मजे, कम दूरी, अधिक मकान भत्ता! और क्या चाहिए, दोयम दर्जे के मास्साब् जाते रहें रोज 100 दूर। 
कोई नीति नहीं , कोई नियम नहीं। 
बस रोज के 8-10 निकालकर दिखाना की जोरों का सुधार हो रहा है पर जमीं पर अकेला मास्टर उन आदेशों से लदा खड़ा दिखाई देता है बस। 
सच बोलो तो लोग भाजपा - सपा आरोप लगाने लगते हैं पर हकीकत में आम शिक्षक पीड़ित है, दुखी है, अधिकारीयों से डरा - सहमा है, वो बिल्कुल स्वतन्त्र नहीं! हर वक्त आदेश ही आदेश! 
कभी भरोसा भी हो।

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