5 जुलाई : शिक्षामित्रों को राहत या झटका, सुप्रीम कोर्ट ने तय की फैसले की तारीख

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के लगभग पौने दो लाख शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक पद पर समायोजन के मामले पर सुप्रीम कोर्ट 5 जुलाई को अपना फैसला सुना सकता है।
इस फैसले पर करीब 1 लाख 72 हजार शिक्षामित्रों का भविष्य टिका हुआ है। आपको बता दें कि जस्टिस आदर्श गोयल और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने 17 मई को शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन का फैसला सुरक्षित रख लिया था।

शिक्षामित्रों के वकीलों की दलील थी कि ये सालों से पढ़ा रहे हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से राहत की गुहार लगाते हुए मांग की कि मानवीय आधार पर सहायक अध्यापक के तौर पर शिक्षामित्रों के समायोजन को जारी रखा जाए। सहायक अध्यापक बने करीब 22 हजार शिक्षामित्र ऐसे हैं जिनके पास वांछनीय योग्यता है। वकीलों का कहना था कि राज्य में शिक्षकों की कमी को ध्यान में रखते हुए शिक्षामित्रों की नियुक्ति हुई थी। उम्र के इस पड़ाव में उनके साथ मानवीय रवैया अपनाया जाना चाहिए। आपको बता दें कि 12 सितंबर 2015 को हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के इन शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक पद पर समायोजन को निरस्त कर दिया था। जिसके बाद हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

शिक्षामित्रों के मामले में कोर्ट ने फैसला लिखने से पहले यह स्पष्ट किया कि शिक्षा की गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नहीं मिलेगी। राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि स्कूलों में पढ़ाने के लिए काबिल शिक्षकों की तैनाती करना सुनिश्चित करे। काबिल टीचर्स शिक्षामित्र भी हो सकते हैं और बीटीसी के जरिए नियुक्ति हासिल करने वाले अन्य अध्यापक भी। नियुक्ति और प्रशिक्षण के तौर-तरीकों को खरा साबित होना चाहिए। इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुनवाई के दौरान शिक्षामित्रों की ओर से सलमान खुर्शीद, अमित सिब्बल, नितेश गुप्ता, जयंत भूषण, आरएस सूरी सहित कई वरिष्ठ वकीलों ने अपनी दलीलें पेश की थी। मामले पर सुनवाई के दौरान शिक्षामित्रों के वकीलों ने कोर्ट से कहा था कि सहायक शिक्षकों के मामले में कोर्ट ने बतौर सहायक अध्यापक नियुक्त हो चुके शिक्षकों को नहीं छेडऩे की बात कही है। ऐसे में सुप्रीमकोर्ट से ऐसे शिक्षामित्रों को भी राहत मिलनी चाहिए, जिन्हें नियुक्ति पत्र मिल चुका है। वकील ने कहा कि ऐसे शिक्षामित्रों के पास शैक्षणिक योग्यता के अलावा 17 साल पढ़ाने का अनुभव भी है। इस पर पीठ ने कहा कि ऐसे शिक्षामित्रों को नहीं छेड़ा जाएगा। यह भी पढ़ें: अपनाया जाए मानवीय रवैया
शिक्षामित्रों की ओर से पेश वकील ने कहा था कि यह कहना गलत है कि शिक्षामित्रों को नियमित किया गया है। उन्होंने कहा कि सहायक शिक्षकों के रूप में उनकी नियुक्ति हुई है। वकीलों का कहना था कि राज्य में शिक्षकों की कमी को ध्यान में रखते हुए स्कीम के तहत शिक्षामित्रों की नियुक्ति हुई थी। उनकी नियुक्ति पिछले दरवाजे से नहीं हुई थी। शिक्षामित्र पढ़ाना जानते हैं। उनके पास अनुभव है। वह कई सालों से पढ़ा रहे हैं। उम्र के इस पड़ाव में उनके साथ मानवीय रवैया अपनाया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई कि वह संविधान के अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कर शिक्षामित्रों को राहत प्रदान करें। यह भी पढ़ें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द किया था समायोजन
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट 12 सितंबर 2015 उत्तर प्रदेश में 172000 शिक्षामित्रों का प्राथमिक विद्यालयों के सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजन रद कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार और शिक्षामित्र सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। ध्यान रहे कि यह मामला 1,72,000 शिक्षामित्रों के सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजन का है, अभी तक 1,32,000 शिक्षामित्र सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित हो चुके हैं और सुप्रीमकोर्ट से हाईकोर्ट के आदेश पर रोक के चलते पढ़ा रहे हैं। उत्तर प्रदेश दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार यादव का कहना है कि उन्हें सुप्रीमकोर्ट से न्याय मिलने की उम्मीद है। वे कहते हैं कि उन्हें भरोसा है कि कोर्ट शिक्षामित्रों के हित में फैसला देगा।

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