शानदार रिकार्ड रखने वाले काबिल शिक्षामित्र भी प्राइमरी स्कूलों में टीचर्स हो सकते हैं। राज्य सरकार ने कोर्ट को लिखित बताया है कि पदनाम बदलकर शिक्षामित्रों की नौकरी बरकरार रख सकते हैं। सरकार के सुझाव पर कोर्ट भी रजामंद है।
लखनऊ. सुप्रीमकोर्ट में शिक्षामित्रों के बारे में अहम फैसला मुकर्रर हो चुका है। राज्य सरकार और शिक्षामित्रों की दलील सुनने के बाद तय किया गया है कि शानदार रिकार्ड रखने वाले काबिल शिक्षामित्र भी प्राइमरी स्कूलों में टीचर्स हो सकते हैं। राज्य सरकार ने कोर्ट को लिखित बताया है कि पदनाम बदलकर शिक्षामित्रों की नौकरी बरकरार रख सकते हैं। सरकार के सुझाव पर कोर्ट भी संभवत: रजामंद है। बहरहाल, शिक्षामित्रों के वकील की लिखित दलीलों को देखने के बाद ही अगले सप्ताह कोर्ट अपना फैसला सार्वजनिक करेगा। अलबत्ता कोर्ट ने ऐसे शिक्षामित्रों की नौकरी पर मुहर लगा दी है, जिसके पास नियुक्ति पत्र है और अध्यापन का दस साल से ज्यादा का अनुभव
नियुक्ति पत्र मिल चुका है तो नौकरी कायम रहेगी
मामले में पिछली सुनवाई के दौरान शिक्षामित्रों के वकीलों ने कोर्ट से कहा कि सहायक शिक्षकों के मामले में कोर्ट ने बतौर सहायक अध्यापक नियुक्त हो चुके शिक्षामित्रों को नहीं छेडऩे की बात कही है, ऐसे में सुप्रीमकोर्ट से भी ऐसे शिक्षामित्रों को राहत मिलनी चाहिए, जिन्हें नियुक्ति पत्र मिल चुका है। वकील ने कहाकि ऐसे शिक्षामित्रों के पास शैक्षणिक योग्यता के अलावा 17 साल पढ़ाने का अनुभव भी है। इस पर पीठ ने कहा कि ऐसे शिक्षामित्रों को नहीं छेड़ा जाएगा। शिक्षामित्रों के वकील सलमान खुर्शीद ने कोर्ट से ये भी कहा कि अगर टीईटी जैसी जरूरी योग्यता की अनिवार्यता है तो उसे पूरा करने के लिए कुछ समय मिलना चाहिए। सुप्रीमकोर्ट को बताया गया कि हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद करते समय बहुत से पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया है। कोर्ट ने सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
डेढ़ साल पहले हाईकोर्ट ने रद्द किया था समायोजन
उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों के समायोजन के मामले में सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई बुधवार को अतिरिक्त समय में पूरी हुई। इसके बाद कोर्ट ने शिक्षा सुधार को प्राथमिकता बताते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट ने पक्षकारों को लिखित दलीलें दाखिल करने के लिए सात दिन का समय दिया है। गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट 12 सितंबर 2015 उत्तर प्रदेश में 172000 शिक्षामित्रों का प्राथमिक विद्यालयों के सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजन रद कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार और शिक्षामित्र सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। ध्यान रहे कि यह मामला 172000 शिक्षामित्रों के सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजन का है, अभी तक 132000 शिक्षामित्र सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित हो चुके हैं और सुप्रीमकोर्ट से हाईकोर्ट के आदेश पर रोक के चलते पढ़ा रहे हैं। उत्तर प्रदेश दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार यादव का कहना है कि उन्हें सुप्रीमकोर्ट से न्याय मिलने की उम्मीद है। वे कहते हैं कि उन्हें भरोसा है कि कोर्ट शिक्षामित्रों के हित में फैसला देगा।
पदनाम होगा शिक्षा सहायक, मानदेय नहीं वेतन मिलेगा
राज्य सरकार के सुझाव के मुताबिक, शिक्षामित्रों को फिलहाल सहायक अध्यापक पदनाम देने के बजाय शिक्षा सहायक पदनाम देकर नौकरी कायम रख सकती है। इसी के साथ शिक्षामित्रों को एक साल की अवधि में टीईटी उत्तीर्ण करने का विकल्प भी मिलेगा। सरकार के मुताबिक, टीईटी उत्तीर्ण करने से पहले शिक्षा सहायकों को बीस हजार रुपए का निश्चित वेतन मिलेगा। निर्धारित अवधि में टीईटी उत्र्तीण करने के बाद नए वेतनमान पर नियुक्ति मिल जाएगी। अदालत ने इस सुझाव को बेहतरीन माना है।
