शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद भी शिक्षक बी.एल.ओ. क्यों?

 गोरखपुर। शिक्षा के अधिकार अधिनियम में शिक्षकों के कर्तव्य तय किये गये हैं। इन्ही अधिकारों के तहत यह भी निर्धारित है कि शिक्षकों से शिक्षण कार्य के अलावा कौन कौन से कार्य कराए जा सकते हैं। इस मुद्दे पर डॉ रहबर सुल्तान द्वारा अनेक जन सूचना से निर्वाचन आयोग द्वारा भी नियमावली प्राप्त की हैं। 




उक्त नियमावली के मुताबिक यदि क्षेत्र में आंगनवाड़ी, लेखपाल, पंचायत सचिव हैं तो प्राथमिकता के आधार पर इनसे कार्य कराया जाए। माननीय सर्वोच्च न्यायालय भी अपने आदेश में यह स्पष्ट कर चुका है कि शिक्षकों से शिक्षण कार्य दिवसों में मतदाता पुनरीक्षण सूची का कार्य न कराया जाए। इसी तरह अनेक आदेशो में माननीय उच्च न्यायालय भी शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत ऐसी ड्यूटी से मना कर चुका है। वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव की ओर से जारी आदेश में बी. एल. ओ. कार्य न कराए जाने का आदेश दिया गया था वर्ष 2017 में अपर मुख्य सचिव की ओर से जारी आदेश में अध्यापकों से गैर शैक्षणिक कार्य न कराए जाने के सम्बंध में आदेश जारी किया गया था वर्ष 2018 में भी जिला निर्वाचन अधिकारी झाँसी की ओर से जारी आदेश में सभी उपजिलाधिकारियों को संबोधित पत्र में स्पष्ट कहा गया था कि माननीय उच्च न्यायालय एवं शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षकों को मतदाता पुनरीक्षण कार्य मे न लगाएं जाने संबंधी आदेश ही जारी नहीं किया था बल्कि नियमावली के तहत आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों, लेखपाल, पंचायत सचिव, अमीन आदि को उक्त कार्य मे लगाए जाने हेतु आदेशित किया था। डॉ रहबर सुल्तान की जनसूचना के जवाब में जिला निर्वाचन कार्यालय द्वारा भी शिक्षकों को उक्त ड्यूटी से मुक्त रखने की बात बताई गई । आर. टी. ई. लागू होने के साथ परिपदीय अध्यापकों के लिये "टाइम एंड मोशन स्टडी" नियम भी लागू है। हाल ही में राज्य निर्वाचन आयोग उतर प्रदेश (पंचायत व नगर निकाय) द्वारा भी निर्वाचन आयोग की नियमावली का हवाला देते हुए बताया गया है माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के परिपेक्ष्य में बी एल. ओ.ड्यूटी लगाए जाने का आदेश है।