गिरिडीह : सफलता का एकमात्र रास्ता मेहनत है। बिना मेहनत के सफलता नहीं मिलती। लक्ष्य निर्धारित कर उसे पाने के लिए कठिन परिश्रम करें। परिश्रम ही ऐसी कुंजी है जो आपको सफलता के शिखर पर पहुंचाएगी। उक्त बातें प्रधान जिला जज शिवनारायण ¨सह ने बाल संवाद कार्यक्रम में कही।
वे रविवार को दैनिक जागरण के बाल संवाद कार्यक्रम के तहत नया परिसदन में हनी होली ट्रिनिटी स्कूल स्कूल के बच्चों का मार्गदर्शन कर रहे थे। उनके साथ जिला जज एक पीके चौबे और न्यायिक दंडाधिकारी धर्मेंद्र कुमार के अलावा अधिवक्ता संघ के सचिव चुन्नूकांत भी उपस्थित थे। शिक्षक इमरान खान, अभिनय आनंद और शमीम अख्तर के नेतृत्व में आये बच्चों ने प्रधान जिला जज से न्यायिक व्यवस्था, पढ़ाई, करियर, बालश्रम, न्यायलय में महिलाओं की भागीदारी आदि से संबंधित कई सवाल पूछे। प्रधान जिला जज सहित दोनों न्यायिक पदाधिकारियों ने बच्चों के सवालों को गंभीरता से सुना और प्रत्येक सवाल का जवाब देकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया। प्रधान जिला जज ने बच्चों के साथ अपने छात्र जीवन का अनुभव भी साझा किया। प्रस्तुत है बच्चों के सवाल और प्रधान जिला जज के जवाब :
सवाल : सर, विलंब से मिला न्याय, न्याय नहीं होता है, बावजूद अदालतें विलंब से फैसला क्यों सुनाती हैं ?
मुस्कान सिन्हा
जवाब : हर मुकदमा में दो पक्ष होते हैं। एक पीड़ित और दूसरा आरोपी पक्ष। दोनों पक्षों के अपने-अपने वकील होते हैं। पीड़ित पक्ष जल्द न्याय चाहता है तो आरोपी पक्ष अधिक से अधिक टालने की कोशिश करता है, ताकि विलंब से फैसला हो। अदालतें जल्द फैसला सुनाए इसके लिए दोनों पक्षों को सहयोग करने की जरूरत है। हालांकि न्यायिक व्यवस्था में अब काफी सुधार हो रहा है। मुकदमों का निष्पादन जल्द हो, इसके लिए कई तरह की पहल की जा रही है।
सवाल : सर, न्यायिक सेवा में जाने के लिए क्या करना होगा?
अनिशा कुमारी
जवाब : इसके लिए आपको सबसे पहले कानून की पढ़ाई कर वकील बनना होगा। फिर प्रतियोगिता परीक्षा देनी होगी। इसके बाद ही आप न्यायिक सेवा में जा सकते हैं।
सवाल : सर, क्या न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार है?
ऋचा मिश्रा
जवाब : नहीं, न्यायपालिका में भ्रष्टाचार नहीं है। न्यायपालिका भ्रष्टाचार से अछूता है, इसलिए लोगों का इस पर पूरा भरोसा और विश्वास है।
सवाल : सर, जिला स्तर पर राइट टू सर्विस एक्ट के अनुपालन से क्या आप संतुष्ट हैं?
सृष्टि गुप्ता
जवाब : यह एक कानून है। इसका अनुपालन कराने के लिए दूसरे विभाग हैं। हमारे पास ऐसी शिकायत भी नहीं आई है। हम उसी मामले में कुछ करते हैं, जो हमारे संज्ञान में आता है।
सवाल : सर, निचली अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक कोर्ट के फैसले क्यों बदल जाते हैं?
वर्षा सिन्हा
जवाब : लोगों को उचित और सही न्याय मिले, इसके लिए 3-4 स्तर पर मुकदमों की सुनवाई की जाती है। निचली अदालतों से फैसला सुनाने में अगर किसी तरह की चूक होती है, तो उसे ऊपरी अदालतों में सुधारा जाता है। ऊपरी अदालतों में फैसला भले बदलता है, लेकिन सही न्याय मिलता है।
सवाल : सर, महिलाओं की भागीदारी न्यायपालिका में कम क्यों है?