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लखनऊ. सुप्रीमकोर्ट में शिक्षामित्रों के बारे में अहम फैसला मुकर्रर हो चुका है। राज्य सरकार और शिक्षामित्रों की दलील सुनने के बाद तय किया गया है कि शानदार रिकार्ड रखने वाले काबिल शिक्षामित्र भी प्राइमरी स्कूलों में टीचर्स हो सकते हैं। राज्य सरकार ने कोर्ट को लिखित बताया है कि पदनाम बदलकर शिक्षामित्रों की नौकरी बरकरार रख सकते हैं। सरकार के सुझाव पर कोर्ट भी संभवत: रजामंद है। बहरहाल, शिक्षामित्रों के वकील की लिखित दलीलों को देखने के बाद ही अगले सप्ताह कोर्ट अपना फैसला सार्वजनिक करेगा। अलबत्ता कोर्ट ने ऐसे शिक्षामित्रों की नौकरी पर मुहर लगा दी है, जिसके पास नियुक्ति पत्र है और अध्यापन का दस साल से ज्यादा का अनुभव
नियुक्ति पत्र मिल चुका है तो नौकरी कायम रहेगी
मामले में पिछली सुनवाई के दौरान शिक्षामित्रों के वकीलों ने कोर्ट से कहा कि सहायक शिक्षकों के मामले में कोर्ट ने बतौर सहायक अध्यापक नियुक्त हो चुके शिक्षामित्रों को नहीं छेडऩे की बात कही है, ऐसे में सुप्रीमकोर्ट से भी ऐसे शिक्षामित्रों को राहत मिलनी चाहिए, जिन्हें नियुक्ति पत्र मिल चुका है। वकील ने कहाकि ऐसे शिक्षामित्रों के पास शैक्षणिक योग्यता के अलावा 17 साल पढ़ाने का अनुभव भी है। इस पर पीठ ने कहा कि ऐसे शिक्षामित्रों को नहीं छेड़ा जाएगा। शिक्षामित्रों के वकील सलमान खुर्शीद ने कोर्ट से ये भी कहा कि अगर टीईटी जैसी जरूरी योग्यता की अनिवार्यता है तो उसे पूरा करने के लिए कुछ समय मिलना चाहिए। सुप्रीमकोर्ट को बताया गया कि हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद करते समय बहुत से पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया है। कोर्ट ने सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
डेढ़ साल पहले हाईकोर्ट ने रद्द किया था समायोजन
उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों के समायोजन के मामले में सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई बुधवार को अतिरिक्त समय में पूरी हुई। इसके बाद कोर्ट ने शिक्षा सुधार को प्राथमिकता बताते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट ने पक्षकारों को लिखित दलीलें दाखिल करने के लिए सात दिन का समय दिया है। गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट 12 सितंबर 2015 उत्तर प्रदेश में 172000 शिक्षामित्रों का प्राथमिक विद्यालयों के सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजन रद कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार और शिक्षामित्र सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। ध्यान रहे कि यह मामला 172000 शिक्षामित्रों के सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजन का है, अभी तक 132000 शिक्षामित्र सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित हो चुके हैं और सुप्रीमकोर्ट से हाईकोर्ट के आदेश पर रोक के चलते पढ़ा रहे हैं। उत्तर प्रदेश दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार यादव का कहना है कि उन्हें सुप्रीमकोर्ट से न्याय मिलने की उम्मीद है। वे कहते हैं कि उन्हें भरोसा है कि कोर्ट शिक्षामित्रों के हित में फैसला देगा।
पदनाम होगा शिक्षा सहायक, मानदेय नहीं वेतन मिलेगा
राज्य सरकार के सुझाव के मुताबिक, शिक्षामित्रों को फिलहाल सहायक अध्यापक पदनाम देने के बजाय शिक्षा सहायक पदनाम देकर नौकरी कायम रख सकती है। इसी के साथ शिक्षामित्रों को एक साल की अवधि में टीईटी उत्तीर्ण करने का विकल्प भी मिलेगा। सरकार के मुताबिक, टीईटी उत्तीर्ण करने से पहले शिक्षा सहायकों को बीस हजार रुपए का निश्चित वेतन मिलेगा। निर्धारित अवधि में टीईटी उत्र्तीण करने के बाद नए वेतनमान पर नियुक्ति मिल जाएगी। अदालत ने इस सुझाव को बेहतरीन माना है।
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