शिक्षकों समेत लाखों पद रिक्त होने के बाद भी देश का युवा सडकों पर, कोर्ट के आदेश के बाद भी नहीं हो पा रहीं भर्तियाँ

लाखों रिक्त पद: इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि जब रोजगार का सवाल गंभीर रूप लेता जा रहा है तब यह सामने आ रहा है कि अकेले केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में चार लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं।
समझना कठिन है कि इन रिक्त पदों को भरने के लिए किस शुभ घड़ी का प्रतीक्षा की जा रही है? किसी
को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इतनी बड़ी संख्या में रिक्त पदों को भरने की कोई कोशिश क्यों नहीं की गई? इस सवाल का जवाब इसलिए आवश्यक हो जाता है, क्योंकि न तो यह कहा जा सकता कि रिक्त पदों के बावजूद सारे काम सही तरह से हो रहे हैं और न ही यह कि रिक्त पदों को समाप्त कर दिया गया है। जैसे केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों और खासकर बड़ी संख्या में नौकरियां देने वाले रेलवे में तमाम पद रिक्त हैं वैसे ही राज्य सरकारों के भी विभिन्न विभागों में लाखों पद रिक्त हैं। राज्यों के स्तर पर बड़ी संख्या में खाली पड़े पदों में पुलिस और शिक्षकों के पद प्रमुख हैं। क्या राज्य सरकारें इस नतीजे पर पहुंच गई हैं कि अपर्याप्त शिक्षकों के जरिये बच्चों को सही तरह शिक्षित किया जा सकता है? अगर नहीं तो फिर इसका क्या मतलब कि प्राइमरी विद्यालयों से लेकर महाविद्यालयों में शिक्षकों के तमाम पद खाली पड़े रहें? यही सवाल पुलिस के खाली पदों के मामले में भी उठता है। पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका में कहा गया था कि देश भर में पुलिस के करीब साढ़े चार लाख पद रिक्त हैं। हैरानी की बात यह रही कि जब सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें जल्द भरे जाने के निर्देश दिए तो कई राज्यों ने तत्परता दिखाने के बजाय सुस्ती का ही परिचय दिया। इसके चलते उन्हें सुप्रीम कोर्ट की फटकार का सामना करना पड़ा। जब कानून एवं व्यवस्था के समक्ष समस्याएं बढ़ रही हों तब पुलिस के खाली पदों को भरने में हीलाहवाली करना मुसीबत मोल लेने के अलावा और कुछ नहीं।1कायदे से एक ऐसे समय केंद्र और राज्य सरकारों को रिक्त पदों को भरने में कहीं अधिक सक्रियता दिखानी चाहिए जब निजी क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसर न पैदा हो रहे हों, लेकिन दुर्भाग्य से किन्ही अज्ञात कारणों से स्थिति उलट है। केंद्र और राज्य सरकारें रिक्त पदों को भरने का अभियान चलाकर करीब दस लाख युवाओं को रोजगार देने का काम बहुत आसानी से कर सकती हैं। क्या भाजपा को यह पता नहीं कि उसकी अथवा उसके सहयोगी दलों की 19 राज्यों में सरकारें हैं और वे सब मिलकर बेरोजगारी की समस्या का एक बड़ी हद तक समाधान कर सकती हैं? आखिर रोजगार के अवसर बढ़ाने के उपायों पर ध्यान दे रही केंद्र सरकार यह क्यों नहीं देख पा रही है कि एक उपाय तो उसके अपने पास है? वह अपने विभिन्न विभागों के साथ 18-19 राज्यों को तो इसके लिए आसानी से कह ही सकती है कि वे खाली पदों को भरने का अभियान शुरू करें। ऐसे किसी अभियान के बिना यह कहते रहना एक तरह से बेरोजगार युवाओं को चिढ़ाना ही है कि भारत सबसे युवा देश है।


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