उत्तर : सर्वप्रथम मैं स्पष्ट कर दूँ कि टीईटी मेरिट के जन्म में मेरी भी एक भूमिका रही है और RTE एक्ट के बाद बीएड को बेसिक शिक्षक के पदों से सरकार नयी नियुक्ति में रोकना चाहती थी । बेहद प्रयास के बाद RTE एक्ट सेक्शन 23(2) में बीएड को जगह दिलायी जा सकी ।
भारत सरकार के राजपत्र में पैरा 3 में बीएड को डायरेक्ट नियुक्ति हेतु आदेश हुआ ।
इस प्रकार बीएड का चयन आधार वही हुआ जो कि यूपी बेसिक सेवा नियमावली 1981 के क्लॉज़ 8(1) के (A) और (B) के लिए हुआ ।
राज्य सरकार ने मनमानी की परंतु हम शांत रहे क्योंकि हम जानते थे कि नियम विरुद्ध कुछ भी संभव नहीं है क्योंकि यह कोई SBTC के प्रशिक्षण हेतु चयन नहीं हो रहा है ।
खंडपीठ में प्रदेश सरकार के वकील CB यादव ने कहा कि चयन में सर्विस रूल एप्लीकेबल रहेगा जिसे कि न्यायमूर्ति श्री अशोक भूषण ने स्वीकार किया और अधिवक्ता अशोक खरे की बात ख़ारिज की ।
राज्य की सहमति को देखकर न्यायमूर्ति को अलग से डायरेक्शन लिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ी ।
इसके बावजूद भी राज्य सरकार ने सेवा नियमावली नहीं फॉलो की और हम भी शांत रहे क्योंकि हमारे पास तो हर इशू पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की नजीर है ।
दिनेश सिंह बनाम यूपी स्टेट के मुकदमे में न्यायमूर्ति श्री सुशील हरकौली ने लिखाया था कि जब विज्ञप्ति और सर्विस रूल में अंतर हो तो सर्विस रूल को फॉलो किया जाये जिसकी नजीर मैं अलग से पोस्ट कर दूंगा क्योंकि पोस्ट व्यापक नहीं करना चाहता हूँ ।
इस तरह का आदेश न्यायमूर्ति DP सिंह ने ममता पाण्डेय बनाम भारत सरकार में भी किया था और दोनों आदेश दो जजों की पीठ के हैं ।
अब सवाल उठता है कि भर्ती पूरी हो चुकी है और सर्विस रूल नहीं लगा तो अब क्या होगा ?
इस पर भी नजीर है और इसी नजीर के कारण हम चुप थे क्योंकि हम अपना भला मात्र नहीं चाहते थे बल्कि बीएड समुदाय का भला चाहते थे/हैं ।
यदि अपना भला करना होता तो बॉर्डर लाइन और मात्र फर्जीवाड़ा पर लड़ता और शिक्षामित्र की बची दस फीसदी शीट जोड़ने के लिए लड़ता ।
जबकि ऐसा नहीं किया और भर्ती की नांक पकड़ी ।
क्योंकि मैंने सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश पढ़ा है जिसमे चीफ जस्टिस और न्यायमूर्ति BS चौहान ने पूर्ण हो चुकी भर्ती के विरुद्ध लिखा है कि जिसका चयन कर चुके हो उनका क्या करोगे तुम जानो लेकिन सर्विस रूल के उलंघन के कारण जिनका चयन नहीं हुआ है उन्हें नियुक्ति दो ।
पद बढ़ने का सबसे पहला आदेश मजीद मजहर सुलतान बनाम यूपी स्टेट में हुआ था और न्यायमूर्ति ने संपन्न हो चुकी भर्ती पर सर्विस रूल लगवाया और जिनको हटाने की नौबत आई उन्हें भी नौकरी दिलायी जिससे पद बढ़ गया ।
यदि मैं चाहा होता तो न्यायमूर्ति अशोक भूषण के यहाँ ही यह मुद्दा उठा देता और आदेश में मेंशन हो जाता कि सर्विस के नियमों को फॉलो किया जाये और विज्ञप्ति की त्रुटियों को ठीक कर दिया जाये परंतु मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि मुझमे बीएड के लिए एक सोच थी ।
आज तो इतने कम अंक वाले हो गये हैं कि उनसे अधिक अंक वाले अचयनित के लिए हम लड़ रहे हैं ।
इस परिस्थिति में नये योग्य बेरोजगार भी जो कि उक्त प्रक्रिया में बीटीसी आदि के रूप में आवेदक नहीं हैं वे बाधा भी नहीं बन पाएंगे ।
सुप्रीम कोर्ट के फाइनल बहस में हमारे द्वारा प्रस्तुत नजीरों से कोर्ट रूम में आंधी और तूफ़ान भी आ सकता है ।
हम सुप्रीम कोर्ट को मुकदमा निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की उन नजीरों से भी रूबरू कराएँगे जिससे मुकदमा शानदार तरीके से डिस्पोज़ ऑफ़ हो सके ।
नोट: हर तथ्य पर नजीर है जिसे अलग से पोस्ट कर दूंगा ।
