अनुकंपा नियुक्ति में विवाहित पुत्री के हक पर सरकार से मांगा जवाब
इलाहाबाद। सरकारी नौकरियों में मृतक आश्रितों को दी जाने वाली अनुकंपा नियुक्ति में विवाहित पुत्रियों से भेदभाव करने का मामला हाईकोर्ट में उठाया गया है। यहां याचिका दाखिल कर वैवाहिक स्थिति और लिंग के आधार पर नियुक्ति देने में भेदभाव करने को चुनौती दी गई है।
प्रकरण पर सुनवाई कर रही मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पीठ इस प्रकरण पर प्रदेश सरकार के जवाब दाखिल करने के बाद चार दिसंबर को सुनवाई करेगी।
आजमगढ़ की विमला श्रीवास्तव की ओर दाखिल याचिका में प्रदेश सरकार की अनुकंपा नियुक्ति नियमावली की धारा दो (सी) 3 की वैधानिकता पर सवाल उठाया गया है। याची के वकील संतोष श्रीवास्तव की दलील है कि इस धारा में दी गई कुटुंब की परिभाषा में पुत्र, दत्तक पुत्र और अविवाहित पुत्री को शामिल किया गया है। आपत्ति अविवाहित शब्द है। किसी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति के आधार पर नियुक्ति देने में भेदभाव करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है। यह अनुच्छेद अवसर की समानता का अधिकार प्रदान करते हैं। इसी प्रकार से मात्र पुत्री होने के आधार पर विवाहित और अविवाहित होने का भेदभाव करना भी गैर संवैधानिक है। क्योंकि यह लिंग के आधार पर भेदभाव करता है। जबकि पुत्र के साथ ऐसी शर्त नहीं जोड़ी गई है।
खंडपीठ ने इस प्रकरण पर दाखिल अन्य याचिकाओं को भी साथ में जोड़ने का आदेश देते हुए महाधिवक्ता को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा है। याची के पिता कलेक्ट्रेट आजमगढ़ में क्लर्क थे। सेवाकाल में उनकी मृत्यु हो गई। याची उनकी एकमात्र पुत्री है। उसने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की मांग की मगर डीएम ने उसके विवाहित होने के आधार पर नियुक्ति देने से इंकार कर दिया है।
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इलाहाबाद। सरकारी नौकरियों में मृतक आश्रितों को दी जाने वाली अनुकंपा नियुक्ति में विवाहित पुत्रियों से भेदभाव करने का मामला हाईकोर्ट में उठाया गया है। यहां याचिका दाखिल कर वैवाहिक स्थिति और लिंग के आधार पर नियुक्ति देने में भेदभाव करने को चुनौती दी गई है।
प्रकरण पर सुनवाई कर रही मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पीठ इस प्रकरण पर प्रदेश सरकार के जवाब दाखिल करने के बाद चार दिसंबर को सुनवाई करेगी।
आजमगढ़ की विमला श्रीवास्तव की ओर दाखिल याचिका में प्रदेश सरकार की अनुकंपा नियुक्ति नियमावली की धारा दो (सी) 3 की वैधानिकता पर सवाल उठाया गया है। याची के वकील संतोष श्रीवास्तव की दलील है कि इस धारा में दी गई कुटुंब की परिभाषा में पुत्र, दत्तक पुत्र और अविवाहित पुत्री को शामिल किया गया है। आपत्ति अविवाहित शब्द है। किसी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति के आधार पर नियुक्ति देने में भेदभाव करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है। यह अनुच्छेद अवसर की समानता का अधिकार प्रदान करते हैं। इसी प्रकार से मात्र पुत्री होने के आधार पर विवाहित और अविवाहित होने का भेदभाव करना भी गैर संवैधानिक है। क्योंकि यह लिंग के आधार पर भेदभाव करता है। जबकि पुत्र के साथ ऐसी शर्त नहीं जोड़ी गई है।
खंडपीठ ने इस प्रकरण पर दाखिल अन्य याचिकाओं को भी साथ में जोड़ने का आदेश देते हुए महाधिवक्ता को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा है। याची के पिता कलेक्ट्रेट आजमगढ़ में क्लर्क थे। सेवाकाल में उनकी मृत्यु हो गई। याची उनकी एकमात्र पुत्री है। उसने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की मांग की मगर डीएम ने उसके विवाहित होने के आधार पर नियुक्ति देने से इंकार कर दिया है।
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