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शिक्षामित्रों को नियमित करने में मशक्कत , लोकसभा के झटके बाद लगाया लास्ट गियर : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

लखनऊ: साल 2012 में अखिलेश यादव ने ला मार्टीनियर ग्राउंड पर सीएम पद की शपथ ली थी। एक युवा सीएम से प्रदेश की जनता को ढेरों उम्मीदें थीं। बीते चार बरस में अखिलेश सरकार ने विकास के कई ख्वाब दिखाए। लेकिन वह हकीकत बनते हुए लोकसभा चुनाव के बाद नजर आए।
चार बरस में सरकार ने डिवेलपमेंट के जो काम शुरू किए उन्हें स्पीड लोकसभा चुनाव के हार के बाद मिली। 2014 के बाद सरकार की गाड़ी ने जब लास्ट गियर लगाया तो कई योजनाएं बंद हुईं तो कई में बदलाव भी हुए।
सरकार के चार बरस पूरे होने पर प्रदेश की अहम योजनाओं की जमीनी हकीकत जानी आनंद त्रिपाठी और रोहित मिश्र ने।
इन्हें मिली स्पीड
एक्सप्रेस-वे, मेट्रो परियोजना
ढाई साल बाद हकीकत की ओर बढ़े ड्रीम प्रॉजेक्ट
लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस, मेट्रो परियोजना सरकार के ड्रीम प्रॉजेक्ट थे। मगर अपने ड्रीम प्रॉजेक्ट को जमीन पर उतारने में सरकार को ढाई साल से ज्यादा का वक्त लग गया। ढाई साल तक ये परियोजना कागजों पर चलती रही। लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद सपा सरकार ने विकास परियोजनाओं पर काम तेज किया। अब जाकर सरकार दावा कर रही है कि अक्टूबर, 2016 तक एक्सप्रेस-वे शुरू हो जाएगा, जबकि मेट्रो परियोजना दिसंबर, 2016 तक शुरू होने की उम्मीद है।
दिखने लगी आईटी, सीजी सिटी
लखनऊ में आईटी सिटी परियोजना भी देर ही सही मगर अक्टूबर, 2016 तक शुरू हो जाने की उम्मीद है।
हालांकि इस परियोजना के लिए भी शुरू में निवेशक न मिलने की वजह देरी हुई। यहीं वजह है कि 4 साल बीत जाने के बाद भी आईटी सिटी नहीं पूरी हो सकी।
ये वादे पूरे::::::::
मुफ्त जांच का वादा पूरा
चुनावी कैंपेन के दौरान सीएम अखिलेश ने जरूरी मेडिकल जांचें मुफ्त करने का ऐलान किया था। सरकार अपने इस वादे को लागू किया। सरकारी अस्पतालों में एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड जैसी जांचें मुफ्त की गईं। अस्पतालों में खून से जुड़ी कई जांचें अब मुफ्त हाती हैं।
निजी स्कूल शिक्षकों को मानदेय
निजी स्कूली शिक्षकों को मानदेय देने के चुनावी वादें को भी सरकार ने चौथे साल में पूरा किया। 2016-17 के बजट में राज्य सरकार ने निजी स्कूली शिक्षकों को मानदेय देने के लिए बजट में 200 करोड़ रुपये की व्यवस्था की।
जिला मुख्यालय फोर लेन से जुड़े
सपा ने सत्ता में आने पर जिला मुख्यालयों को फोर लेन से जोड़ने का ऐलान किया था। प्रदेश के कई जिला मुख्यालयों को फोर लेन से जोड़ने का काम हो चुका है। कई जिला मुख्यालयों पर ये काम चल रहा है।
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इन्हें नहीं मिला स्टार्ट:::::
10 वीं पास छात्रों को टेबलेट नहीं
सत्ता में आने से पहले सपा ने 10 वीं क्लास पास करने वाले छात्रों को टेबलेट देने का वादा किया था। मगर सत्ता में आने के बाद ये वादा ही रह गया।
महिलाओं को न तो साड़ी मिलीं, न बुजुर्गों को कंबल
