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पक्की नौकरी में पेंच , वर्ष 2000 तक के 1934 शिक्षकों को किया जाना है स्थाई

एडेड स्कूलों के तदर्थ शिक्षकों की पक्की नौकरी में पेंच
लखनऊ। कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। हाईकोर्ट से शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द होने के बाद राज्य सरकार के अधीन काम करने वाला न्याय विभाग बहुत ही फूंक-फूंक कर कदम उठा रहा है। इसीलिए विभागों से मांगी जाने वाली राय अब बहुत सोच-विचार के बाद दे रहा है। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों में वर्ष 2000 तक रखे गए 1934 तदर्थ शिक्षकों को स्थाई करने के संबंध में राय मांगी थी, जिससे कि कैबिनेट से इस संबंध में प्रस्ताव पास करा लिया जाए।

न्याय विभाग ने इस पर तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति पर ही सवाल उठा दिया है। पूछा है कि चयन बोर्ड के पदों को कॉलेज प्रबंधकों ने कैसे सीधे भर लिया। इसके चलते इन शिक्षकों का स्थाईकरण फंसता हुआ दिखाई दे रहा है।
राज्य सरकार ने 4 अगस्त 2015 को सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों में कार्यरत 1934 तदर्थ शिक्षकों को स्थाई करने का प्रस्ताव कैबिनेट से पास कराया था। प्रस्ताव इस शर्त पर पास किया गया था कि इनकोे शासनादेश जारी होने की तिथि से स्थाई किया जाएगा। इससे तदर्थ शिक्षक स्थाई तो हो जाएंगे, लेकिन उन्हें पेंशन व अन्य मदों का लाभ नहीं देना पड़ेगा। इससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त भार नहीं आएगा। माध्यमिक शिक्षा विभाग इसके आधार पर कैबिनेट में संशोधित प्रस्ताव ले जाना चाहता था। उसने कैबिनेट के लिए प्रस्ताव बनाते हुए वित्त व न्याय विभाग से राय मांगा था।
न्याय विभाग ने इस पर आपत्ति जता दी है। उनसे पूछा है कि सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों में प्रवक्ता संवर्ग का पद माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का है। वह ही इसकी भर्तियां करता है, तो प्रबंधकों ने इन पदों पर कैसे भर्तियां कर लीं। तदर्थ शिक्षकों की भर्ती के समय रिक्त पदों की क्या स्थिति थी, चयन बोर्ड से नियुक्ति के बाद यह नियुक्तियां क्यों नहीं रद्द हुईं। इस आपत्ति के चलते माध्यमिक शिक्षा विभाग के माथे पर बल पड़ गया है। अब वह न्याय विभाग की आपत्तियों का जवाब खोज रहा है। जब तक न्याय विभाग को ठोस जवाब नहीं मिल जाता है, तदर्थ शिक्षकों का स्थाईकरण फंसे रहने की संभावना है।
न्याय विभाग ने पूछा मैनेजरों ने किस आधार पर की भर्तियां
वर्ष 2000 तक के 1934 शिक्षकों को किया जाना है स्थाई


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