परिषदीय स्कूलों की निगरानी: .शिक्षकों और बच्चों की उपस्थिति सुनिश्चित होते ही पठन-पाठन की गुणवत्ता को सुधारने में निश्चित रूप से काफी सहायता मिलेगी।

परिषदीय स्कूलों में पठन-पाठन की गुणवत्ता और व्यवस्था को लेकर जितने सवाल उठते रहे हैं, उसके सुधार की दिशा में अब उठाए जा रहे कदम भविष्य में तमाम शिकायतों को दूर करने के लिए काफी हैं। ताजातरीन फैसला परिषदीय स्कूलों की निगरानी टैबलेट के जरिये करने की है।
इससे न केवल शिक्षकों और बच्चों की हाजिरी टैबलेट के जरिये दर्ज होगी, बल्कि छुट्टी के लिए शिक्षक टैबलेट के जरिये ही ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे। इससे स्कूलों की रियल टाइम मॉनीटरिंग संभव हो सकेगी। इस व्यवस्था के लिए बेसिक शिक्षा विभाग के प्रस्ताव को समग्र शिक्षा अभियान के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड ने मंजूरी दे दी है। टैबलेट के जरिये परिषदीय स्कूलों की निगरानी के लिए 159 करोड़ रुपये की धनराशि भी मंजूर की गई है। व्यवस्था लागू होते ही 1.61 लाख परिषदीय स्कूल विभाग के निगरानी तंत्र की जद में आ जाएंगे। जाहिर है कि टैबलेट से निगरानी शुरू होते ही प्रधानाध्यापक, शिक्षक अथवा बच्चों की हाजिरी में हेरफेर संभव न हो सकेगा। जरूरत पड़ने पर कक्षा में पढ़ाते हुए शिक्षक को फोटो भी इसमें अपलोड करना पड़ सकता है। शिक्षकों और बच्चों की उपस्थिति सुनिश्चित होते ही पठन-पाठन की गुणवत्ता को सुधारने में निश्चित रूप से काफी सहायता मिलेगी। अन्य तरह के भ्रष्टाचार को भी रोका जा सकेगा। यह इसका एक पहलू है। दूसरा पहलू इससे भी ज्यादा लाभप्रद है। इसके जरिये अन्य राज्यों में हुए नवाचार इस पर साझा किए जा सकेंगे। शैक्षिक गुणवत्ता के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किए गए शाला सिद्धि कार्यक्रम को इससे जोड़ा जा सकेगा। निश्चित रूप से यह कदम फिलहाल बहुत उपयोगी लग रहा है लेकिन, इसकी राह में अड़चनें भी कम नहीं आएंगी। सबसे बड़ी दिक्कत आएगी डाटा पैक और नेटवर्क की होगी। क्योंकि व्यवस्थाएं बना तो दी जाती हैं लेकिन, फिर उसके अमल पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है। यह व्यवस्था ठीक भी रखी जाए तो प्राप्त होने वाले डाटा का विश्लेषण ईमानदारी से करने और उसके मुताबिक कदम उठाने की बड़ी चुनौती है। मतलब यह कि निगरानी तंत्र को चौकस करना पड़ेगा, तभी इसका वास्तविक लाभ मिल पाएगा।