सुप्रिया भारती
जवाब : महिलाएं इस क्षेत्र में जाना नहीं चाहती हैं। वे डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक बनना अधिक पंसद करती हैं। आप कानून की पढ़ाई करें और इस क्षेत्र में आएं। अब कानून की पढ़ाई इंटर के बाद से ही होने लगी है। हालांकि महिलाओं की सोच में अब बदलाव आया है। महिलाएं भी अब बड़ी संख्या में न्यायिक सेवा में आ रही हैं।
सवाल : सर, ज्यूरी मेंबर क्या होता है?
कृष्णकांत ¨सह
जवाब : यह ब्रिटिश राज में चलता था। उस समय सभी अधिकारी अंग्रेज थे। वे स्थानीय लोगों की भाषा को समझ नहीं पाते थे। अधिकारी जब गांवों में जाते थे या मुकदमों की सुनवाई करते थे, तो 4-5 स्थानीय लोगों को अपने पास बैठा लेते थे, जो उन्हें स्थानीय लोग क्या बोल रहे हैं, यह समझाते हैं। उन्हें ज्यूरी मेंबर कहा जाता था, लेकिन अब यह व्यवस्था समाप्त हो गयी है।
सवाल : सर, किसी खतरनाक अपराधी के खिलाफ फैसला सुनाते समय कभी आपको डर लगा है?
रिया कुमारी
जवाब : पीड़ितों को न्याय देने और फैसला सुनाने में डरना नहीं चाहिए। निर्भिक होकर बिना कोई पक्षपात किए फैसला सुनाना चाहिए। मैंने भी हमेशा ऐसा ही किया है। कानून के अनुसार हमेशा फैसला सुनाया है।
सवाल : सर, काफी लोग न्याय का साथ देना चाहते हैं, लेकिन वे कोर्ट-कचहरी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते, क्यों ?
गरिमा केडिया
जवाब : न्यायालयों में पदाधिकारियों की काफी कमी है, जिससे मुकदमों के निष्पादन में विलंब होता है। इसे सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद ने गंभीरता से लिया है। लोगों को जल्द न्याय मिले और उन्हें परेशान न होना पड़े, इसके लिए कई कदम उठाए गए हैं। राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर विधिक सेवा प्राधिकार का गठन किया गया है। समय-समय पर लोक अदालत का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोगों को त्वरित न्याय मिलता है। दोनों पक्षों की सहमति से मामले का निष्पादन किया जाता है। स्थायी लोक अदालत भी है, जिसमें जनहित से संबंधित मामलों को देखा जाता है। इसके अलावा चलंत लोक अदालत भी चल रही है। इन न्यायिक सेवाओं का लाभ लेने के लिए लोगों को जागरूक होने की जरूरत है।
सवाल : सर, सभी को समानता का अधिकार प्राप्त है, फिर भी आरक्षण देकर किसी को अधिक अवसर दिया जा रहा है, क्यों ?
आलोक राज
जवाब : कानून की नजर में सभी बरारब है। देश में सभी वर्ग के लोगों को बराबरी पर लाने के लिए संविधान में एससी, एसटी और अन्य कमजोर वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
सवाल : सर, भ्रष्टाचार हमारे सिस्टम में है या लोगों के जेहन में ?
प्रिया श्रेया
जवाब : यह हमारे मन में है, इसलिए यह सिस्टम में भी आ गया है।
सवाल : सर, क्या परिश्रम ही सफलता की कुंजी है ?
सचिन रजक
जवाब : बिल्कुल। परिश्रम के बिना सफलता हासिल नहीं की जा सकती। हमेशा अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखें और कठिन परिश्रम करें। बिना मेहनत के आप लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकते हैं।
सवाल : सर, समाज अपराध मुक्त कैसे होगा?
आदित्य विक्रम
जवाब : इसके लिए लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी।
सवाल : सर, बालश्रम रोकने के लिए क्या कोई कानून है?
