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पेंशन का मुद्दा एक नीतिगत मुद्दा, नवीन पेंशन योजना में रिटायरमेन्ट के बाद कुछ नहीं आने वाला हाथ

साथियों,
हम सब यह जान चुके हैं कि पेंशन का मुद्दा एक नीतिगत मुद्दा है। हमारे देश का वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व आर्थिक नीतियों के मामले में विश्व बैंक,  आईएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) तथा  और डब्ल्यूटीओ  (विश्व व्यापार संगठन ) की नीतियों का अनुसरण  आंख बंद करके कर रहा है। 
देश में ऐसी नीति बनाई जा रही हैं जो चंद बड़े पूंजी घरानों और बहुराष्ट्रीय कंपनीज को सीधे लाभ पहुंचा रही है ,  ये नीतियां कर्मचारी,  किसान, व्यापारी, युवा विरोधी हैं।
      इस बात का सबसे स्पष्ट उदाहरण कर्मचारियों की भविष्यनिधि का निजीकरण है सरकार ने बड़ी चालाकी से कर्मचारियों की मेहनत की कमाई को बड़े कार्पोरेट घरानों के हवाले करने की योजना बनाई है। इसके लिए  2013 में बाकायदा पीएफआरडीए कानून  (पेंशन निधि विनियामक एंव विकास प्राधिकरण कानून ) को संसद में पास किया। यह एक काला कानून है जो  1  जनवरी  2014 के बाद  सेवा में आये कर्मचारियों के लिए नयी अंशदायी पेंशन सिस्टम को संचालित करता है।  इस अंशदायी पेंशन सिस्टम में कर्मचारी और सरकार द्वारा दिया गया अंश जो कि वास्तव में जनता का ही पैसा है) को शेयर बाजार के हवाले करने की योजना है।  शेयर बाजार में चूंकि बड़े -बड़े पूंजी घरानों एंव बहुराष्ट्रीय विदेशी निगमों का दबदबा है  और शेयर बाजार की नीतियां इन्ही के इशारे पर ही तय होती हैं। वहां कर्मचारियों की छोटी पूंजी टिक नहीं पायेगी।  रिटायरमेन्ट के बाद कर्मचारी को कुछ मिल भी पायेगा या नहीं ,  इसकी कोई भी गारंटी नहीं है।
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