सपा ने सरकार बनने पर बीपीएल की सभी महिलाओं को दो-दो साड़ी और बुजुर्गों को कंबल देने का वादा किया। मगर सरकार का ये ऐलान हाव-हावाई ही साबित हुआ। बजट में प्रावधान होने के बाद भी न तो महिलाओं को साड़ी मिली और न ही बुजुर्गों को कंबल। अब सरकार समाजवादी पेंशन को इस योजना का विकल्प बनाने में जुटी हुई है।
दूसरे राज्यों के बराबर नहीं हुई वैट दर
सत्ता में आने से पहले सपा ने वैट का सरलीकरण करने का ऐलान किया था। मगर सत्ता में आने के बाद वैट की दरें दूसरे राज्यों के बराबर करने की बात तो दूर सरकार ने कई वस्तुओं पर वैट और भी बढ़ा दिया। वैट सरलीकरण के लिए सरकार ने कोई कमिटी भी नहीं बनाई।
नहीं बना व्यापारी सुरक्षा फोरम
सपा ने व्यापारियों को सुरक्षा देने के लिए व्यापारी सुरक्षा फोरम बनाने की घोषणा की थी। मगर चुनाव में जीत के बाद व्यापारियों की सुरक्षा के लिए फोरम बनाने पर सरकार ने कोई काम नहीं किया।
आगरा में नहीं बनी आईटी सिटी
लखनऊ में आईटी सिटी के साथ ही आगरा में भी आईटी सिटी बनाने की घोषणा सरकार ने की थी। मगर ये योजना भी कागजों तक सिमट कर रह गई।
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शुरू होकर हुईं बंद
बेरोजगारी भत्ता
2012 के विधानसभा चुनावों के दौरान अखिलेश का बेरोजगारी भत्ता देने के वादे ने बेरोजगारों को खूब लुभाया। सत्ता में आने के बाद सरकार ने एक साल तक तो बेरोजगारी भत्ता बांटा। मगर इसके बाद पंजीकृत बेरोजगारों को भत्ता देने की योजना ही बंद कर दी गई।
सबको लैपटॉप देना का वादा, मेधावियों तक सीमित
इंटर पास करने वाले सभी छात्रों को लैपटॉप देने का वादा किया था। मगर चुनावों के दौरान सबसे अधिक वोट और सुर्खियां बटोरने वाला ये वादा एक साल में ही फुस्स हो गया। सरकार बनने के पहले साल तो करीब 15 लाख इंटर पास करने वाले बच्चों को मुफ्त लैपटॉप बांटा गया। जिस पर करीब 2700 करोड़ रुपये का खर्च आया। मगर अगले साल ही सरकार ने लैपटॉप इंटर पास करने वाले सभी छात्रों को देने के बजाय मेधावी छात्रों तक ही सीमित कर दिया।
मुस्लिम बालिकाओं का अनुदान
मुस्लिम बालिकाओं को 10 वीं पास होने के बाद 30 हजार रुपये का अनुदान देने का वादा किया था। सरकार बनने के बाद दो साल तक इस योजना को चलाया भी गया। मगर तीसरे साल में बंद कर दिया गया।
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लगे विवादों के हिचकोले
अखिलेश यादव का कार्यकाल विवादों के रूप में भी याद किया जाएगा। बीते चार साल में दंगे के दाग तो लगे ही, सरकार को राजभवन और न्यायपालिका से भी टकराना पड़ा।
आजम-राजभवन टकराव : आजम और राजभवन में तकरार का तीखा और पुराना इतिहास रहा है। इस कार्यकाल में भी यही दोहराया गया। राज्यपाल पर टिप्पणियों से आजम राजभवन को निशाने पर लेते रहे तो राजभवन ने भी उनके पेच कसने का कोई मौका नहीं छोड़ा। हालिया विवाद तब उपजा जबकि आजम द्वारा विधान भवन में राज्यपाल का जिक्र किए जाने पर राज्यपाल राम नाईक तल्ख हुए। उन्होंने प्रोसीडिंग ही तलब कर लीं।
