अरबों खर्च हुए, प्राथमिक शिक्षा का स्तर गिरा
लखनऊ। अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद सूबे में प्राथमिक शिक्षा का स्तर ऊपर उठने के बजाय साल दर साल गिरता ही जा रहा है। हाल यह है कि वर्ष 2010 में सरकारी स्कूलों में कक्षा 3 के हर 100 में से 56 बच्चे कम से कम ‘शब्द’ पढ़ लेते थे, वहीं 2014 में यह संख्या गिरकर आधे यानी 28 पर पहुंच गई। गणित में तो स्थिति और भी खराब है।
कक्षा 3 के 71 फीसदी बच्चों को 10-99 तक के अंकों का ज्ञान नहीं है, जबकि चार साल पहले की रिपोर्ट के अनुसार 51 फीसदी बच्चों को इसका ज्ञान था। अंग्रेजी के मामले में तो और भी वे फिसड्डी साबित हो रहे हैं।
इसका खुलासा एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) में किया गया है। असर के राज्य समन्वयक सुनील कुमार और संदीप शर्मा के मुताबिक, यह रिपोर्ट प्रदेश के 69 जिलों के 1971 स्कूलों का अध्ययन करने के बाद तैयार की गई है। इनमें 1543 प्राइमरी स्कूल और 428 जूनियर हाईस्कूल शामिल हैं। इस रिपोर्ट को तैयार करने में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय स्वयंसेवी संगठन ‘प्रथम’ का भी सहयोग रहा है।
1-9 तक के अंक नहीं पहचान पाते कक्षा 5 के छात्र
कक्षा 5 में 5.6 फीसदी बच्चे ऐसे मिले, जो 1-9 तक के अंक नहीं पहचान सके। 21.1 प्रतिशत बच्चों ने 1-9 तक के अंक तो पहचान लिए, मगर 10-99 तक के अंकों को नहीं पढ़ सके। 26.6 प्रतिशत बच्चों ने अंक तो पहचान लिए, मगर उन्हें घटाने के सवाल नहीं आते। 22.2 प्रतिशत बच्चे भाग के सवाल हल नहीं कर पाए। शिक्षा के खराब होते स्तर का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि वर्ष 2014 में सरकारी स्कूलों में कक्षा 2 के 59.3 प्रतिशत बच्चे ही 1-9 तक केअंक पहचान सके, जबकि 2010 में 76.8 प्रतिशत बच्चों को इसकी जानकारी थी। कक्षा 3 के 28.8 फीसदी बच्चों को ही 10-99 के अंकों की जानकारी थी, जबकि वर्ष 2010 में यह संख्या 51 फीसदी थी।
बड़ी संख्या में बच्चे नहीं जाते स्कूल
7-16 वर्ष के 7.7 फीसदी बच्चे स्कूल नहीं जाते। 7-10 साल के 2.5 फीसदी लड़के और 3.1 फीसदी लड़कियां स्कूल से बाहर हैं। 11 साल तक पहुंचते-पहुंचते लड़कियों में ड्रॉप आउट रेट और भी बढ़ जाता है। 11-14 बरस की 9.2 फीसदी लड़कियां स्कूल से बाहर हैं। वहीं 15-16 साल की 22.7 फीसदी लड़कियां और 19.4 फीसदी लड़के स्कूल से बाहर हैं। इतना ही नहीं, छह साल तक के 7.3 फीसदी बच्चों का नाम किसी भी स्कूल या प्री स्कूल में दर्ज नहीं मिला।
कक्षा 3 के 28 फीसदी बच्चे ही पढ़ पाते शब्द
रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2010 में सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे कक्षा 2 के 77.2 फीसदी बच्चे कम से कम अक्षर तो पहचान लेते थे, मगर 2014 में यह संख्या गिरकर 50 फीसदी पर पहुंच गई। निजी स्कूलों में यही आंकड़ा 91.1 फीसदी से 86.4 पर आ गया। इसी तरह वर्ष 2010 में सरकारी स्कूलों के कक्षा 3 के 56.1 फीसदी बच्चे कम से कम शब्द पढ़ लेते थे, लेकिन वर्ष 2014 में यह संख्या गिरकर 27.9 फीसदी पर पहुंच गई।
कक्षा- 5 के 73 फीसदी बच्चे नहीं पढ़ पाते दूसरे दर्जे की किताब