यदि हम चाहें तो बीएड वालों की बेसिक की टीईटी फिर शुरू हो जाये लेकिन पहले हम पुरानों के विषय में चिंतित हैं ।
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भारत सरकार के राजपत्र में पैरा 3 में बीएड को डायरेक्ट नियुक्ति हेतु आदेश हुआ ।
इस प्रकार बीएड का चयन आधार वही हुआ जो कि यूपी बेसिक सेवा नियमावली 1981 के क्लॉज़ 8(1) के (A) और (B) के लिए हुआ ।
राज्य सरकार ने मनमानी की परंतु हम शांत रहे क्योंकि हम जानते थे कि नियम विरुद्ध कुछ भी संभव नहीं है क्योंकि यह कोई SBTC के प्रशिक्षण हेतु चयन नहीं हो रहा है ।
खंडपीठ में प्रदेश सरकार के वकील CB यादव ने कहा कि चयन में सर्विस रूल एप्लीकेबल रहेगा जिसे कि न्यायमूर्ति श्री अशोक भूषण ने स्वीकार किया और अधिवक्ता अशोक खरे की बात ख़ारिज की ।
राज्य की सहमति को देखकर न्यायमूर्ति को अलग से डायरेक्शन लिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ी ।
इसके बावजूद भी राज्य सरकार ने सेवा नियमावली नहीं फॉलो की और हम भी शांत रहे क्योंकि हमारे पास तो हर इशू पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की नजीर है ।
दिनेश सिंह बनाम यूपी स्टेट के मुकदमे में न्यायमूर्ति श्री सुशील हरकौली ने लिखाया था कि जब विज्ञप्ति और सर्विस रूल में अंतर हो तो सर्विस रूल को फॉलो किया जाये जिसकी नजीर मैं अलग से पोस्ट कर दूंगा क्योंकि पोस्ट व्यापक नहीं करना चाहता हूँ ।
इस तरह का आदेश न्यायमूर्ति DP सिंह ने ममता पाण्डेय बनाम भारत सरकार में भी किया था और दोनों आदेश दो जजों की पीठ के हैं ।
अब सवाल उठता है कि भर्ती पूरी हो चुकी है और सर्विस रूल नहीं लगा तो अब क्या होगा ?
इस पर भी नजीर है और इसी नजीर के कारण हम चुप थे क्योंकि हम अपना भला मात्र नहीं चाहते थे बल्कि बीएड समुदाय का भला चाहते थे/हैं ।
यदि अपना भला करना होता तो बॉर्डर लाइन और मात्र फर्जीवाड़ा पर लड़ता और शिक्षामित्र की बची दस फीसदी शीट जोड़ने के लिए लड़ता ।
जबकि ऐसा नहीं किया और भर्ती की नांक पकड़ी ।
क्योंकि मैंने सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश पढ़ा है जिसमे चीफ जस्टिस और न्यायमूर्ति BS चौहान ने पूर्ण हो चुकी भर्ती के विरुद्ध लिखा है कि जिसका चयन कर चुके हो उनका क्या करोगे तुम जानो लेकिन सर्विस रूल के उलंघन के कारण जिनका चयन नहीं हुआ है उन्हें नियुक्ति दो ।
पद बढ़ने का सबसे पहला आदेश मजीद मजहर सुलतान बनाम यूपी स्टेट में हुआ था और न्यायमूर्ति ने संपन्न हो चुकी भर्ती पर सर्विस रूल लगवाया और जिनको हटाने की नौबत आई उन्हें भी नौकरी दिलायी जिससे पद बढ़ गया ।
यदि मैं चाहा होता तो न्यायमूर्ति अशोक भूषण के यहाँ ही यह मुद्दा उठा देता और आदेश में मेंशन हो जाता कि सर्विस के नियमों को फॉलो किया जाये और विज्ञप्ति की त्रुटियों को ठीक कर दिया जाये परंतु मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि मुझमे बीएड के लिए एक सोच थी ।
आज तो इतने कम अंक वाले हो गये हैं कि उनसे अधिक अंक वाले अचयनित के लिए हम लड़ रहे हैं ।
इस परिस्थिति में नये योग्य बेरोजगार भी जो कि उक्त प्रक्रिया में बीटीसी आदि के रूप में आवेदक नहीं हैं वे बाधा भी नहीं बन पाएंगे ।
सुप्रीम कोर्ट के फाइनल बहस में हमारे द्वारा प्रस्तुत नजीरों से कोर्ट रूम में आंधी और तूफ़ान भी आ सकता है ।
हम सुप्रीम कोर्ट को मुकदमा निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की उन नजीरों से भी रूबरू कराएँगे जिससे मुकदमा शानदार तरीके से डिस्पोज़ ऑफ़ हो सके ।
नोट: हर तथ्य पर नजीर है जिसे अलग से पोस्ट कर दूंगा ।
यदि हम चाहें तो बीएड वालों की बेसिक की टीईटी फिर शुरू हो जाये लेकिन पहले हम पुरानों के विषय में चिंतित हैं ।
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