नई दिल्ली। वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) मामले में 7वें वेतन आयोग ने गेंद सरकार के पाले में डाल दी है। आयोग का कहना है कि वह इस विवाद को पूरी तरह से निपटाकर उन्हें सौंपे, अन्यथा उसके लिए इस विवाद को संभालना मुश्किल हो रहा है।
रक्षा मंत्रालय और वित्त मंत्रालय ने वन रैंक वन पेंशन का गुणा भाग कर उसे 7वें वेतन आयोग को सौंप दिया था ताकि सांतवा वेतन आयोग ओआरओपी को भी अपनी सिफारिशों में शामिल कर दे और सरकार पर मौद्रिक बोझ एक ही बार पड़े। सूत्रों को कहना है कि वेतन आयोग ने सेना के अनुशासन, उनके रैंक की विषमता, मैडल, पुरस्कारों के अनुसार वेतन बढ़ोतरी आदि उलझनों को सुझलाने में असमर्थता व्यक्त करते हुए सरकार से कहा कि वह हिसाब-किताब लगाकर उसको दे तब वह उसे अपनी रिपोर्ट में शामिल कर लेगा। तभी प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव ने आंदोलनकारी पूर्व सैनिकों के प्रतिनिधियों से 10 दिन का समय मांगा है। रक्षा मंत्रालय गुणा-भाग कर वेतन आयोग को पूरी रिपोर्ट सौंपेगा।
मालूम हो कि सरकार ने ओआरओपी को अलग से देने के बजाए 7वें वेतन आयोग के साथ ही देने का मन बनाया है ताकि सरकार पर एक ही बार आर्थिक बोझ पड़े। क्योंकि सातवें वेतन आयोग में सभी कर्मचारियों का वेतन बढ़ेगा उसी में मिलिट्री पेंशन भी बढ़ जाएगा। यदि अभी यह योजना लागू की गयी तो नौकरशाह और अर्धसैनिक बल भी मांग करने लगेंगे। सूत्रों के अनुसार पूर्व सैनिकों को वन रैंक वन पेंशन छठे वेतन आयोग की तिथि 2006 के बजाए 2014 से मिलेगी। इस लिहाज से सरकार के खजाने पर 17 हजार करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। पहले यह बजट करीब 10 हजार करोड़ रुपये का था लेकिन 7वें वेतन आयोग की गणना के अनुसार यह आंकड़ा बढ़ गया है।
सातवें वेतन आयोग का कार्यकाल एक महीने बढ़ा:
वित्त मंत्रालय ने 7वें वेतन आयोग का कार्यकाल एक महीने बढ़ा दिया है। आयोग को अपनी रिपोर्ट 28 अगस्त तक सौंपनी थी लेकिन रिपोर्ट पर अंतिम चरण में काम कर चल रहा है और वन रैंक वन पेंशन का मामला भी नहीं सुलझा है। इसलिए आयोग को एक महीने का समय दिया गया ताकि सरकार वन रैंक वन पेंशन पर अपना काम पूरा कर वेतन आयोग को सौंप दे और आयोग उसे अपनी रिपोर्ट में शामिल कर ले।
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