वर्ष 2014 में कक्षा 4 के सरकारी स्कूलों के 26.9 फीसदी और निजी स्कूलों के 67.6 फीसदी बच्चे ही कक्षा 1 की पाठ्यपुस्तक पढ़ सके। वहीं, वर्ष 2010 में यह संख्या क्रमश: 46.2 और 69.5 प्रतिशत थी। इसी तरह वर्ष 2014 में सरकारी स्कूलों में कक्षा 5 के 26.8 प्रतिशत और निजी स्कूलों में 61.4 प्रतिशत बच्चे कक्षा दो की किताब पढ़ सके, जबकि वर्ष 2014 में यह तादाद क्रमश: 36 और 58.4 फीसदी थी।
बरेली और देवीपाटन मंडलों में सबसे ज्यादा बच्चे स्कूल से बाहर
रिपोर्ट के अनुसार स्कूल से बाहर 6-14 वर्ष के बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा बरेली में है और उसके बाद देवीपाटन मंडल का नंबर आता है। वर्ष 2014 में बरेली में 9.77 प्रतिशत बच्चे स्कूल से बाहर थे, जबकि देवीपाटन मंडल में 8.27 प्रतिशत। प्रदेश स्तर पर बात करें तो 6-14 साल के बच्चे स्कूल नहीं जाते।
चौथी कक्षा के छात्र घटाव के सवाल नहीं कर पाए हल
सरकारी स्कूलों में कक्षा 4 के17.5 फीसदी बच्चे ही घटाव के सवाल हल कर सके, जबकि वर्ष 2010 में 32.6 फीसदी बच्चों ने इन सवालों को हल कर लिया था। पिछले साल कक्षा 5 के 12.1 फीसदी बच्चों को ही भाग के सवालों को हल करना आता था, जबकि चार साल पहले 18.7 फीसदी बच्चों ने ये सवाल हल कर लिए थे।
अंग्रेजी का ज्ञान कराने में स्कूल फिसड्डी
कक्षा 1 के 59.7 फीसदी बच्चों को अंग्रेजी के कैपिटल लेटर्स का ज्ञान नहीं है। इस कक्षा के महज 15.9 फीसदी बच्चों को कैपिटल लेटर्स का ज्ञान है, मगर वे स्मॉल लेटर्स को नहीं पहचान पाते। महज 7.3 फीसदी बच्चे ही अंग्रेज के साधारण शब्द और 1.9 फीसदी आसान वाक्य पढ़ सके। कक्षा 5 में भी 17.3 फीसदी बच्चों को कैपिटल लेटर्स का ज्ञान नहीं था। कक्षा 8 में भी 8.9 फीसदी बच्चे कैपिटल लेटर्स नहीं पढ़ पाए।
अंक ज्ञान में भी बरेली मंडल में खराब स्थिति
अंकों के ज्ञान में भी देवीपाटन और बरेली मंडल के बच्चे सबसे ज्यादा पिछड़े हैं। असर की रिपोर्ट बताती है कि देवीपाटन मंडल में कक्षा-1 व 2 के 50.97 प्रतिशत और बरेली में 51.28 प्रतिशत बच्चे ही 1-9 तक के अंक पहचान पाए। बरेली में कक्षा 3-5 के 30.12 प्रतिशत और देवीपाटन में 32.12 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा-1 की पाठ्यपुस्तक पढ़ सके।
कक्षा एक के आधे से ज्यादा बच्चे नहीं पहचानते अक्षर
कक्षा 1 के 54.2 प्रतिशत बच्चे अक्षर तक नहीं पहचान पाते। इसी कक्षा के 29.7 प्रतिशत बच्चे अक्षर तो पहचान लेते हैं, मगर उन्हें जोड़कर बनाए गए शब्द नहीं पढ़ पाते। महज 8.2 प्रतिशत बच्चे शब्द पढ़ लेते हैं, मगर अपनी किताब को ठीक से नहीं समझ पाते। इसी तरह कक्षा 5 के 8.2 फीसदी बच्चे अक्षर नहीं पहचान पाए। 18.1 फीसदी ने अक्षर तो पहचान लिए, मगर उनको मिलाकर शब्द दिए तो नहीं पढ़ पाए। 13.8 फीसदी बच्चों ने शब्द तो पढ़ लिए, मगर कक्षा 1 की पाठ्यपुस्तक नहीं पढ़ सके। इससे ज्यादा अफसोस की बात क्या होगी कि कक्षा 8 के 3.4 फीसदी बच्चे अक्षर तक नहीं पढ़ पाते। 7.5 फीसदी अक्षर पढ़ लेते हैं, मगर उन्हें शब्दों की समझ नहीं। 6.8 फीसदी बच्चे ऐसे मिले, जिन्होंने शब्द तो पढ़ लिए, मगर लेवल 1 की पाठ्यपुस्तक नहीं पढ़ सके।
