उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार के जाते ही पौने 2 लाख शिक्षा मित्रों की नौकरी पर तलवार चल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है कि यूपी में शिक्षण कार्य कर रहे पौने दो लाख शिक्षामित्रों को हटाकर उनकी जगह नए सिरे से भर्ती की जाए। नई भर्ती होने तक मौजूदा शैक्षणिक सत्र तक शिक्षामित्र काम करेंगे और जैसे ही नई भर्ती संपन्न होगी उन्हें हटा दिया जाएगा।
जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की पीठ ने मंगलवार को ये फैसला सुनाया। उत्तर प्रदेश के एडीशनल एडवोकेट जनरल अजय कुमार मिश्रा और नलिन कोहली ने कहा कि यदि सर्वोच्च अदालत हाईकोर्ट के फैसले को कोर्ट सही मान रही है तो हमारे पास कहने के लिए कुछ नहीं है लेकिन हम 22 सालों से काम कर रहे पौने दो लाख लोगों का क्या करेंगे। इस पर कोर्ट ने कहा कि इसका समाधान अदालत बताएगी।
पीठ ने साफ कह दिया कि छह माह के अंदर नई भर्तियाँ की जाएँ और अगले वर्ष मार्च तक नियुक्तियां कीजिए। तब तक शिक्षामित्रों को अध्यापन करने दीजिए। हाँ, ये शिक्षा मित्र फिर से इस भर्ती प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं। और उनके लिए उम्रसीमा का बंधन भी नहीं होगा।
कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की नियुक्तियां संविधान के खिलाफ हैं क्योंकि बाजार में मौजूद प्रतिभा को मौका नहीं दिया और उन्हें अनुबंध पर भर्ती करने के बाद उनसे कहा कि आप अनिवार्य शिक्षा हासिल कर लो। पीठ ने कहा कि यह बैकडोर एंट्री है जिसे उमादेवी केस (2006) में संविधान पीठ अवैध ठहरा चुकी है।
अखिलेश सरकार ने कहा था कि 1999 में शिक्षामित्रों की भर्ती प्रदेश के दूरदराज के क्षेत्रों में बालकों को बेसिक शिक्षा देने के लिए की गई थी जो कि एक कल्याणकारी कदम था जिसके पीछे कोई गलत मंशा नहीं थी। 22 साल से चल रही यूपी सरकार की इस नीति को चुनौती नहीं दी है। जिन्होंने चुनौती दी है उनकी संख्या लगभग 200 है और उन्हें सरकार नौकरी में लेने को तैयार थी।
अब बदले हालात में शिक्षा मित्र ठगे महसूस कर रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2015 शिक्षामित्रों की नियुक्तियों को अवैध ठहरा दिया था जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर में इस आदेश को स्टे कर दिया था।
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पीठ ने साफ कह दिया कि छह माह के अंदर नई भर्तियाँ की जाएँ और अगले वर्ष मार्च तक नियुक्तियां कीजिए। तब तक शिक्षामित्रों को अध्यापन करने दीजिए। हाँ, ये शिक्षा मित्र फिर से इस भर्ती प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं। और उनके लिए उम्रसीमा का बंधन भी नहीं होगा।
कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की नियुक्तियां संविधान के खिलाफ हैं क्योंकि बाजार में मौजूद प्रतिभा को मौका नहीं दिया और उन्हें अनुबंध पर भर्ती करने के बाद उनसे कहा कि आप अनिवार्य शिक्षा हासिल कर लो। पीठ ने कहा कि यह बैकडोर एंट्री है जिसे उमादेवी केस (2006) में संविधान पीठ अवैध ठहरा चुकी है।
अखिलेश सरकार ने कहा था कि 1999 में शिक्षामित्रों की भर्ती प्रदेश के दूरदराज के क्षेत्रों में बालकों को बेसिक शिक्षा देने के लिए की गई थी जो कि एक कल्याणकारी कदम था जिसके पीछे कोई गलत मंशा नहीं थी। 22 साल से चल रही यूपी सरकार की इस नीति को चुनौती नहीं दी है। जिन्होंने चुनौती दी है उनकी संख्या लगभग 200 है और उन्हें सरकार नौकरी में लेने को तैयार थी।
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