लखनऊ : फर्जी अभिलेखों के आधार पर शिक्षक बनने का खेल प्रदेश में अरसे से जारी है। एसटीएफ तो ऐसे मामलों की पड़ताल के लिए लगाई ही जा रही है, पुलिस का विशेष जांच दल (एसआइटी) भी ऐसे कुछ प्रकरणों की जांच कर रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बेसिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा तथा समाज कल्याण विभाग से जुड़े प्रत्येक शिक्षक के दस्तावेजों की जांच कराने का जो निर्देश दिया है, उससे शिक्षण संस्थानों में फर्जी शिक्षकों की नियुक्तियों के खेल से पर्दा उठेगा।
आगरा के डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में बीएड सत्र 2004-05 में फर्जी डिग्रियों का खेल एसआइटी की जांच में उजागर हो चुका है। परिषदीय स्कूलों में फर्जी अभिलेखों के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति के एक और मामले की जांच एसआइटी कर रही है। यह जांच वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातक और शिक्षाशास्त्र की फर्जी डिग्रियों के आधार पर शिक्षकों की नौकरियां हासिल करने से जुड़ी है। अंदेशा जताया जा रहा है कि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की फर्जी डिग्रियों के आधार पर परिषदीय स्कूलों में वर्ष 2004 से 2014 के बीच हुई शिक्षकों की नियुक्तियों में अक्षम अभ्यर्थी नौकरी पाने में कामयाब रहे। हाल ही में गोंडा के 28 अशासकीय सहायता प्राप्त जूनियर हाई स्कूलों में शिक्षकों की अनियमित नियुक्तियों की शिकायत हुई। मुख्यमंत्री के निर्देश पर इस मामले की जांच भी एसआइटी को सौंपी गई है।
अनामिका शुक्ला प्रकरण के बाद कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में फर्जी अभिलेखों के आधार पर नियुक्तियों के गड़बड़झाले का एक और मामला जौनपुर व आजमगढ़ में उजागर हुआ है। इन दोनों जिलों में एक ही महिला के आधार नंबर और शैक्षिक अभिलेख के आधार पर जौनपुर के केजीबीवी में शिक्षिका और आजमगढ़ में वार्डन के पद पर नियुक्तियां होने पर दोषियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने का निर्देश दे दिया गया है। माध्यमिक शिक्षा विभाग भी अछूता नहीं रहा है। वर्ष 2015 में राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में एलटी ग्रेड शिक्षकों की भर्ती के दौरान सिर्फ लखनऊ मंडल में ही 33 ऐसे अभ्यर्थियों की सेवाएं समाप्त की गई थी जो लखनऊ विश्वविद्यालय की फर्जी डिग्रियों के आधार पर नौकरी पाने में कामयाब हुए थे। अब जबकि मुख्यमंत्री ने खुद सभी शिक्षकों के दस्तावेजों की जांच एक समर्पित टीम से कराने का निर्देश दिया है तो शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार की दीमक से मुक्ति मिलने की उम्मीद जगी है।
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आगरा के डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में बीएड सत्र 2004-05 में फर्जी डिग्रियों का खेल एसआइटी की जांच में उजागर हो चुका है। परिषदीय स्कूलों में फर्जी अभिलेखों के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति के एक और मामले की जांच एसआइटी कर रही है। यह जांच वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातक और शिक्षाशास्त्र की फर्जी डिग्रियों के आधार पर शिक्षकों की नौकरियां हासिल करने से जुड़ी है। अंदेशा जताया जा रहा है कि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की फर्जी डिग्रियों के आधार पर परिषदीय स्कूलों में वर्ष 2004 से 2014 के बीच हुई शिक्षकों की नियुक्तियों में अक्षम अभ्यर्थी नौकरी पाने में कामयाब रहे। हाल ही में गोंडा के 28 अशासकीय सहायता प्राप्त जूनियर हाई स्कूलों में शिक्षकों की अनियमित नियुक्तियों की शिकायत हुई। मुख्यमंत्री के निर्देश पर इस मामले की जांच भी एसआइटी को सौंपी गई है।
अनामिका शुक्ला प्रकरण के बाद कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में फर्जी अभिलेखों के आधार पर नियुक्तियों के गड़बड़झाले का एक और मामला जौनपुर व आजमगढ़ में उजागर हुआ है। इन दोनों जिलों में एक ही महिला के आधार नंबर और शैक्षिक अभिलेख के आधार पर जौनपुर के केजीबीवी में शिक्षिका और आजमगढ़ में वार्डन के पद पर नियुक्तियां होने पर दोषियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने का निर्देश दे दिया गया है। माध्यमिक शिक्षा विभाग भी अछूता नहीं रहा है। वर्ष 2015 में राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में एलटी ग्रेड शिक्षकों की भर्ती के दौरान सिर्फ लखनऊ मंडल में ही 33 ऐसे अभ्यर्थियों की सेवाएं समाप्त की गई थी जो लखनऊ विश्वविद्यालय की फर्जी डिग्रियों के आधार पर नौकरी पाने में कामयाब हुए थे। अब जबकि मुख्यमंत्री ने खुद सभी शिक्षकों के दस्तावेजों की जांच एक समर्पित टीम से कराने का निर्देश दिया है तो शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार की दीमक से मुक्ति मिलने की उम्मीद जगी है।
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