राष्ट्रीय शैक्षिक एवं अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) जल्द ही कक्षा छह से 12 तक के छात्रों को भूला-बिसरा इतिहास पढ़ाएगी। ऐसे ऐतिहासिक तथ्यों की समीक्षा के लिए परिषद ने पांच लोगों की समीक्षा समिति बनाई है। इसमें प्राचीन, मध्य एवं आधुनिक भारत के इतिहास के पांच प्रोफेसर शामिल किए गए हैं।
समिति वर्ष 2015 से आए विभिन्न प्रत्यावेदनों, टिप्पणियों, शोध में साबित तथ्यों और पुरातात्विक अवशेषों की मिली रिपोर्ट के आधार पर स्थापित किए जा रहे तथ्यों की परख करेगी। एनसीईआरटी ने इन प्रत्यावेदनों पर बीते छह वर्षों से कोई निर्णय नहीं लिया है। ये सभी इतिहास में दर्ज गलत या अधूरे तथ्यों से संबंधित हैं। इनमें चौरी चौरा जनप्रतिरोध की तिथि चार फरवरी के स्थान पर पहले पांच फरवरी, 1922 और अब फरवरी 1922 पढ़ाना, विद्रोह की घटनाओं को कांड लिखना, ‘स्व’ स्वराज के बोध से संबंधित घटनाओं को उचित स्थान न देना शामिल हैं। एक महत्वपूर्ण प्रत्यावेदन और बताया जा रहा है जिसमें सजाओं के वर्गीकरण करने का उल्लेख है, जिसके अनुसार यह स्पष्ट करना है कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में कठोर समझी जाने वाली काले पानी की सजा पाने वाले राष्ट्रभक्तों का योगदान क्या था। जिन्हें मांडले जेल भेजा जाता था, उनसे ब्रितानी हुकूमत क्यों डरती थी।