पेंशन खैरात नहीं: हाई कोर्ट

 प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सिविल सíवस रेग्यूलेशन 351(ए ) के अंतर्गत वित्तीय क्षति की भरपाई के लिए कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने से पहले विभागीय कार्यवाही शुरू करनी चाहिए। पेंशन खैरात नहीं है, सेवा अधिकार है। सेवानिवृत्ति के बाद बिना राज्यपाल से अनुमोदन लिए विभागीय कार्यवाही संविधान के अनुच्छेद 300(ए) के विपरीत है।



कोर्ट ने बिजली विभाग में कनिष्ठ अभियंता पद से सेवानिवृत्त याची को पेंशन आदि पाने का हकदार मानते हुए विभाग को नौ फीसद ब्याज सहित सेवानिवृत्ति परिलाभों का दो माह में भुगतान करने का निर्देश दिया है। कहा कि आदेश का पालन नहीं किया तो छह फीसद अतिरिक्त ब्याज सहित कुल 15 फीसद ब्याज का भुगतान करना होगा। यह आदेश न्यायमूíत पंकज भाटिया ने अनिल कुमार शर्मा की याचिका पर दिया है।

कोर्ट ने कहा है कि विभागीय नुकसान की वसूली के लिए सेवानिवृत्ति से पहले आरोपपत्र देना जरूरी है। इसके बाद शुरू की गई कार्यवाही मनमानी मानी जाएगी। निगम के प्रस्ताव और सर्कुलर से राज्यपाल के अधिकार राज्य विद्युत निगम के प्रबंध निदेशक को नहीं दिए जा सकते। कोर्ट ने पेंशन का भुगतान न कर तीन साल परेशान करने पर दो माह में याची को 25 हजार रुपये हर्जाना भी देने का निर्देश दिया है।

यह है पूरा मामला: याची चार जून, 1974 को बिजली विभाग में पेट्रोलमैन पद पर नियुक्त हुआ। फिर उसे कनिष्ठ अभियंता पद पर पदोन्नति मिली। वह 31 दिसंबर, 2018 को अमरोहा में बिजली विभाग से सेवानिवृत्त हुआ। 14 नवंबर, 2018 को उसके खिलाफ शिकायत हुई थी तो उसे 22 नवंबर, 2018 को निलंबित कर दिया गया। सेवानिवृत्ति से पहले 28 दिसंबर, 2018 को निलंबन खत्म कर दिया। विभाग का कहना था कि मृतक आश्रित कोटे में परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी मिल सकती है। याची व उसके भाई ने नियुक्ति पा ली है। प्रबंध निदेशक के अनुमोदन पर कार्यवाही शुरू हुई है। निगम के प्रस्ताव पर जारी सर्कुलर से प्रबंध निदेशक को अनुमोदन का अधिकार है। कोर्ट ने इसे विधिसम्मत नहीं माना।