आज टेट मोर्चे की कार्यशैली पे कुछ कहूँगा एक आम प्रशिक्षु की हैसियत से।
आज टेट मोर्चे में कई ग्रुप हैं। लखनऊ ग्रुप जिसमे गणेश भाई अगुवा हैं,
अल्लाहाबाद ग्रुप जिसमे सुजीत भाई हैं, एक जौनपुर आजमगढ़ का ग्रुप है,
जिसमे निरहुआ जी अनिल वर्मा जी और भी लोग हैं।
एक समानान्तर सत्ता कुंडू जी भी चलाते हैं, एक हिमांशु भाई है जो अचयनियतो की लड़ाई लड़ रहे हैं।
वाकई में एक बाहरी व्यक्ति द्वारा देखे जाने पे एक शानदार संघठन मालूम देता है। पर क्या ऐसा है, इसको बहुत करीब से देखा है की जब से मामला सुप्रीम कोर्ट गया है तब से यहाँ अनुसासन जैसी कोई चीज़ नहीं है। आज स्थिति ये है कि लखनऊ टीम अपने लोगों को SCERT बुला लेती है और अल्लाहाबाद टीम अपने खास लोगों को निदेशालय बुला लेती है और आप जानते हैं इसका सबसे बुरा प्रभाव क्या पड़ रहा है की जिले में जिला इकाई खत्म हो गयी हैं, क्योंकि 10 में से 4 ब्लाक कार्य बहिस्कार करते हैं, 6 कहते है हमें तो ऊपर से कोई निर्देश ही नहीं मिला। अब जिला अध्यक्ष बेचारा निरीह हो गया है। आप साहब दूसरों की बात करते हैं, अरे भैया उनके यहाँ सिर्फ 2 नेता हैं और दोनों नेता भले अलग हो लेकिन योजना एक ही रहती है। अब हमें तो साहब ये ही नहीं पता की कार्य बहिष्कार कब करना है, SCERT कब जाना है, निदेशालय कब जाना है, घेराव कब करना है आदि। न आपने अब तक संघठन का रजिस्ट्रेशन करवाया न कोई जिला संघठन नामित किया बस आप भागे जा रहे हो मौलिक नियुक्ति की अंधी दौड़ में। अब तक मीडिया के माध्यम से टेट मोर्चे के 4 से 5 अध्यक्षों के नाम सुन चुका हूँ। न आपका कोई केंद्रीकृत अकाउंट है न आपने सभी के जुड़ाव के लिए कोई सिस्टम बनाया है न आपका कोई एजेंडा है न कोई मोमेरेन्डम है। अब इतनी चीजें आप लोगों से जो कहे उसे आप ये कह दोगे की पहले नियुक्ति होने दो ज्यादा बकैती न करो।
अब तक जो मैंने देखा की यहाँ कोई एक ग्रुप नहीं रह सकता, अरे भाई रहेगा भी क्यों तो ठीक है, 2 ग्रुप रहें लेकिन एक सिस्टम तो बनाओ। माना आप कोर्ट में बिजी रहते हैं तो और लोग भी तो है जो इसकी रुपरेखा बना सकते हैं। अवनीश दादा एक बार प्रस्ताव लाये थे पर सबने ये कहकर चुप करा दिया की अभी सारे लोग यहाँ नहीं है जबकि सच्चाई है की सारे लोग कभी होंगे भी नहीं। मैं बता रहा की बेचारा जिला अध्यक्ष बहुत कंफ्यूज है कि नेता किसको माने। आप लोगों का ये भी क्लियर नहीं कि भविष्य में प्राथमिक संघ में विलय करोगे कि अलग रहोगे पूछने पे आप लोग कहते हैं अभी चलने दो जैसा चल रहा है। टेट मोर्चे में कभी सामन्जस्य की राजनीति हुआ करती थी जो शायद बार्लिंगटन चौराहे के बाद दफ़न सी हो गयी है और उसके लिए प्रयास करने की हिम्मत शायद ही कोई करे।
अंत में यही कहूँगा की भले एक न हो लेकिन अपना स्वतंत्र अस्तित्व कुछ इस तरह रखिये की हम आम लोगों को निर्णय लेने में आसानी हो।
