68500 सहायक अध्यापक भर्ती में पांच वर्षों से प्रदेश का निवासी होने की अनिवार्यता को चुनौती

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 68500 सहायक अध्यापक भर्ती में सफल अभ्यर्थियों के आवेदन से पूर्व पांच वर्षों से उत्तर प्रदेश का निवासी होने की अनिवार्यता पर जवाब मांगा है।
प्रदेश सरकार की इस नीति की संवैधानिकता पर सवाल उठाया गया है। याचिका दाखिल कर कहा गया है कि आवेदन से पूर्व के पांच सालों से इसी प्रदेश का निवासी होने की अनिवार्यता संविधान सम्मत नहीं है। कोर्ट ने राज्य सरकार से इस बाबत जानकारी मांगते हुए याचिका आठ अप्रैल को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने हरियाणा और नई दिल्ली की मनीष और वंदना की याचिका पर दिया है।

याची के वरिष्ठ अधिवक्ता एएन त्रिपाठी का कहना है कि नौ जनवरी 2018 को सहायक अध्यापकों की भर्ती का विज्ञापन हुआ और 13 अगस्त 18 को घोषित परिणाम में 41556 सफल हुए । याची भी सूची में शामिल है। 18 अगस्त 2018 को शासनादेश से गाइडलाइन जारी की गई कि विज्ञापन से पहले आवेदक पांच साल से प्रदेश में निवास कर रहा हो। याचियों को काउंसलिंग के लिए नहीं बुलाया गया, तो याचिका दाखिल कर चुनौती दी गयी है।
 याची अधिवक्ता का तर्क है कि अनुच्छेद 16(3) के तहत केंद्र सरकार को संसद के जरिए अर्हता मानक तय करने का अधिकार है, राज्य को नहीं।

संविधान का अनुच्छेद 13 (2) कहता है कि संविधान के विपरीत बना कानून शून्य होगा। साथ ही 1981 की बेसिक शिक्षक सेवा नियमावली में भी ऐसी व्यवस्था नहीं है, जिससे निवास के आधार पर चयनित अभ्यर्थी को नियुक्ति से रोक दिया जाए। भर्ती विज्ञापन में भी निवास की अनिवार्यता की व्यवस्था नहीं है तो बाद में भर्ती नियमों में बदलाव विधि विरुद्ध है। कोर्ट ने निवास के आधार पर महिला आरक्षण को रद्द कर दिया है। ऐसे में चयनित अभ्यर्थियों को दूसरे प्रदेश का निवासी होने के आधार पर नियुक्ति देने से इंकार नहीं किया जा सकता। याचिका की सुनवाई आठ अप्रैल को होगी।
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