नई दिल्ली : बाबा रामदेव ने पिछले साल एचआरडी मिनिस्ट्री को वैदिक एजुकेशन बोर्ड बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसपर कुछ मीटिंग्स भी हुईं, लेकिन बात नहीं बन पाई।
अब मिनिस्ट्री ने इस दिशा में फिर से विचार करना शुरू किया है। यह पूछने पर कि वैदिक एजुकेशन बोर्ड का मसला क्या ठंडे बस्ते में चला गया, मिनिस्ट्री के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि यह ठंडे बस्ते में नहीं गया है और इसपर चर्चा चालू है। उन्होंने कहा कि जो लोग अलग सिस्टम में पढ़ते हैं और वेदों की पढ़ाई करते हैं, उनकी वेद भूषण या दूसरे नाम से जो डिग्री होती है, उन्हें मान्यता मिलनी चाहिए और इस बात पर सभी सहमत हैं। लेकिन यह वैदिक एजुकेशन बोर्ड के रूप में सामने आएगा या नहीं, इसका फैसला नहीं हुआ है। मिनिस्ट्री में इसे लेकर चर्चा चल रही है कि यह किस रूप में आए और इसका क्या नाम हो सकता है। उन्होंने कहा कि अभी कई ऐसे संस्थान चल रहे हैं, जो सीबीएसई से मान्यता प्राप्त नहीं हैं और वेद पढ़ाते हैं, उनके लिए एक सिस्टम बनाने की बात हो रही है। बाबा रामदेव इसे लेकर मिनिस्ट्री स्तर पर पहले ही बात कर चुके हैं, जिसके बाद पीएमओ ने एक मीटिंग भी बुलाई थी। हालांकि, उस मीटिंग में वैदिक एजुकेशन बोर्ड को लेकर सहमति नहीं बन पाई। तब कुछ अधिकारियों ने इसे लेकर ऐतराज जताया था और कहा था कि ऐसा करने पर गैर मान्यता प्राप्त कई दूसरे स्कूल बोर्ड भी अपने प्रस्तावों को लागू करने की मांग करेंगे। वैदिक एजुकेशन बोर्ड का जो प्रस्ताव दिया गया था, उसके मुताबिक बोर्ड खुद पाठ्यक्रम बनाना चाहता है और परीक्षाएं भी आयोजित करना चाहता है। तब यह सुझाव भी आया कि वैदिक एजुकेशन बोर्ड की बजाय उज्जैन के महर्षि संदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान को वैदिक और संस्कृत स्कूलों में परीक्षा कराने और वेद और संस्कृत स्कूलों को मान्यता देने का अधिकार दिया जा सकता है।मिनिस्ट्री के अधिकारी के मुताबिक, अब सभी मौजूदा विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री पी. पी. चौधरी भी पीएमओ को डिटेल प्रपोजल भेजकर वैदिक एजुकेशन बोर्ड बनाने की वकालत कर चुके हैं। चौधरी ने वैदिक एजुकेशन बोर्ड के समर्थन में कई कमिटियों के सुझाव का जिक्र किया। साथ ही कहा है कि सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों को बचाने और उन्हें प्रमोट करने के लिए वैदिक एजुकेशन जरूरी है। पीएमओ को भेजे लेटर में चौधरी ने लिखा कि संस्कृत भाषा को बचाने के लिए और योग को बढ़ावा देने के लिए वैदिक एजुकेशन जरूरी है।
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अब मिनिस्ट्री ने इस दिशा में फिर से विचार करना शुरू किया है। यह पूछने पर कि वैदिक एजुकेशन बोर्ड का मसला क्या ठंडे बस्ते में चला गया, मिनिस्ट्री के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि यह ठंडे बस्ते में नहीं गया है और इसपर चर्चा चालू है। उन्होंने कहा कि जो लोग अलग सिस्टम में पढ़ते हैं और वेदों की पढ़ाई करते हैं, उनकी वेद भूषण या दूसरे नाम से जो डिग्री होती है, उन्हें मान्यता मिलनी चाहिए और इस बात पर सभी सहमत हैं। लेकिन यह वैदिक एजुकेशन बोर्ड के रूप में सामने आएगा या नहीं, इसका फैसला नहीं हुआ है। मिनिस्ट्री में इसे लेकर चर्चा चल रही है कि यह किस रूप में आए और इसका क्या नाम हो सकता है। उन्होंने कहा कि अभी कई ऐसे संस्थान चल रहे हैं, जो सीबीएसई से मान्यता प्राप्त नहीं हैं और वेद पढ़ाते हैं, उनके लिए एक सिस्टम बनाने की बात हो रही है। बाबा रामदेव इसे लेकर मिनिस्ट्री स्तर पर पहले ही बात कर चुके हैं, जिसके बाद पीएमओ ने एक मीटिंग भी बुलाई थी। हालांकि, उस मीटिंग में वैदिक एजुकेशन बोर्ड को लेकर सहमति नहीं बन पाई। तब कुछ अधिकारियों ने इसे लेकर ऐतराज जताया था और कहा था कि ऐसा करने पर गैर मान्यता प्राप्त कई दूसरे स्कूल बोर्ड भी अपने प्रस्तावों को लागू करने की मांग करेंगे। वैदिक एजुकेशन बोर्ड का जो प्रस्ताव दिया गया था, उसके मुताबिक बोर्ड खुद पाठ्यक्रम बनाना चाहता है और परीक्षाएं भी आयोजित करना चाहता है। तब यह सुझाव भी आया कि वैदिक एजुकेशन बोर्ड की बजाय उज्जैन के महर्षि संदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान को वैदिक और संस्कृत स्कूलों में परीक्षा कराने और वेद और संस्कृत स्कूलों को मान्यता देने का अधिकार दिया जा सकता है।मिनिस्ट्री के अधिकारी के मुताबिक, अब सभी मौजूदा विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री पी. पी. चौधरी भी पीएमओ को डिटेल प्रपोजल भेजकर वैदिक एजुकेशन बोर्ड बनाने की वकालत कर चुके हैं। चौधरी ने वैदिक एजुकेशन बोर्ड के समर्थन में कई कमिटियों के सुझाव का जिक्र किया। साथ ही कहा है कि सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों को बचाने और उन्हें प्रमोट करने के लिए वैदिक एजुकेशन जरूरी है। पीएमओ को भेजे लेटर में चौधरी ने लिखा कि संस्कृत भाषा को बचाने के लिए और योग को बढ़ावा देने के लिए वैदिक एजुकेशन जरूरी है।
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