अकेला आदमी भी चाहे तो समाज को राह दिखाने का काम कर सकता है। झारखंड में दुर्गम पहाड़ियों से घिरे सिमरातरी गांव में पहली बार किसी ने मैटिक पास की है।
गांव में मौजूद सरकारी स्कूल के शिक्षक का जज्बा इसकी वजह बना। आज ऐसे दर्जनभर बच्चे गांव को सुशिक्षा की राह पर ले बढ़े हैं। आज यहां का मध्य विद्यालय बच्चों से आबाद है।
बच्चों को शिक्षा की राह पर दौड़ाने के लिए शिक्षक प्रवील रविदास हर दिन 10 किलोमीटर पैदल चलते हैं। एक दो दिन नहीं बल्कि लगातार 14 सालों से यह सिलसिला जारी है। दुर्गम इलाके के जंगल, नदी और पहाड़ को पीछे छोड़ते हुए वे स्कूल पहुंचते हैं। क्या बारिश, क्या गर्मी, क्या शीतलहर.. हर बाधा को पार करते हुए वे गांव में शिक्षा की लौ जला रहे हैं। उनके इस जज्बे ने बच्चों में भी पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी जगाई और खाली रहने वाला स्कूल बच्चों की पढ़ाई से गूंज उठा। प्रेरणा का नतीजा रहा कि जिस गांव में किसी ने मैटिक की परीक्षा नहीं पास की थी आज कोई एक दर्जन बच्चे मैटिक कर चुके हैं। मध्य विद्यालय होने की वजह से विद्यालय में बच्चों ने पढ़ाई तो पांचवीं तक ही की, लेकिन यहीं से बच्चों में मैटिक करने का हौसला आया। उन्हें प्रवील का साथ मिला और आगे बढ़ते गए। पहाड़ियों से घिरे हजारीबाग मुख्यालय से 25 किमी दूर इचाक प्रखंड सिमरातरी मध्य विद्यालय में प्रवील ने 2005 में शिक्षक के रूप नियुक्ति पाई थी। पहली बार जब विद्यालय पहुंचे तो उनके होश उड़ गए। विद्यालय जाने का कोई रास्ता नहीं था। नदी और पहाड़ लांघ कर विद्यालय पहुंचे। कोई शिक्षक इस विद्यालय में नहीं आना चाहता था। लेकिन उन्होंने बच्चों की हालत देख अपनी परेशानियों को भूल गए। पिछले एक दशक से विद्यालय में प्रवील एकमात्र शिक्षक हैं। उनके नियमित स्कूल आने का नतीजा है कि स्कूल में रौनक है, अभिभावक भी उन्हें सम्मान के भाव से देखते हैं। प्रवील आज भी गांव से दूर तिलैयाडीह फफुंदी टोला में बिगन मांझी के घर बाइक लगाते हैं और फिर वहां से नदी, पहाड़ लांघते विद्यालय पहुंचते हैं।
गांव में मौजूद सरकारी स्कूल के शिक्षक का जज्बा इसकी वजह बना। आज ऐसे दर्जनभर बच्चे गांव को सुशिक्षा की राह पर ले बढ़े हैं। आज यहां का मध्य विद्यालय बच्चों से आबाद है।
बच्चों को शिक्षा की राह पर दौड़ाने के लिए शिक्षक प्रवील रविदास हर दिन 10 किलोमीटर पैदल चलते हैं। एक दो दिन नहीं बल्कि लगातार 14 सालों से यह सिलसिला जारी है। दुर्गम इलाके के जंगल, नदी और पहाड़ को पीछे छोड़ते हुए वे स्कूल पहुंचते हैं। क्या बारिश, क्या गर्मी, क्या शीतलहर.. हर बाधा को पार करते हुए वे गांव में शिक्षा की लौ जला रहे हैं। उनके इस जज्बे ने बच्चों में भी पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी जगाई और खाली रहने वाला स्कूल बच्चों की पढ़ाई से गूंज उठा। प्रेरणा का नतीजा रहा कि जिस गांव में किसी ने मैटिक की परीक्षा नहीं पास की थी आज कोई एक दर्जन बच्चे मैटिक कर चुके हैं। मध्य विद्यालय होने की वजह से विद्यालय में बच्चों ने पढ़ाई तो पांचवीं तक ही की, लेकिन यहीं से बच्चों में मैटिक करने का हौसला आया। उन्हें प्रवील का साथ मिला और आगे बढ़ते गए। पहाड़ियों से घिरे हजारीबाग मुख्यालय से 25 किमी दूर इचाक प्रखंड सिमरातरी मध्य विद्यालय में प्रवील ने 2005 में शिक्षक के रूप नियुक्ति पाई थी। पहली बार जब विद्यालय पहुंचे तो उनके होश उड़ गए। विद्यालय जाने का कोई रास्ता नहीं था। नदी और पहाड़ लांघ कर विद्यालय पहुंचे। कोई शिक्षक इस विद्यालय में नहीं आना चाहता था। लेकिन उन्होंने बच्चों की हालत देख अपनी परेशानियों को भूल गए। पिछले एक दशक से विद्यालय में प्रवील एकमात्र शिक्षक हैं। उनके नियमित स्कूल आने का नतीजा है कि स्कूल में रौनक है, अभिभावक भी उन्हें सम्मान के भाव से देखते हैं। प्रवील आज भी गांव से दूर तिलैयाडीह फफुंदी टोला में बिगन मांझी के घर बाइक लगाते हैं और फिर वहां से नदी, पहाड़ लांघते विद्यालय पहुंचते हैं।