लखनऊ 1सीबीआइ ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्तियों में हुए
भ्रष्टाचार की जांच शुरू करके जहां प्रशासनिक पदों के अभ्यर्थियों में
न्याय की आस जगाई है, वहीं इसके शोरशराबे में शिक्षकों की भर्ती में हुई
गड़बड़ियां दब गई हैं। सपा शासन में माध्यमिक शिक्षकों और असिस्टेंट
प्रोफेसरों की भर्ती को लेकर भी
अनियमितताओं की तमाम शिकायतें थीं। परीक्षा की
प्रक्रिया से लेकर सदस्यों की नियुक्ति तक के मामले विवादों में रहे थे,
लेकिन फिलहाल इस पर चुप्पी है। 1प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त स्कूलों
के शिक्षकों, प्रवक्ताओं और प्रधानाचार्यो के चयन की जिम्मेदारी माध्यमिक
शिक्षा चयन बोर्ड पर है लेकिन यह कभी विवादों से अछूता नहीं रहा। सपा शासन
में गलत तरीके से की गई अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्तियों ने चयन बोर्ड की
छवि को और प्रभावित किया। अंतत: हाईकोर्ट के निर्देश पर अध्यक्ष अनीता सिंह
व सनिल कुमार को हटाना पड़ा। 1असिस्टेंट प्रोफेसरों की परीक्षा में सादी
कापियां : कमोबेश ऐसी ही स्थिति उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की रही, जिस पर
महाविद्यालयों को असिस्टेंट प्रोफेसर उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी है। सपा
के शासनकाल में आयोग का पूरी तरह गठन कभी नहीं हो सका। आयोग ने 1652 पदों
पर असिस्टेंट प्रोफेसरों के भर्ती के लिए पहली बार लिखित परीक्षा कराई,
लेकिन सवालों के गलत उत्तरों की वजह से इसको लेकर कई विवाद खड़े हुए।
हाईकोर्ट के दबाव पर सपा सरकार ने यहां पूर्व आइएएस एलबी पांडेय को अध्यक्ष
बनाकर भेजा। उन्होंने परीक्षा की कापियां स्कैन कराई तो लगभग दो सौ
कापियां सादी मिलीं। चर्चा थी कि इन कापियों को इसलिए सादी जमा कराया गया
था कि उन्हें बदलकर चहेतों को पास कराया जा सके। बाद में पांडेय की भी
नियुक्ति अवैध पाई गई। इसके साथ ही लंबे समय से सचिव पद का काम देख रहे
संजय सिंह की नियुक्ति भी अवैध साबित हुई। सरकार ने पूर्व आइएएस प्रभात
मित्तल को आयोग का अध्यक्ष बनाकर भेजा और उन्होंने 1150 पदों पर नई भर्ती
भी विज्ञापित की लेकिन, भाजपा के सत्ता में आने के बाद पद छोड़ दिया था।नौ
हजार शिक्षक की भर्ती अधर में1चयन बोर्ड पर लग रहे भ्रष्टाचार को देखते हुए
ही भाजपा सरकार ने सत्ता में आते ही भर्तियों पर रोक लगाई थी। इस समय 2016
में विज्ञापित नौ हजार से अधिक शिक्षकों की परीक्षा प्रक्रिया आगे बढ़ाई
जा रही थी। इसमें 11 लाख से अधिक लोगों ने आवेदन भरे थे। इससे पहले विवादों
के बीच ही किसी तरह 2013 की भर्ती को पूरा किया गया। 2011 की भर्ती भी अभी
अधर में ही है। वैसे सरकार ने चयन सपा शासन की सभी भर्तियों की जांच कराने
की घोषणा की थी लेकिन चयन बोर्ड के लिए अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।’उच्च.
शिक्षा सेवा आयोग में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती भी विवादों में रही1’सपा
शासनकाल में गलत नियुक्तियों ने और खराब की छवि
sponsored links:
0 Comments