शहबाज आलम
जवाब : बच्चों से काम कराना अपराध है। इसे रोकने के लिए कानून बना है। बाल श्रम करानेवालों को सजा हो सकती है।
सवाल : सर, आपको अपने किसी फैसले पर पछतावा हुआ है ?
रवि कश्यप
जवाब : नहीं।
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वे रविवार को दैनिक जागरण के बाल संवाद कार्यक्रम के तहत नया परिसदन में हनी होली ट्रिनिटी स्कूल स्कूल के बच्चों का मार्गदर्शन कर रहे थे। उनके साथ जिला जज एक पीके चौबे और न्यायिक दंडाधिकारी धर्मेंद्र कुमार के अलावा अधिवक्ता संघ के सचिव चुन्नूकांत भी उपस्थित थे। शिक्षक इमरान खान, अभिनय आनंद और शमीम अख्तर के नेतृत्व में आये बच्चों ने प्रधान जिला जज से न्यायिक व्यवस्था, पढ़ाई, करियर, बालश्रम, न्यायलय में महिलाओं की भागीदारी आदि से संबंधित कई सवाल पूछे। प्रधान जिला जज सहित दोनों न्यायिक पदाधिकारियों ने बच्चों के सवालों को गंभीरता से सुना और प्रत्येक सवाल का जवाब देकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया। प्रधान जिला जज ने बच्चों के साथ अपने छात्र जीवन का अनुभव भी साझा किया। प्रस्तुत है बच्चों के सवाल और प्रधान जिला जज के जवाब :
सवाल : सर, विलंब से मिला न्याय, न्याय नहीं होता है, बावजूद अदालतें विलंब से फैसला क्यों सुनाती हैं ?
मुस्कान सिन्हा
जवाब : हर मुकदमा में दो पक्ष होते हैं। एक पीड़ित और दूसरा आरोपी पक्ष। दोनों पक्षों के अपने-अपने वकील होते हैं। पीड़ित पक्ष जल्द न्याय चाहता है तो आरोपी पक्ष अधिक से अधिक टालने की कोशिश करता है, ताकि विलंब से फैसला हो। अदालतें जल्द फैसला सुनाए इसके लिए दोनों पक्षों को सहयोग करने की जरूरत है। हालांकि न्यायिक व्यवस्था में अब काफी सुधार हो रहा है। मुकदमों का निष्पादन जल्द हो, इसके लिए कई तरह की पहल की जा रही है।
सवाल : सर, न्यायिक सेवा में जाने के लिए क्या करना होगा?
अनिशा कुमारी
जवाब : इसके लिए आपको सबसे पहले कानून की पढ़ाई कर वकील बनना होगा। फिर प्रतियोगिता परीक्षा देनी होगी। इसके बाद ही आप न्यायिक सेवा में जा सकते हैं।
सवाल : सर, क्या न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार है?
ऋचा मिश्रा
जवाब : नहीं, न्यायपालिका में भ्रष्टाचार नहीं है। न्यायपालिका भ्रष्टाचार से अछूता है, इसलिए लोगों का इस पर पूरा भरोसा और विश्वास है।
सवाल : सर, जिला स्तर पर राइट टू सर्विस एक्ट के अनुपालन से क्या आप संतुष्ट हैं?
सृष्टि गुप्ता
जवाब : यह एक कानून है। इसका अनुपालन कराने के लिए दूसरे विभाग हैं। हमारे पास ऐसी शिकायत भी नहीं आई है। हम उसी मामले में कुछ करते हैं, जो हमारे संज्ञान में आता है।
सवाल : सर, निचली अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक कोर्ट के फैसले क्यों बदल जाते हैं?
वर्षा सिन्हा
जवाब : लोगों को उचित और सही न्याय मिले, इसके लिए 3-4 स्तर पर मुकदमों की सुनवाई की जाती है। निचली अदालतों से फैसला सुनाने में अगर किसी तरह की चूक होती है, तो उसे ऊपरी अदालतों में सुधारा जाता है। ऊपरी अदालतों में फैसला भले बदलता है, लेकिन सही न्याय मिलता है।
सवाल : सर, महिलाओं की भागीदारी न्यायपालिका में कम क्यों है?
