इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वन विभाग के दैनिक वेतनभोगी कर्मियों
को न्यूनतम वेतन या न्यूनतम वेतनमान देने के मुद्दे पर मुख्य वन संरक्षक से
चार हफ्ते में व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि शीर्ष
कोर्ट के पुत्तीलाल केस के फैसले के पालन में दैनिक कर्मियों के नियमितीकरण
के संबंध में क्या कदम उठाए गए हैं। याचिका की अगली सुनवाई 13 जुलाई को
होगी।
यह न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल ने मोहन स्वरूप व अन्य की याचिका पर दिया
है। याची के अधिवक्ता पंकज श्रीवास्तव का कहना है कि वन विभाग के ग्रुप
‘डी’ पदों पर कार्यरत दैनिक कर्मियों को 7000 रुपये न्यूनतम वेतन दिया जा
रहा है, जबकि दिसंबर 2017 से पुनरीक्षित वेतनमान के बाद 18 हजार रुपये
न्यूनतम वेतन मिलना चाहिए। आठ मार्च, 2018 को वन विभाग के अनुसचिव ने
प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक को निर्देश दिया कि सातवें वेतन आयोग की
सिफारिशों के तहत 22 दिसंबर, 2016 को जारी शासनादेश का लाभ केवल स्थायी
कर्मियों को ही मिलेगा। यह दैनिक कर्मियों पर लागू नहीं होगा, साथ ही कहा
कि दैनिक कर्मी न्यूनतम वेतनमान के बजाय न्यूनतम वेतन पाने के ही हकदार
हैं। इसलिए जो दैनिक कर्मी पहले सात हजार रुपये मासिक वेतन पा रहे थे वे
पुनरीक्षित वेतनमान के तहत न्यूनतम वेतन 18 हजार रुपये नहीं पाएंगे।
याची का कहना है कि पुत्तीलाल केस के फैसले के तहत वे सात हजार रुपये वेतन
पा रहे थे अब उन्हें न्यूनतम वेतन 18 हजार पाने का हक है। सरकार की तरफ से
कहा गया कि जो दैनिककर्मी नियमितीकरण के योग्य पाए गए उन्हें नियमित कर
लिया गया है और जो योग्य नहीं पाए गए उन्हें कार्य की जरूरत के अनुसार सेवा
में बने रहने का ही हक है। इसलिए वे न्यूनतम वेतन संशय अधिनियम 1948 के
तहत न्यूनतम वेतन पाने के हकदार हैं। कोर्ट ने कहा कि प्रकरण विचारणीय है।
कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से इन्कार करते हुए मुख्य वन संरक्षक से विस्तृत
हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट से अंतरिम राहत न मिलने के
को विशेष अपील में चुनौती दी गई है जिसकी सुनवाई दो जुलाई को होगी।
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