वैसे अब ये रोना कोई न रोये की अभी सुप्रीम कोर्ट में मामला है पहले उसे देखना है। बाकि जिलों को भगवान भरोसे छोड़ने और एक ही जिले में कई जिला अध्यक्ष पैदा करने का इल्जाम भी शायद आप पे ही जायेगा।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
एक समानान्तर सत्ता कुंडू जी भी चलाते हैं, एक हिमांशु भाई है जो अचयनियतो की लड़ाई लड़ रहे हैं।
वाकई में एक बाहरी व्यक्ति द्वारा देखे जाने पे एक शानदार संघठन मालूम देता है। पर क्या ऐसा है, इसको बहुत करीब से देखा है की जब से मामला सुप्रीम कोर्ट गया है तब से यहाँ अनुसासन जैसी कोई चीज़ नहीं है। आज स्थिति ये है कि लखनऊ टीम अपने लोगों को SCERT बुला लेती है और अल्लाहाबाद टीम अपने खास लोगों को निदेशालय बुला लेती है और आप जानते हैं इसका सबसे बुरा प्रभाव क्या पड़ रहा है की जिले में जिला इकाई खत्म हो गयी हैं, क्योंकि 10 में से 4 ब्लाक कार्य बहिस्कार करते हैं, 6 कहते है हमें तो ऊपर से कोई निर्देश ही नहीं मिला। अब जिला अध्यक्ष बेचारा निरीह हो गया है। आप साहब दूसरों की बात करते हैं, अरे भैया उनके यहाँ सिर्फ 2 नेता हैं और दोनों नेता भले अलग हो लेकिन योजना एक ही रहती है। अब हमें तो साहब ये ही नहीं पता की कार्य बहिष्कार कब करना है, SCERT कब जाना है, निदेशालय कब जाना है, घेराव कब करना है आदि। न आपने अब तक संघठन का रजिस्ट्रेशन करवाया न कोई जिला संघठन नामित किया बस आप भागे जा रहे हो मौलिक नियुक्ति की अंधी दौड़ में। अब तक मीडिया के माध्यम से टेट मोर्चे के 4 से 5 अध्यक्षों के नाम सुन चुका हूँ। न आपका कोई केंद्रीकृत अकाउंट है न आपने सभी के जुड़ाव के लिए कोई सिस्टम बनाया है न आपका कोई एजेंडा है न कोई मोमेरेन्डम है। अब इतनी चीजें आप लोगों से जो कहे उसे आप ये कह दोगे की पहले नियुक्ति होने दो ज्यादा बकैती न करो।
अब तक जो मैंने देखा की यहाँ कोई एक ग्रुप नहीं रह सकता, अरे भाई रहेगा भी क्यों तो ठीक है, 2 ग्रुप रहें लेकिन एक सिस्टम तो बनाओ। माना आप कोर्ट में बिजी रहते हैं तो और लोग भी तो है जो इसकी रुपरेखा बना सकते हैं। अवनीश दादा एक बार प्रस्ताव लाये थे पर सबने ये कहकर चुप करा दिया की अभी सारे लोग यहाँ नहीं है जबकि सच्चाई है की सारे लोग कभी होंगे भी नहीं। मैं बता रहा की बेचारा जिला अध्यक्ष बहुत कंफ्यूज है कि नेता किसको माने। आप लोगों का ये भी क्लियर नहीं कि भविष्य में प्राथमिक संघ में विलय करोगे कि अलग रहोगे पूछने पे आप लोग कहते हैं अभी चलने दो जैसा चल रहा है। टेट मोर्चे में कभी सामन्जस्य की राजनीति हुआ करती थी जो शायद बार्लिंगटन चौराहे के बाद दफ़न सी हो गयी है और उसके लिए प्रयास करने की हिम्मत शायद ही कोई करे।
अंत में यही कहूँगा की भले एक न हो लेकिन अपना स्वतंत्र अस्तित्व कुछ इस तरह रखिये की हम आम लोगों को निर्णय लेने में आसानी हो।
वैसे अब ये रोना कोई न रोये की अभी सुप्रीम कोर्ट में मामला है पहले उसे देखना है। बाकि जिलों को भगवान भरोसे छोड़ने और एक ही जिले में कई जिला अध्यक्ष पैदा करने का इल्जाम भी शायद आप पे ही जायेगा।
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