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लखनऊ। अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद सूबे में प्राथमिक शिक्षा का स्तर ऊपर उठने के बजाय साल दर साल गिरता ही जा रहा है। हाल यह है कि वर्ष 2010 में सरकारी स्कूलों में कक्षा 3 के हर 100 में से 56 बच्चे कम से कम ‘शब्द’ पढ़ लेते थे, वहीं 2014 में यह संख्या गिरकर आधे यानी 28 पर पहुंच गई। गणित में तो स्थिति और भी खराब है।
कक्षा 3 के 71 फीसदी बच्चों को 10-99 तक के अंकों का ज्ञान नहीं है, जबकि चार साल पहले की रिपोर्ट के अनुसार 51 फीसदी बच्चों को इसका ज्ञान था। अंग्रेजी के मामले में तो और भी वे फिसड्डी साबित हो रहे हैं।
इसका खुलासा एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) में किया गया है। असर के राज्य समन्वयक सुनील कुमार और संदीप शर्मा के मुताबिक, यह रिपोर्ट प्रदेश के 69 जिलों के 1971 स्कूलों का अध्ययन करने के बाद तैयार की गई है। इनमें 1543 प्राइमरी स्कूल और 428 जूनियर हाईस्कूल शामिल हैं। इस रिपोर्ट को तैयार करने में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय स्वयंसेवी संगठन ‘प्रथम’ का भी सहयोग रहा है।
1-9 तक के अंक नहीं पहचान पाते कक्षा 5 के छात्र
कक्षा 5 में 5.6 फीसदी बच्चे ऐसे मिले, जो 1-9 तक के अंक नहीं पहचान सके। 21.1 प्रतिशत बच्चों ने 1-9 तक के अंक तो पहचान लिए, मगर 10-99 तक के अंकों को नहीं पढ़ सके। 26.6 प्रतिशत बच्चों ने अंक तो पहचान लिए, मगर उन्हें घटाने के सवाल नहीं आते। 22.2 प्रतिशत बच्चे भाग के सवाल हल नहीं कर पाए। शिक्षा के खराब होते स्तर का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि वर्ष 2014 में सरकारी स्कूलों में कक्षा 2 के 59.3 प्रतिशत बच्चे ही 1-9 तक केअंक पहचान सके, जबकि 2010 में 76.8 प्रतिशत बच्चों को इसकी जानकारी थी। कक्षा 3 के 28.8 फीसदी बच्चों को ही 10-99 के अंकों की जानकारी थी, जबकि वर्ष 2010 में यह संख्या 51 फीसदी थी।
बड़ी संख्या में बच्चे नहीं जाते स्कूल
7-16 वर्ष के 7.7 फीसदी बच्चे स्कूल नहीं जाते। 7-10 साल के 2.5 फीसदी लड़के और 3.1 फीसदी लड़कियां स्कूल से बाहर हैं। 11 साल तक पहुंचते-पहुंचते लड़कियों में ड्रॉप आउट रेट और भी बढ़ जाता है। 11-14 बरस की 9.2 फीसदी लड़कियां स्कूल से बाहर हैं। वहीं 15-16 साल की 22.7 फीसदी लड़कियां और 19.4 फीसदी लड़के स्कूल से बाहर हैं। इतना ही नहीं, छह साल तक के 7.3 फीसदी बच्चों का नाम किसी भी स्कूल या प्री स्कूल में दर्ज नहीं मिला।
कक्षा 3 के 28 फीसदी बच्चे ही पढ़ पाते शब्द
रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2010 में सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे कक्षा 2 के 77.2 फीसदी बच्चे कम से कम अक्षर तो पहचान लेते थे, मगर 2014 में यह संख्या गिरकर 50 फीसदी पर पहुंच गई। निजी स्कूलों में यही आंकड़ा 91.1 फीसदी से 86.4 पर आ गया। इसी तरह वर्ष 2010 में सरकारी स्कूलों के कक्षा 3 के 56.1 फीसदी बच्चे कम से कम शब्द पढ़ लेते थे, लेकिन वर्ष 2014 में यह संख्या गिरकर 27.9 फीसदी पर पहुंच गई।
कक्षा- 5 के 73 फीसदी बच्चे नहीं पढ़ पाते दूसरे दर्जे की किताब
