कहीं मास्टरों की भरमार तो कहीं पढ़ाने का संकट

मंझनपुर/चायल। सरकारी स्कूलों में तैनात गुरुजी ग्रामीण स्कूलों में काम करना नहीं पसंद कर रहे हैं। हाइवे किनारे के स्कूल उनकी पहली पसंद है। काम भी नहीं और कभी जाना भी पड़ा तो मौके तक पहुंचने का साधन भी आसानी से मिल जाता है। हालात यह है कि इन स्कूलों में जाने वाले शिक्षकों की बोली लग रही है।

इलाहाबाद से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर प्राथमिक विद्यालय रसूलाबाद कोइलहा है। यहां पर करीब 270 बच्चे पंजीकृत है। इनको पढ़ाने की जिम्मेदारी आठ अध्यापकों पर है। तीन महिला अध्यापक और दो पुरुष अध्यापक के अलावा दो महिला शिक्षामित्र भी यहां तैनात हैं और एक हेडमास्टर हैं। स्टाफ इलाहाबाद से आता-जाता है। कमोवेश यही हाल चायल प्राथमिक विद्यालय का है। यहां पर तकरीबन 472 बच्चे पंजीकृत हैं। आठ अध्यापक इस स्कूल में भी तैनात हैं। इसी स्थान के जूनियर हाईस्कूल का भी हाल यही है। करीबन 140 बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी चार अध्यापकों को सौंपी गई है। मोहम्मदपुर प्राथमिक विद्यालय में लगभग 115 बच्चे पंजीकृत हैं। यहां पर छह अध्यापक हैं। अब सिक्के का दूसरा पहलू ग्रामीण इलाके में देखने को मिलता है। इसी क्षेत्र के चौराडीह गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय में करीब 275 बच्चे पंजीकृत है। इसके सापेक्ष यहां चार अध्यापकों की तैनाती की गई है। जूनियर हाईस्कूल में 176 बच्चे पंजीकृत है जबकि उन्हें पढ़ाने की जिम्मेदारी दो मास्टरों पर है। सिंहपुर स्थित प्राथमिक विद्यालय का भी यही हाल है। यहां पंजीकृत करीब 135 बच्चों में चार अध्यापक हैं। पूरे कलापत प्राथमिक विद्यालय में तकरीबन 105 बच्चे पंजीकृत है जबकि यहां दो अध्यापक हैं। कालू का पुरवा स्थित प्राथमिक विद्यालय में महज 42 बच्चे पंजीकृत हैं। यहां पर तीन मास्टरों को तैनाती दी गई है।

हाइवे किनारे के स्कूलों में तैनात अध्यापकों में सबसे ज्यादा महिलाएं हैं। रसूलाबाद कोइलहा प्राथमिक विद्यालय में पोस्ट पांच अध्यापकों में तीन महिला हैं। चायल के स्कूल में आठ महिला शिक्षक हैं। मनौरी के स्कूल में पोस्ट आठ अध्यापकों में सभी महिला है। मोहम्मदपुर के स्कूल में छह महिला अध्यापक हैं। कमोवेश यहीं हाल जिले में हाइवे के किनारे पड़ने वाले सभी स्कूलों के हैं। हाइवे के किनारे स्थित स्कूल में तैनात महिला अध्यापक या तो किसी अफसर की पत्नी हैं या फिर नेता की। ये लोग इलाहाबाद से आती-जाती हैं। इस वजह से हाइवे के किनारे स्थित स्कूलों में उन्होंने तैनाती ली है। मकसद यह है कि हफ्ते में एक या दो बार आकर महीने भर की हाजिरी लगा दी जाती है। जिले के अफसर चाह कर भी उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाते।