प्रदेश में संस्कृत के स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित करने वाले महाविद्यालयों के शिक्षकों की चयन प्रक्रिया बदलने की तैयारी में शासन जुटा है।
शासन स्तर पर सहमति बनी है कि इन संस्कृत महाविद्यालयों के शिक्षकों का चयन उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग, उप्र के जरिये कराया जाए।
सूबे में संस्कृत के स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित करने वाले महाविद्यालय वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। प्रदेश में ऐसे महाविद्यालयों की संख्या लगभग 550 है। अभी इन महाविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति प्रबंध तंत्र करता है। महाविद्यालयों के प्रबंधतंत्र शिक्षकों के चयन का प्रस्ताव संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को भेजते हैं। विश्वविद्यालय के कुलपति की ओर से प्रस्ताव अनुमोदित होने पर प्रबंधतंत्र शिक्षकों को नियुक्ति पत्र जारी कर देते हैं। शिक्षकों के चयन की इस व्यवस्था को लेकर शासन को लगातार शिकायतें मिल रही थीं। शिक्षकों के चयन में भ्रष्टाचार के आरोप भी लग रहे थे। लिहाजा शासन ने पिछले साल अक्टूबर में संस्कृत महाविद्यालयों के शिक्षकों की नियुक्तियों पर रोक लगा दी थी। इसे लेकर संस्कृत महाविद्यालय ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने सरकार से शिक्षकों के चयन की प्रक्रिया तय करने के लिए कहा था। इस सिलसिले में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक हो चुकी है। बैठक में सहमति बनी है कि जैसे उच्च शिक्षा विभाग से अनुदान पाने वाले अशासकीय सहायताप्राप्त महाविद्यालयों के शिक्षकों का चयन उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के माध्यम से किया जाता है, वैसे ही संस्कृत के स्नातक और स्नातकोत्तर कोर्स संचालित करने वाले महाविद्यालयों के शिक्षकों का चयन भी इसी आयोग के जरिये कराया जाए। इसके लिए उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग अधिनियम, 1980 में संशोधन करना होगा।
शासन स्तर पर सहमति बनी है कि इन संस्कृत महाविद्यालयों के शिक्षकों का चयन उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग, उप्र के जरिये कराया जाए।
सूबे में संस्कृत के स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित करने वाले महाविद्यालय वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। प्रदेश में ऐसे महाविद्यालयों की संख्या लगभग 550 है। अभी इन महाविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति प्रबंध तंत्र करता है। महाविद्यालयों के प्रबंधतंत्र शिक्षकों के चयन का प्रस्ताव संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को भेजते हैं। विश्वविद्यालय के कुलपति की ओर से प्रस्ताव अनुमोदित होने पर प्रबंधतंत्र शिक्षकों को नियुक्ति पत्र जारी कर देते हैं। शिक्षकों के चयन की इस व्यवस्था को लेकर शासन को लगातार शिकायतें मिल रही थीं। शिक्षकों के चयन में भ्रष्टाचार के आरोप भी लग रहे थे। लिहाजा शासन ने पिछले साल अक्टूबर में संस्कृत महाविद्यालयों के शिक्षकों की नियुक्तियों पर रोक लगा दी थी। इसे लेकर संस्कृत महाविद्यालय ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने सरकार से शिक्षकों के चयन की प्रक्रिया तय करने के लिए कहा था। इस सिलसिले में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक हो चुकी है। बैठक में सहमति बनी है कि जैसे उच्च शिक्षा विभाग से अनुदान पाने वाले अशासकीय सहायताप्राप्त महाविद्यालयों के शिक्षकों का चयन उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के माध्यम से किया जाता है, वैसे ही संस्कृत के स्नातक और स्नातकोत्तर कोर्स संचालित करने वाले महाविद्यालयों के शिक्षकों का चयन भी इसी आयोग के जरिये कराया जाए। इसके लिए उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग अधिनियम, 1980 में संशोधन करना होगा।