सुप्रीम कोर्ट को तैनात करना पड़ा लोकायुक्त : लोकायुक्त तैनाती मामले में भी सरकार की खूब फजीहत हुई। नियुक्ति करने वाली कमिटी में एकराय न होने से देर हुई। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने देरी पर सरकार को फटकारा। फिर खुद ही लोकायुक्त तैनात कर दिया। बाद में उस तैनाती को लेकर भी इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने सहमति देने से इनकार किया और सुप्रीम कोर्ट से शिकायत कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी तैनाती को रद करके नई तैनाती की।
लोकसेवा आयोग विवाद : अनिल यादव को लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाए जाने पर उठे विवाद की वजह से सरकार सिलेक्शन तक में घिरी रही। सरकार पर जाति विशेष के लोगों को ही परीक्षा में पास कराने का आरोप लगा। बाद में अनिल यादव की तैनाती को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसके बाद कोर्ट के आदेश पर उन्हें हटाया गया। यही हाल उच्च शिक्षा आयोग में भी रहा। यहां के अध्यक्ष को भी कोर्ट ने अयोग्य करार दिया और उसके आदेश पर हटाया गया।
शिक्षामित्रों को नियमित करने में भी मशक्कत : शिक्षामित्रों को नियमित करने में भी सरकार के पसीने छूटे। सुप्रीम कोर्ट ने उनका समायोजन अवैधानिक करार दे दिया। रोक लगी। सरकार दावा करती रही, लेकिन इस आदेश के खिलाफ एसएलपी फाइल नहीं कर सकी। शिक्षामित्र खुद अपनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में लड़ रहे।
एमएलसी के लिए भी सरकार बैकफुट पर : मनोनीत एमएलसी के लिए सरकार ने जो नाम राज्यपाल के पास भेजे, उन पर भी आपत्ति लगी। गवर्नर ने मंजूरी नहीं दी तो सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। 9 में से 4 पर ही अब तक राजभवन सहमत हुआ।
विधेयक लटके : सरकार के कई विधेयक राजभवन में जाकर अटक गए। उन्हें राज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी। कई विधेयक अब तक लटके हैं क्योंकि राजभवन संविधान के मुताबिक उनका परीक्षण करा रहा।
रिटायर्ड अधिकारी भी रहे सिरदर्द : सरकार में रिटायर्ड अधिकारियों से काम लेना का खासा चलन रहा। काडर पोस्ट पर रिटायर्ड से काम लेने पर कई पीआईएल हुईं, जिनपर सरकार को कठघरे में खड़ा रहना पड़ा। नगर विकास सचिव एसपी सिंह को तो काम करने से ही रोक दिया गया था। जैसे तैसे उनका मामला निपटा लेकिन अभी भी कुछ केस इस मामले में कोर्ट में चल रहे हैं।
दंगे के दाग भी : सरकार पर दंगों के दाग भी लगे। मुजफ्फर नगर दंगे में सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े होते रहे। हालांकि इस मामले की जांच के लिए बनाई गई समिति की रिपोर्ट में किसी को भी दोषी नहीं पाया गया है।
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कितना हुआ निवेश, कितना मिला रोजगार
अप्रैल 2012 से जनवरी, 2016 तक 1,68,219 नए उद्योग लगे
इन उद्योगों में 25,081 करोड़ रुपये का निवेश हुआ
12,98,188 लोगों को प्रत्यक्ष, 2,49,233 व्यक्तियों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिला
प्रदेश में लगभग 78,681 करोड़ रुपये की परियोजनाएं पाइप लाइन में
(प्रमुख सचिव, अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास के मुताबिक )
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