सुप्रिया भारती
जवाब : महिलाएं इस क्षेत्र में जाना नहीं चाहती हैं। वे डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक बनना अधिक पंसद करती हैं। आप कानून की पढ़ाई करें और इस क्षेत्र में आएं। अब कानून की पढ़ाई इंटर के बाद से ही होने लगी है। हालांकि महिलाओं की सोच में अब बदलाव आया है। महिलाएं भी अब बड़ी संख्या में न्यायिक सेवा में आ रही हैं।
सवाल : सर, ज्यूरी मेंबर क्या होता है?
कृष्णकांत ¨सह
जवाब : यह ब्रिटिश राज में चलता था। उस समय सभी अधिकारी अंग्रेज थे। वे स्थानीय लोगों की भाषा को समझ नहीं पाते थे। अधिकारी जब गांवों में जाते थे या मुकदमों की सुनवाई करते थे, तो 4-5 स्थानीय लोगों को अपने पास बैठा लेते थे, जो उन्हें स्थानीय लोग क्या बोल रहे हैं, यह समझाते हैं। उन्हें ज्यूरी मेंबर कहा जाता था, लेकिन अब यह व्यवस्था समाप्त हो गयी है।
सवाल : सर, किसी खतरनाक अपराधी के खिलाफ फैसला सुनाते समय कभी आपको डर लगा है?
रिया कुमारी
जवाब : पीड़ितों को न्याय देने और फैसला सुनाने में डरना नहीं चाहिए। निर्भिक होकर बिना कोई पक्षपात किए फैसला सुनाना चाहिए। मैंने भी हमेशा ऐसा ही किया है। कानून के अनुसार हमेशा फैसला सुनाया है।
सवाल : सर, काफी लोग न्याय का साथ देना चाहते हैं, लेकिन वे कोर्ट-कचहरी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते, क्यों ?
गरिमा केडिया
जवाब : न्यायालयों में पदाधिकारियों की काफी कमी है, जिससे मुकदमों के निष्पादन में विलंब होता है। इसे सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद ने गंभीरता से लिया है। लोगों को जल्द न्याय मिले और उन्हें परेशान न होना पड़े, इसके लिए कई कदम उठाए गए हैं। राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर विधिक सेवा प्राधिकार का गठन किया गया है। समय-समय पर लोक अदालत का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोगों को त्वरित न्याय मिलता है। दोनों पक्षों की सहमति से मामले का निष्पादन किया जाता है। स्थायी लोक अदालत भी है, जिसमें जनहित से संबंधित मामलों को देखा जाता है। इसके अलावा चलंत लोक अदालत भी चल रही है। इन न्यायिक सेवाओं का लाभ लेने के लिए लोगों को जागरूक होने की जरूरत है।
सवाल : सर, सभी को समानता का अधिकार प्राप्त है, फिर भी आरक्षण देकर किसी को अधिक अवसर दिया जा रहा है, क्यों ?
आलोक राज
जवाब : कानून की नजर में सभी बरारब है। देश में सभी वर्ग के लोगों को बराबरी पर लाने के लिए संविधान में एससी, एसटी और अन्य कमजोर वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
सवाल : सर, भ्रष्टाचार हमारे सिस्टम में है या लोगों के जेहन में ?
प्रिया श्रेया
जवाब : यह हमारे मन में है, इसलिए यह सिस्टम में भी आ गया है।
सवाल : सर, क्या परिश्रम ही सफलता की कुंजी है ?
सचिन रजक
जवाब : बिल्कुल। परिश्रम के बिना सफलता हासिल नहीं की जा सकती। हमेशा अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखें और कठिन परिश्रम करें। बिना मेहनत के आप लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकते हैं।
सवाल : सर, समाज अपराध मुक्त कैसे होगा?
आदित्य विक्रम
जवाब : इसके लिए लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी।
सवाल : सर, बालश्रम रोकने के लिए क्या कोई कानून है?
शहबाज आलम
जवाब : बच्चों से काम कराना अपराध है। इसे रोकने के लिए कानून बना है। बाल श्रम करानेवालों को सजा हो सकती है।
सवाल : सर, आपको अपने किसी फैसले पर पछतावा हुआ है ?
रवि कश्यप
जवाब : नहीं।
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