प्रयागराज: वर्ष 2010 की अपर निजी सचिव (एपीएस) भर्ती मामले में मनमाने ढंग से फेल को पास कर चयन कराने पर अभ्यर्थी उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से खासे नाराज हैं। इस मामले में जांच तेजी से किए जाने की मांग को लेकर प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति ने भी हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी है। इसमें इसी माह में सुनवाई होनी है, जिसमें सीबीआइ भी अपना पक्ष रखेगी।
इस भर्ती मामले में एफआइआर दर्ज करने के बाद सीबीआइ की टीम शुक्रवार शाम को लोक सेवा आयोग पहुंची। मामले से जुड़े अनुभाग में जाकर दस्तावेज जुटाने में जुटी रही। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय ने कहा कि इस भर्ती में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का रवैया लचर रहा है। उसी का नतीजा है कि वर्ष 2010 की परीक्षा संपन्न कराने में कई साल लग दिए। आयोग ने हाई कोर्ट के आदेश का पालन भी नहीं किया, जिसकी वजह से चयन से वंचित रह गए अभ्यर्थियों को कोर्ट आफ कन्टेम्ट करना पड़ा। अभ्यर्थियों के तेवर देखते हुए लोक सेवा आयोग ने चार चयनित अभ्यर्थियों को बाहर तो किया, लेकिन अन्य अभ्यर्थियों के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की। आयोग की मंशा को देखते हुए प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति ने याचिका कोर्ट में लगाई, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। इसी महीने होने वाली सुनवाई में मामले की जांच कर रही सीबीआइ टीम भी अपना पक्ष रखेगी। उन्होंने सीबीआइ जांच में धांधली की पुष्टि के बाद दर्ज की गई एफआइआर को प्रतियोगियों की जीत बताया। कहा कि आगे भी कोर्ट में मजबूती से पक्ष रखा जाएगा।
विशेषाधिकार की आड़ में लिखी गई धांधली कथा
प्रयागराज : उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की अपर निजी सचिव भर्ती-2010 की परीक्षा के नियम आवेदन के समय तय थे, लेकिन बाद में परीक्षा समिति की बैठक कर विशेषाधिकार के नाम पर नियमों में बदलाव किए गए। यही बदलाव धांधली का आधार बने, जिसे सीबीआइ ने आपराधिक साजिश माना और पूर्व परीक्षा नियंत्रक प्रभुनाम व अन्य के खिलाफ फर्जीवाड़ा, धोखाधड़ी, कूटरचित दस्तावेजों का प्रयोग किए जाने के आरोप में कार्रवाई की।
सीबीआइ की ओर से जांच कर रहे रवीश कुमार झा की ओर से सीबीआइ मुख्यालय में दर्ज एफआइआर में भर्ती को लेकर तय किए गए यूपीपीएससी के नियमों की जानकारी दी गई है। इसमें आवेदक के लिए सामान्य हिंदी, हिंदी शॉर्ट हैंड और हिंदी टाइप टेस्ट अनिवार्य था। सीबीआइ ने आरोप लगाया है कि 15 जून, 2015 को एक बैठक में आयोग ने परीक्षा के तीसरे चरण के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए निर्धारित अंकों में ढील देने के लिए अपनी विवेकाधीन शक्तियों का उपयोग करने का निर्णय किया। परीक्षा में 1244 उम्मीदवारों में से 913 ने 125 अंक (पांच प्रतिशत त्रुटि के साथ) का न्यूनतम अंक हासिल किया। 331 ने हिंदी शॉर्टहैंड टेस्ट में 119-124 अंकों (आठ प्रतिशत त्रुटि के साथ) के बीच अंक प्राप्त किए। सीबीआइ ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में 15 जून, 2015 को आयोग के अनुमोदन के अनुसार जब अंतिम चयन के लिए पर्याप्त संख्या में उम्मीदवार थे, तब त्रुटियों में अतिरिक्त तीन प्रतिशत छूट देने की कोई आवश्यकता नहीं थी और उन्हें तीसरे चरण की कंप्यूटर परीक्षा के लिए उन्हें योग्य नहीं होना चाहिए था। इतना ही नहीं, आयोग के नियम और निर्णय के अनुसार, केवल 913 उम्मीदवारों को कंप्यूटर ज्ञान परीक्षण के लिए योग्य माना जाना चाहिए था, लेकिन प्रभुनाथ ने आयोग के अन्य अधिकारियों के साथ इसी निर्णय का उल्लंघन किया था ताकि कुछ गैर को अनुचित लाभ दिया जा सके। सीबीआइ ने आरोप लगाया कि विशेषज्ञों और जांचकर्ताओं ने हिंदी शार्टहैंड टेस्ट और हिंदी टाइप टेस्ट की उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन ठीक से नहीं किया। इसी के चलते अंकों में अनावश्यक वृद्धि हुई और अंतिम मेरिट सूची का परिदृश्य बदल दिया गया।