68500 शिक्षक भर्ती से संबंधित कई केस अभी हाईकोर्ट इलाहाबाद व लखनऊ बेंच में लंबित

68500 शिक्षक भर्ती प्रक्रिया का विवादों से पीछा नहीं छूट रहा है। पिछले दिनों घोषित परीक्षा परिणाम में 39 प्रतिशत अभ्यर्थी पास हुए। पासिंग प्रतिशत 40 व 45 होने से जो लोग फेल हुए हैं वह नये बिंदुओं को लेकर कोर्ट जाने की तैयारी में हैं। इससे विवाद और बढ़ने की आशंका है।

पिछले माह कुछ अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका की थी कि सरकार ने खेल के नियम बीच में बदल दिये। कोर्ट गये अभ्यर्थियों का कहना है कि नौ जनवरी 2018 को शिक्षक भर्ती परीक्षा के लिए शासनादेश जारी किया गया। इसमें परीक्षा का पासिंग प्रतिशत 40 व 45 रखा गया था।
बाद में 21 मई 2018 को परीक्षा से पहले पासिंग प्रतिशत घटाकर 30 व 33 फीसदी कर दिया गया। पासिंग प्रतिशत 40 व 45 करने से प्रभावित हुए अभ्यर्थी शासन के आदेश को गलत मान रहे हैं। उन्होंने इसके खिलाफ अपील की हैं और नया केस करने की भी योजना बना रहे हैं।
अभ्यर्थियों का कहना है कि 68500 भर्ती के लिए शासन ने अध्यापक सेवा नियमावली 1981 में 20वां संशोधन नौ नवम्बर 2017 को किया था। इसमें पहली बार भर्ती के लिए परीक्षा को शामिल किया गया। इस परीक्षा को शिक्षक भर्ती के लिए योग्यता (नियमावली के बिंदु आठ में शामिल) माना गया।
यानि इस परीक्षा को पास करने वाले ही शिक्षक भर्ती के लिए आवेदन कर सकेंगे। इसके बाद नौ जनवरी 2018 को शिक्षक भर्ती परीक्षा आयोजित करने के लिए शासनादेश जारी हुआ। इसके बाद कुछ लोगों ने 20वें संशोधन व शासनादेश को गलत बताते हुए हाईकोर्ट इलाहाबाद व लखनऊ बेंच में याचिकाएं की।
कोर्ट में आपत्ति की गयी कि शिक्षक भर्ती के लिए योग्यता तय करने का अधिकार राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) को है और यूपी सरकार ने यूपी आरटीई नियमावली 2011 के रुल 15 में यह स्वीकार किया है कि एनसीटीई द्वारा शिक्षक भर्ती के लिए निर्धारित योग्यता ही प्रदेश में लागू होंगे।
याचिकाएं होने के बाद प्रदेश सरकार को अपनी गलती का एहसास हुआ और 15 मार्च 2018 को नियमावली में 22वां संशोधन किया गया। इस संशोधन में शिक्षक भर्ती परीक्षा को योग्यता के कॉलम से हटाकर चयन प्रक्रिया (नियमावली का बिंदु 14) में शामिल कर दिया गया।
इसके अलावा शिक्षामित्रों को शिक्षक भर्ती परीक्षा में ही भारांक देने समेत कई अन्य संशोधन किए गए। इस संशोधन के बाद 21 मई 2018 को शासनादेश जारी करके शिक्षक भर्ती परीक्षा में पासिंग प्रतिशत घटाकर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए 30 व अन्य सभी के लिए 33 प्रतिशत कर दिया गया।
इससे प्रभावित अभ्यर्थियों का कहना है कि अगर खेल के बीच में नियम नहीं बदले जा सकते तो नौ जनवरी के बाद जो-जो परिवर्तन व संशोधन हुए हैं उन्हें भी निरस्त किया जाए या फिर सभी को सही माना जाए। उनका कहना है कि 20वां संशोधन इस आधार पर गलत है कि प्रदेश सरकार शिक्षक भर्ती के लिए योग्यता तय नहीं कर सकती और 21वां संशोधन इस आधार पर गलत है कि वह खेल शुरू होने के बाद हुआ है, तो फिर जो परीक्षा हुई है वह भी गलत है।

कोर्ट में लंबित है कई केस
शिक्षक भर्ती परीक्षा से संबंधित कई केस अभी हाईकोर्ट इलाहाबाद व लखनऊ बेंच में लंबित हैं। इसमें मुख्य न्यायाधीश के बेंच में चल रही विद्याचरण शुक्ल बनाम सरकार के केस को कटऑफ से प्रभावित हुए अभ्यर्थी महत्वपूर्ण मान रहे हैं। इस केस के अधीन ही शिक्षक भर्ती परीक्षा का परिणाम भी है।