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साढ़े अड़सठ हजार टीचर्स की भर्ती का मामला पहुंचा हाईकोर्ट

इलाहाबाद। योगीराज में शुरू हो रही यूपी में टीचर्स की पहली बड़ी भर्ती को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। सूबे के प्राइमरी स्कूलों में साढ़े अड़सठ हजार टीचर्स की भर्ती के जीओ को चुनौती देते हुए इस पर रोक लगाए जाने की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है।


हाईकोर्ट की बेंच ने फिलहाल भर्ती पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है, लेकिन यूपी सरकार को नोटिस जारी कर उससे जवाब तलब जरूर कर लिया है। अदालत ने इस मामले में यूपी सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए दस दिनों का समय दिया है। अदालत इस मामले में तीस जनवरी को दोबारा सुनवाई करेगा। आदर्श समायोजित शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन जितेंद्र शाही द्वारा दाखिल की गई अर्जी में साढ़े अड़सठ हजार टीचर्स की भर्ती के लिए इसी साल नौ जनवरी को जारी नोटिफिकेशन को चुनौती दी गई है। मामले की सुनवाई जस्टिस एमसी त्रिपाठी की डिवीजन बेंच कर रही है।



अर्जी में कहा गया है कि यूपी सरकार ने एक लाख 65 हजार 157 शिक्षामित्रों को सुप्रीमकोर्ट के आदेश के अनुसार दस हजार प्रतिमाह मानदेय पर नियुक्त करने का फैसला लिया है। इन्हे अगले दो वर्ष के भीतर टीईटी योग्यता हासिल करने का अवसर दिया है। इसके अलावा संसद ने अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 की धारा 23 (3) में संशोधन बिल पास कर यह व्यवस्था दी है कि 31 मार्च साल 2015 को जो भी अप्रशिक्षित सहायक अध्यापक कार्यरत हैं, उन्हें 31 मार्च साल 2018  तक ट्रेनिंग हासिल करने के बाद ही पद पर बने रहने का अधिकार होगा।

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अर्जी में दलील दी गई है कि यह संशोधन कानून सुप्रीम कोर्ट के 25 जुलाई साल 2017 के फैसले के बाद आया है। याची का कहना है कि 2018 की सहायक अध्यापक भर्ती में शामिल होने की योग्यता में स्नातक, प्रशिक्षित व टीईटी पास होना अनिवार्य है। जबकि याची संस्था के सदस्य टीईटी पास नहीं हैं, जिन्हें केन्द्र सरकार के संशोधन कानून से योग्यता हासिल करने की छूट दी गयी है। यदि यह भर्ती की गयी तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश व संशोधन कानून की छूट अर्थहीन हो जाएगी। शिक्षामित्रों की आयु सीमा में छूट का लाभ भी उन्हें नहीं मिल पायेगा।

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