वर्ष 2014 में कक्षा 4 के सरकारी स्कूलों के 26.9 फीसदी और निजी स्कूलों के 67.6 फीसदी बच्चे ही कक्षा 1 की पाठ्यपुस्तक पढ़ सके। वहीं, वर्ष 2010 में यह संख्या क्रमश: 46.2 और 69.5 प्रतिशत थी। इसी तरह वर्ष 2014 में सरकारी स्कूलों में कक्षा 5 के 26.8 प्रतिशत और निजी स्कूलों में 61.4 प्रतिशत बच्चे कक्षा दो की किताब पढ़ सके, जबकि वर्ष 2014 में यह तादाद क्रमश: 36 और 58.4 फीसदी थी।
बरेली और देवीपाटन मंडलों में सबसे ज्यादा बच्चे स्कूल से बाहर
रिपोर्ट के अनुसार स्कूल से बाहर 6-14 वर्ष के बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा बरेली में है और उसके बाद देवीपाटन मंडल का नंबर आता है। वर्ष 2014 में बरेली में 9.77 प्रतिशत बच्चे स्कूल से बाहर थे, जबकि देवीपाटन मंडल में 8.27 प्रतिशत। प्रदेश स्तर पर बात करें तो 6-14 साल के बच्चे स्कूल नहीं जाते।
चौथी कक्षा के छात्र घटाव के सवाल नहीं कर पाए हल
सरकारी स्कूलों में कक्षा 4 के17.5 फीसदी बच्चे ही घटाव के सवाल हल कर सके, जबकि वर्ष 2010 में 32.6 फीसदी बच्चों ने इन सवालों को हल कर लिया था। पिछले साल कक्षा 5 के 12.1 फीसदी बच्चों को ही भाग के सवालों को हल करना आता था, जबकि चार साल पहले 18.7 फीसदी बच्चों ने ये सवाल हल कर लिए थे।
अंग्रेजी का ज्ञान कराने में स्कूल फिसड्डी
कक्षा 1 के 59.7 फीसदी बच्चों को अंग्रेजी के कैपिटल लेटर्स का ज्ञान नहीं है। इस कक्षा के महज 15.9 फीसदी बच्चों को कैपिटल लेटर्स का ज्ञान है, मगर वे स्मॉल लेटर्स को नहीं पहचान पाते। महज 7.3 फीसदी बच्चे ही अंग्रेज के साधारण शब्द और 1.9 फीसदी आसान वाक्य पढ़ सके। कक्षा 5 में भी 17.3 फीसदी बच्चों को कैपिटल लेटर्स का ज्ञान नहीं था। कक्षा 8 में भी 8.9 फीसदी बच्चे कैपिटल लेटर्स नहीं पढ़ पाए।
अंक ज्ञान में भी बरेली मंडल में खराब स्थिति
अंकों के ज्ञान में भी देवीपाटन और बरेली मंडल के बच्चे सबसे ज्यादा पिछड़े हैं। असर की रिपोर्ट बताती है कि देवीपाटन मंडल में कक्षा-1 व 2 के 50.97 प्रतिशत और बरेली में 51.28 प्रतिशत बच्चे ही 1-9 तक के अंक पहचान पाए। बरेली में कक्षा 3-5 के 30.12 प्रतिशत और देवीपाटन में 32.12 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा-1 की पाठ्यपुस्तक पढ़ सके।
कक्षा एक के आधे से ज्यादा बच्चे नहीं पहचानते अक्षर
कक्षा 1 के 54.2 प्रतिशत बच्चे अक्षर तक नहीं पहचान पाते। इसी कक्षा के 29.7 प्रतिशत बच्चे अक्षर तो पहचान लेते हैं, मगर उन्हें जोड़कर बनाए गए शब्द नहीं पढ़ पाते। महज 8.2 प्रतिशत बच्चे शब्द पढ़ लेते हैं, मगर अपनी किताब को ठीक से नहीं समझ पाते। इसी तरह कक्षा 5 के 8.2 फीसदी बच्चे अक्षर नहीं पहचान पाए। 18.1 फीसदी ने अक्षर तो पहचान लिए, मगर उनको मिलाकर शब्द दिए तो नहीं पढ़ पाए। 13.8 फीसदी बच्चों ने शब्द तो पढ़ लिए, मगर कक्षा 1 की पाठ्यपुस्तक नहीं पढ़ सके। इससे ज्यादा अफसोस की बात क्या होगी कि कक्षा 8 के 3.4 फीसदी बच्चे अक्षर तक नहीं पढ़ पाते। 7.5 फीसदी अक्षर पढ़ लेते हैं, मगर उन्हें शब्दों की समझ नहीं। 6.8 फीसदी बच्चे ऐसे मिले, जिन्होंने शब्द तो पढ़ लिए, मगर लेवल 1 की पाठ्यपुस्तक नहीं पढ़ सके।
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