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जब चार कंधों पर टी ई टी का जनाजा पाठग जी के नेतृत्व में निकाला गया

जितना समय एक लाश को ठिकाने लगाने में लगता है उतना ही समय हमारे ठसके पाठक ने टी ई टी मोर्चा को ठिकाने करने में लगाया,कल की चिल्ल पों वाले आँसू आज उस समय थमे से दिखे जब चार कंधों पर टी ई टी का जनाजा पाठग जी के नेतृत्व में निकाला गया।
बकौल प्रतिनिधि मंडल सबसे बड़ा झूठ उस समय उजागर हुआ जब कि एक शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारी ने नेता जी के कुर्ते की लंबाई और सदरी की चमक देखकर खुद कहा कि इनके पीछे तो लाखों की संख्या होनी चाहिये, और प्रतिनिधि मंडल के जाते जाते यह आस्वासन भी दिया कि आगामी धरना की तिथि थोड़ा पहले उन अधिकारी महोदय को भी बता देना ताकि वह पाठक की राजनीति के प्रमोशन में ठीक ठाक भीड़ इकठ्ठा करवा सकें।जिसे आप धरने का विरोध मान रहे थे दरअसल वह एक चेतावनी थी,आधी अधूरी तैयारी के साथ लखनऊ न पहुँचने की चेतावनी,नवांकुरित नेताओं के फेसबुकिया आह्वान के विरोध में चेतावनी,आपकी पाँच साल पहले की भीड़ की असली सूरत न दिखे यह चेतावनी।किन्तु हाल ही में जूनियर याची व्यापार में संलिप्त एस के पाठक को तो याची हमदर्दी का माहौल बनाना था सो बना लिया,आम याची को लिफ्ट राइट के अलावा क्या मिला बाबा जी का ठुल्लू?

जब सचिव बेसिक से मिलने के लिये प्रतिनिधि मंडल का नाम सुनिश्चित हो रहा था तब इलाहाबाद के संजीव मिश्र का नाम सिर्फ इसलिये नही शामिल किया जा सका क्योंकि 1100 चयनित याचियों में अवशेष रिस्पोंडेंट में उनका नाम शामिल है,उधर 72825 में चयनित शिव कुमार पाठक में कौन सा सुर्खाब के पंख लगे थे जिन्हें बतौर याची हमदर्द घुट्टी के रूप में पेश किया गया?

धरने से पूर्व मयंक तिवारी की धरने के समर्थन में कोई पोस्ट नही आना बल्कि धरने के दौरान सीधे सेल्फी डालना क्या आम याचियों के साथ धोखा नही?इससे अवश्य ही इन से जुड़े 18 हजार याची भ्रम की स्थिति में थे कि आंदोलन में जाना है या नही?क्या इसने टी ई टी मोर्चा की जड़ों पर मट्ठा डालने का काम नही किया?या फिर वह भी उनके आज़म गढ़ के याची एजेंट प्रवीण श्रीवास्तव की तरह ही अस्तित्व हीन चयनित नेता के समर्थन में पहुँचे थे?

20 फरवरी 2012 के आंदोलन का प्रत्यक्ष दर्शी रहा हूँ,वह आंदोलन सिर्फ एस के पाठक और उनके प्रवक्ता अखिलेश पांडेय,मुनीम योगेंद्र यादव और कैमरामैन शक्ति पाठक की बदौलत सफल नही हुआ था,उस में पूरे प्रदेश के युवाओं की उम्मीद लगी थी,पूरे प्रदेश का जोश और जूनून लगा था लेकिन आज चयन पाने के बाद जब इन्ही पाठक को सब के हितों के लिये लड़ना चाहिये वही पाठक जूनियर याची व्यापार में कभी आजमगढ़ संधि,तो कभी झांसी संधि के चलते आम बेरोजगार की भावनाओं का दोहन कर रहे हैं।

शायद यह टी ई टी इतिहास का सबसे पहला और सबसे सुपर डुपर फ्लॉप आंदोलन रहा होगा जिसमें कि लखनऊ के सक्रिय साथी डॉराजीव शर्मा व डॉ एम. पी. सिंह से भी आंदोलन की दशा और दिशा नही पूँछी गयी और न ही टी ई टी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष श्री गणेश शंकर दीक्षित से ही कोई राय मशविरा किया गया,भले ही चहु ओर व्याप्त गन्दगी के माहौल में कुकुरमुत्तों की तरह उपजे टी ई टी के असंख्य प्रदेश अध्यक्ष हैं किंतु जब बात असली वाले प्रदेश अध्यक्ष की होती है तो आज भी सभी के मानस पटल पर गणेश शंकर का ही संघर्ष उभर कर आता है।

मेरे बूढ़े माँ बाप आज भी मेरी याची नियुक्ति प्रक्रिया के बारे में कभी कभी पूँछ बैठते हैं,काम चल रहा है,डेट 22 फरवरी लगी है यह सब बोलकर मैं खुद को और उनको संतुष्ट करने का प्रयास करता हूँ किंतु हर रोज़ बढ़ती नेता गिरी,बेरोजगारों की लाश पर चमकायी जाने वाली सदरियों को देखकर,तथा कभी सिर्फ सच लिखने वाले मयंक तिवारी एटा के झूठ और प्रपंच को महसूस करके दिल मुझ से ही पूँछ बैठता है कि तिवारी कब तक खुद को धोखा दोगे?किसी लेखक तिवारी को ही देखकर ऊँची छलाँग मारो,सीधे पेटी से खोखे तक पहुँच जाओगे,लेकिन ज़मीर है जो कहता है नमक ,रोटी, प्याज खाओ,पानी पियो,किसी मासूम,बेरोजगार का खूंन नही क्योंकि खून पीने वाले पहिले से ही बहुत हैं।

नोट: छः लोगों के चोर प्रतिनिधि मंडल में एक ठु कलयुगी "राम"भी थे, आप भी झूठ को सींचने,बोने, काटने लगे,यदि नही तो सचिव बेसिक शिक्षा अजय कुमार सिंह के ऑफिस के बाहर खड़े हुये किसी एक प्रतिनिधि की ही फोटो या सचिवालय का पास सार्वजनिक करो हम सब मान लेंगे कि आप सच में राम हो।अन्यथा आप को भी कोई हक़ नही है इस तरह बेरोजगारों के साथ भोड़ा मज़ाक करने का।यदि आप छगड़ी में से कोई भी सिरफ अजय कुमार सिंह के घर/ऑफिस के बाहर लगी नाम पट्टिका के साथ भी फोटो भेज दोगे, अमित तिवारी कभी पोस्ट नही लिखेगा।

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